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कभी झारखंड का ये शहर हुआ करता था नक्सलियों का गढ़, लौटी बहार तो ये तकनीक अपनाया; और खेती कर तीन दोस्त बन गए अमीर

दुमका का शिकारीपाड़ा रामगढ़ काठीकुंड व गोपीकांदर प्रखंड कभी नक्सलियों का गढ़ हुआ करता था। जब से यहां नक्सली गतिविधियों पर विराम लगी है तब से इन प्रखंडों के गांवों में बहार वापस लौट रही है। वहीं किसान भी सालों भर खेती कर लाखों की आमदनी कर रहे हैं। शिकारीपाड़ा प्रखंड स्थित गंद्रकपुर पंचायत का झुरको गांव के लोग कृषि पर निर्भर हैं।

By Rajeev Ranjan Edited By: Shashank ShekharUpdated: Mon, 22 Jan 2024 03:19 PM (IST)
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कभी झारखंड का ये शहर हुआ करता था नक्सलियों का गढ़, लौटी बहार तो ये तकनीक अपनाया;

जागरण संवाददाता, दुमका। कभी दुमका का शिकारीपाड़ा, रामगढ़, काठीकुंड व गोपीकांदर प्रखंड नक्सलियों की जद में था। अब जब यहां नक्सली गतिविधियों पर विराम लगी है तो इन प्रखंडों के गांवों में बहार वापस लौट रही है। गांवों के किसान भी सालों भर खेती कर लाखों में आमदनी करने लगे हैं। शिकारीपाड़ा प्रखंड के गंद्रकपुर पंचायत में झुरको गांव है।

गांव के अधिकांश लोगों की जीविका कृषि पर भी निर्भर है। समय के साथ हो रहे बदलावों के बाद अब इस गांव के तीन किसान सुभाष मांझी, सुफल मल्लिक और आदिवासी समुदाय के सुशील मरांडी आर्गेनिक तरीके से खेती कर लाखों रुपये की कमाई कर रहे हैं। तीनों मिलकर सामुदायिक कृषि को बढ़ावा दे रहे हैं और आसपास के ग्रामीणों के लिए नजीर भी बन रहे हैं।

केला का पौधा बेचकर 60 हजार रुपये की आमदनी

इनसे प्रेरित दूसरे गांवों के किसान भी इनकी ही राह पकड़ रहे हैं। झुरको के सुभाष मांझी बताते हैं कि तकरीबन पांच एकड़ बेकार जमीन पर दोनों दोस्तों के साथ मिलकर तीन साल पहले केला, आम, अमरूद, बेर के उन्नत प्रभेद का बगान लगाए हैं, जिसमें आम का कटिबन प्रभेद का 300 वृक्ष है। यह प्रभेद साल में दो बार फल देने लगा है। केला का टी-नाइन का एक हजार पौधा लगाया है।

बीते वर्ष दिवाली में सिर्फ केला का पौधा बेचकर 60 हजार रुपये की आमदनी हुई है। जबकि 20 हजार रुपये का फल भी बेच चुके हैं। नूरानी प्रभेद का बेर का 1500 पौधा भी अब फल देने लगा है। 400 अमरूद का भी वृक्ष है। इस बागवानी से अभी तकरीबन दो से तीन लाख रुपये के बीच आमदनी हो रही है। खास बात यह कि फलों की यह बागवानी आर्गेनिक तरीके से की जा रही है।

इसके अलावा तीनों दोस्त धान व सब्जियों की भी आर्गेनिक तरीके से खेती करते हैं। पशुधन से अतिरिक्त आमदनी कर रहे हैं। इसके गोबर से केंचुआ खाद व कंपोस्ट तैयार करते हैं। इसके लिए आत्मा और कृषि विज्ञान से प्रशिक्षण लिया है। पलास के पत्तों का इस्तेमाल खेतों में करते हैं क्योंकि इन्हें यह बताया गया कि इससे खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। इन तीनों किसानों से प्रेरित होकर आसपास के कई किसान भी अब इनकी राह पकड़ रहे हैं।

दलहनी फसलों में कर रहे जीवाणु खाद का प्रयोग

संताल परगना प्रमंडल में दुमका ही एकमात्र जिला है, जहां किसान जीवाणु खाद का प्रयोग खरीफ व दलहनी फसलों में कर रहे हैं। पिछले वर्ष यहां के तकरीबन 475 एकड़ भू-भाग पर जैव खेती का लक्ष्य रखा गया था। जिसमें करीब 100 किसानों ने खरीफ में धान और 400 किसान दलहनी फसलों की खेती में जीवाणु खाद का प्रयोग किए थे।

इसमें रामगढ़, शिकारीपाड़ा, मसलिया, काठीकुंड, गोपीकांदर व जरमुंडी के किसान शामिल हैं। जीवाणु खाद का प्रयोग कर जैविक खेती करने वाले किसानों में विशुबांध के सुशील सोरेन, लखी सोरेन, सुमंत सोरेन, सुनीलाल बास्की, रुपलाल बास्की, रामगढ़ प्रखंड के बंसदुमा के बुधराय मुर्मू, मंडल हेंब्रम, बारिश मुर्मू, कुरुमटांड के मिस्त्री हेंब्रम, सनथ मुर्मू, नोरेन सोरेन, जियापानी के फणिभूषण मांझी, भुवनेश्वर मांझी, जरमुंडी के पूरन मंडल, मसलिया प्रखंड के सुरेश टुडू समेत रामगढ़ प्रखंड के पहाड़पुर गांव के दो दर्जन से अधिक किसान आर्गेनिक तरीके से सब्जियों की खेती कर रहे हैं।

इस गांव के बलदेव मुसूप केले की जैविक खेती कर लाखों में कमाई कर रहे हैं। राजधन मुसूप, नेमानी मुसूप, चिगडू मुसूप, महेश मुसूप समेत कई कई सामूहिक रुप से आम का बगीचा लगाए हैं जिससे सलाना दो लाख रुपये से अधिक की आमदनी हो रही है। इस बागीचा में भी जैविक खाद का ही प्रयोग किया जा रहा है।

रसायनिक खाद व दवाओं के इस्तेमाल से खेत व जमीन उसर हो रही थी। आत्मा व कृषि विज्ञान केंद्र से जैविक खेती की जानकारी मिलने के बाद अब जैविक खेती ही रास आने लगी है। दो दोस्तों के साथ मिलकर सामुदायिक खेती करने के साथ आमदनी बढ़ाने के लिए सालों भर जैविक तरीके से मिश्रित खेती कर रहे हैं।- सुभाष मांझी, कृषक, झुरको, शिकारीपाड़ा, दुमका

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