Sita Soren: सोरेन परिवार में BJP ने पहली बार की बड़ी सेंधमारी, समझें क्या है इसके पीछे की वजह
Sita Soren झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन की बहू व स्वर्गीय दुर्गा सोरेन की पत्नी सीता सोरेन के भाजपा में शामिल होने से संताल परगना की राजनीतिक पर भी प्रभाव पड़ना तय है। सीता सोरेन ऐसे समय में झामुमो को छोड़कर भाजपा में शामिल हुईं हैं जब पार्टी संकट के दौर से गुजर रहा है। भाजपा सोरेन परिवार पर पूरी तरह से हमलावर है।
राजीव, दुमका। Sita Soren झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन की बहू व स्वर्गीय दुर्गा सोरेन की पत्नी सीता सोरेन के भाजपा में शामिल होने से संताल परगना की राजनीतिक पर भी प्रभाव पड़ना तय है। सीता सोरेन ऐसे समय में झामुमो को छोड़कर भाजपा में शामिल हुईं हैं, जब पार्टी संकट के दौर से गुजर रहा है।
शिबू सोरेन के अस्वस्थ रहने व हेमंत सोरेन पर कानूनी शिकंजा कसे जाने के बाद सोरेन परिवार की राजनीतिक ताकत को बरकरार रखने के लिए सीता सोरेन और बसंत सोरेन दो स्थापित चेहरा थे। हेमंत सोरेन की अनुपस्थिति में इन दोनों के कांधे पर ही सत्ता और संगठन को ताकत देने की जिम्मेदारी थी।
भाजपा सोरेन परिवार पर पूरी तरह से हमलावर है। अब सीता सोरेन को पार्टी में शामिल करा भाजपा के रणनीतिकारों ने सीधे तौर पर सोरेन परिवार के साथ झामुमो के अभेद दुर्ग संताल परगना में परंपरागत वोट बैंक पर भी सेंधमारी का संकेत दे दिया है।
सीता सोरेन के भाजपा में शामिल होने के बाद अब झामुमो के खिलाफ बागी तेवर बनाए हुए बोरियो से विधायक लोबिन हेंब्रम को लेकर भी कई तरह की चर्चाएं तेज हो गई है।
सीता सोरेन की राजनीतिक महत्वाकांक्षा को भाजपा ने दी हवा
शिबू सोरेन के बड़े बेटे दुर्गा सोरेन के असामयिक निधन के बाद झामुमो की परंपरागत सीट जामा विधानसभा से वर्ष 2009 में पहली बार विधानसभा चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंची थीं। इसके बाद वर्ष 2014 एवं 2019 के चुनावों में सफलता हासिल कर जीत की हैट्रिक लगाने वाली सीता की राजनीतिक महत्वाकांक्षा को भाजपा के रणनीतिकारों ने लोकसभा चुनाव के ठीक पर हवा देकर झामुमो परिवार को तगड़ा झटका दिया है।
झामुमो में रहकर सीता कई बार अपनी उपेक्षा व सत्ता में भागीदारी से दरकिनार किए जाने की पीड़ा समय-समय पर खुलकर तो कभी पार्टी के अंदर भी जता रही थीं। ताजा पीड़ा पूर्व मुख्यमंत्री के अपदस्थ होने के बाद मुख्यमंत्री बनाए गए चम्पाई सोरेन के कैबिनेट में मंत्री पद से जुड़ा होना बताया जा रहा है।
सूत्रों का कहना है कि मंत्री नहीं बनाए जाने से सीता खुद को काफी उपेक्षित महसूस कर रही थी। इतना ही नहीं, वह दुमका लोकसभा सीट से झामुमो की टिकट पर खुद या अपनी बेटी जयश्री को चुनाव लड़ाने की मुहिम में लगातार पार्टी के अंदर दबाव बना रही थीं।
जयश्री ने दुर्गा सोरेन सेना के नाम से एक संगठन चलाकर अपनी पहचान बनाने में जुटी थी। झामुमो के अंदर चल रहे इस उठापटक की राजनीति घटनाक्रमों पर पैनी निगाह रखने वाले भाजपा के रणनीतिकारों ने सही मौका देखकर झामुमो को ओवरटेक करते हुए सीता सोरेन को पार्टी में शामिल कराया है।
दुमका में 6 में 4 विधानसभा सीटों पर आइएनडीआइए के विधायक
दुमका लोकसभा क्षेत्र के छह विधानसभा में सोमवार तक पांच पर आइएनडीआइए के विधायक थे जबकि एक सीट पर भाजपा का कब्जा था। मंगलवार को यह तस्वीर बदल गई। आदिवासी बाहुल्य अनुसूचित जनजाति सीट जामा की विधायक ने पाला बदल कर भाजपा के आंकड़े को बढ़ा दिया है।
अब नई परिस्थितियों में दुमका, शिकारीपाड़ा, जामताड़ा और नाला विधानसभा सीट आइएनडीआइए के पास रह गया है, जबकि सारठ के बाद अब जामा विधानसभा क्षेत्र भाजपा के पास चला गया है।
झामुमो छोड़कर जाने वाले बड़े नेता पहचान बनाने में रहे हैं असफल
संताल परगना में शिबू सोरेन की हनक का अंदाजा इसी बात से लगाई जा सकती है कि झामुमाे छोड़कर दूसरी पार्टियों में गए बड़े चेहरों को भी इस इलाके की जनता नकारती रही है। हालांकि, झामुमाे की राजनीति में यह पहला मौका है, जब सोरेन परिवार को छोड़कर कोई दूसरे दल में शामिल हुआ है। ॉ
झामुमो के पुराने नेताओं का कहना है कि संताल परगना में कभी ट्रिपल एस यानि की शिबू सोरेन, साइमन मरांडी और सूरज मंडल झामुमो के ताकत हुआ करते थे। बाद के दिनों में सूरज मंडल पार्टी छोड़ गए और फिर अब तक विधायक व सांसद नहीं बन पाए। साइमन मरांडी भी कांग्रेस में जाकर दुमका संसदीय सीट से भाग्य आजमाए थे, लेकिन मिली करारी शिकस्त के बाद फिर से झामुमो में लौट गए।
राजमहल से झामुमो की टिकट पर सांसद रहे हेमलाल मुर्मू भी भाजपा में शामिल होकर लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़े थे, लेकिन जीत नहीं पाए। हेमलाल फिर से झामुमो में लौट आए हैं। दुमका से लगातार छह बार विधायक रहे प्रो. स्टीफन मरांडी भी झामुमो से अलग होकर अपनी पार्टी बनाई थी। फिर वह कांग्रेस में भी शामिल हुए, लेकिन सफलता नहीं मिली तो वापस झामुमो में लौट आए हैं। अभी महेशपुर से झामुमो के विधायक हैं।
अनिल मुर्मू की पहचान भी झामुमो से जुड़ी थी, लेकिन जब वह दूसरे दल चुनाव लड़े तो हार गए, लेकिन अंत में लिट्टीपाड़ा से झामुमो की टिकट पर विधायक बनने में सफल हुए थे। पोड़ैयाहाट से झामुमो के नेता रहे प्रशांत मंडल भी झामुमो से विधायक थे, लेकिन भाजपा में शामिल होने के बाद टिकट मिलने के बाद भी जीत नहीं मिली थी। शिकारीपाड़ा से झामुमो के विधायक रहे डेविड मुर्मू झामुमो छोड़ राजद में शामिल हुए थे।
उसके बाद फिर कभी चुनाव नहीं जीत पाए। महेशपुर के झामुमो विधायक रहे सुफल मरांडी भी झामुमो छोड़ने के बाद अब अपनी पहचान की तलाश में हैं। झामुमो नेताओं ने कहा कि देर-सबेर सीता सोरेन की घर वापसी ही विकल्प होगा।
इससे इतर जानकार बताते हैं कि महेशपुर से विधायक रहे पूर्व मंत्री स्व. देवीधन बेसरा भाजपा में जाकर विधायक व सांसद जरूर चुने गए थे। जानकार कहते हैं कि अब-जब पहली बार सोरेन परिवार की चौखट को लांघ कर सीता सोरेन भाजपा में शामिल हुई है तो आने वाले दिनों में झामुमो को कितना नफा-नुकसान होगा यह आने वाला वक्त ही बताएगा।
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