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सास के 25 साल बाद दुमका के रण में उतरीं बड़ी बहू सीता सोरेन, नारी शक्ति वंदन विधेयक के बाद BJP ने खेला दांव

झारखंड की राजनीति का केंद्र हमेशा से दुमका रहा है। वर्ष 1998 में शिबू सोरेन भाजपा के बाबूलाल मरांडी से चुनाव हारने के बाद राज्यसभा के लिए चुने गए थे। इस चुनाव के एक साल बाद ही 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में झामुमो से शिबू सोरेन अपनी पत्नी रूपी सोरेन को बाबूलाल मरांडी के खिलाफ चुनावी दंगल में उतारे थे लेकिन रूपी चुनाव नहीं जीत पाईं।

By Rohit Kumar Mandal Edited By: Shashank Shekhar Updated: Mon, 01 Apr 2024 02:55 PM (IST)
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सास के 25 साल बाद दुमका के रण में उतरीं बड़ी बहू सीता सोरेन (फाइल फोटो)
राजीव, दुमका। झारखंड की राजनीति का केंद्र हमेशा से दुमका रहा है। वर्ष 1980 से लेकर अब तक झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन इस सीट से आठ पर सांसद चुने गए हैं। वर्ष 1998 में शिबू सोरेन भाजपा के बाबूलाल मरांडी से चुनाव हारने के बाद राज्यसभा के लिए चुने गए थे।

इस चुनाव के एक साल बाद ही वर्ष 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में झामुमो की ओर से शिबू सोरेन अपनी पत्नी रूपी सोरेन को बाबूलाल मरांडी के खिलाफ चुनावी दंगल में उतारे थे, लेकिन रूपी चुनाव नहीं जीत पाईं। अब बदली हुई राजनीति परिस्थितियों में एक बार फिर से सोरेन परिवार की बड़ी बहू सीता सोरेन झामुमो नहीं, बल्कि भाजपा की टिकट पर चुनाव मैदान में ताल ठोकेंगी।

बहरहाल, आदिवासी समुदाय की महिला सीता सोरेन को चुनावी दंगल में उतार कर भाजपा ने संसद में पेश किए गए नारी शक्ति वंदन विधेयक के तहत लोकसभा व विधानसभा में आधी आबादी को 33 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने की मंशा को भी जताने की पहल की है।

संताल परगना की जमीन आधी आबादी की राजनीति के लिए उर्वर रही

वैसे आंकड़ों पर गौर किया जाए तो संताल परगना की जमीन आधी आबादी की राजनीति के लिए उर्वर रही है, परन्तु हकीकत यह कि महिलाओं का प्रतिनिधित्व विधानसभा तक ही पहुंच सका है। देश की आजादी से अब तक इस इलाके से एक भी महिला सांसद बनकर दिल्ली नहीं पहुंच पाई है। संताल परगना में तीन लोकसभा सीट है। इसमें दो दुमका और राजमहल अनुसूचित जनजाति व गोड्डा सामान्य श्रेणी में आता है।

वर्ष 1952 से लेकर अब तक हुए लोकसभा के चुनावों में इन तीनों सीटों से कोई भी महिला सांसद नहीं बन पाई है। इतना ही नहीं, भाजपा ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस को झटका देकर चाईबासा से सांसद रहीं गीता कोड़ा को भी अपने पाले में लाकर उसी सीट से दंगल में उतारा है।

जाहिर है कि आने वाले दिनों में अब यह देखना दिलचस्प होगा कि वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में दुमका सीट पर नारी शक्ति का वंदन होता है या फिर इंतजार करना ही विकल्प रहेगा।

नारी शक्ति वंदन विधेयक के बाद भाजपा ने खेला दुमका सीट से दांव

लोकसभा और विधानसभा में आधी आबादी के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण देने की तकरीबन तीन दशक पुरानी मांग को केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने नए संसद के लोकसभा पटल पर नारी शक्ति वंदन विधेयक को पास कराने के बाद भाजपा अबकी बार दुमका लोकसभा सीट से नारी शक्ति पर दांव खेला है।

वर्तमान पर गौर करें तो वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में इस इलाके से झारखंड विधानसभा की दहलीज तक दो महिला विधायक पहुंची हैं। इसमें एक दुमका के जामा विधानसभा से झामुमो की विधायक सीता सोरेन और दूसरी गोड्डा के महगामा सीट से कांग्रेस की दीपिका पांडेय सिंह का नाम शामिल है।

अब सीता पाला बदल कर भाजपा में हैं। खास बात यह कि इस बार गोड्डा संसदीय सीट से कांग्रेसी विधायक दीपिका का नाम भी संभावित प्रत्याशियों की रेस में शामिल हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस यहां से किस चेहरे पर दांव खेलती है।

संताल परगना की पहली महिला विधायक पाकुड़ की ज्योर्तिमय देवी

संताल परगना की पहली महिला विधायक बनने का सौभाग्य पाकुड़ की ज्योर्तिमय देवी को मिला था। वह कांग्रेस की टिकट पर वर्ष 1952 में चुनाव जीती थीं। जबकि वर्ष 1957 में देवघर विधानसभा से शैलबाला राय कांग्रेस पार्टी से विधायक चुनीं गई थीं। इसके बाद शैलबाला फिर 1962 में भी चुनाव जीतने में सफल रही।

जेपी आंदोलन की लहर में देवघर की ही वीणा देवी दास जनता पार्टी से विधायक चुनी गईं थीं। इसके बाद नाला विधान सभा सीट से कांग्रेस की टिकट पर राजकुमारी हिम्मतसिंहका वर्ष 1990 में विधायक चुनीं गई। इसी कालखंड में दुमका की स्व.स्टेनशीला हेंब्रम को एमएलसी बनने का अवसर मिला था और वह बिहार कैबिनेट में मंत्री भी बनाई गई थी।

वहीं, अलग झारखंड राज्य गठन के बाद झामुमो की टिकट पर सीता सोरेन जामा से लगातार तीसरी बार चुनाव जीतने में सफल रही हैं। महगामा से कांग्रेस की टिकट पर दीपिका पांडेय सिंह विधानसभा पहुंची हैं। दुमका सीट से वर्ष 2014 में पहली बार दुमका सीट से भाजपा की टिकट पर डा.लुइस मरांडी विधानसभा चुनाव जीत कर मंत्री बनीं। वह हेमंत सोरेन को हराकर विधानसभा पहुंची थीं।

आदिवासी महिलाओं को अब भी है भरपूर प्रतिनिधित्व का इंतजार

आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 1952 से लेकर 2019 तक हुए लोकसभा चुनावों में देशभर से कुल 51 आदिवासी महिलाएं सांसद चुनी गई हैं। इसमें सबसे अधिक 30 महिलाएं कांग्रेस पार्टी से जुड़ी हैं। जबकि भाजपा से 12 अनुसूचित जनजाति की महिलाएं संसद पहुंची हैं। इस श्रेणी में ओडिशा की बीजू जनता दल है भी शामिल है। इस पार्टी से अब तक दो आदिवासी महिला सांसद चुनी गई हैं।

बिहार से अलग होकर झारखंड के बाद अब तक हुए चार लोकसभा चुनावों में मात्र दो आदिवासी महिलाएं ही संसद पहुंच पाई हैं। जिसमें वर्ष 2004 में खूंटी से कांग्रेस की सुशीला केरकेट्टा और साल 2019 में सिंहभूम सीट से कांग्रेस की ही गीता कोड़ा शामिल हैं। वर्तमान में देश के निचले सदन में 77 महिला सांसद हैं जिसमें 10 आदिवासी समुदाय की हैं। मतलब कुल 543 सदस्यों वाले निचले सदन में आदिवासी महिलाओं की भागीदारी महज 1.8 प्रतिशत है।

संसद पहुंचीं सभी महिलाएं अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों से ही जीतकर आई हैं। जिनकी संख्या कहने को लोकसभा चुनावों के इतिहास में सबसे अधिक है, लेकिन अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित देशभर की 47 सीटों में से अभी भी 20 सीटें ऐसी हैं, जिससे आज तक एक भी महिला उम्मीदवार चुनकर नहीं आई हैं, जिसमें झारखंड के संताल परगना का दो सीट दुमका और राजमहल भी शामिल है।

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