Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

यहां भैंसे की बलि देने की सदियों पुरानी परंपरा का आज भी है चलन, 1500 ई. से मंडप में हो रही दुर्गा पूजा

बिरनी जरीडीह दुर्गा मंडप की काफी महिमा है। यहां 1500 ई. से दुर्गा पूजा हो रही है। यहां नवरात्र में भक्‍तों की भीड़ लगी रहती हैं। यहां कलश स्थापना से लेकर विसर्जन तक बकरे की बलि दी जाती है और नवमी को भैंसे की बलि दी जाती है। इसके बाद उसे मिट्टी में प्रवाह कर दिया जाता है। यह सदियों पुरानी परंपरा है।

By Jagran NewsEdited By: Arijita SenUpdated: Thu, 05 Oct 2023 11:50 AM (IST)
Hero Image
बिरनी जरीडीह दुर्गा मंडप, जहां 1500 ई. से हो रही है दुर्गा पूजा।

सकलदेव पंडित, बिरनी (गिरिडीह)। गिरिडीह मुख्यालय से पश्चिम दिशा की ओर 55 किलोमीटर की दूरी पर बिरनी प्रखंड का जनता जरीडीह दुर्गा मंडप है। यह मंडप प्रखंड मुख्यालय से आठ किलो मीटर पूर्व दिशा डबरसैनी-जोराशांख मुख्य मार्ग पर अवस्थित है।

1500 ई. से यहां हो रही है दुर्गापूजा

1500 ई.से टिकैत उदयनारायण सिंह के यहां दुर्गापूजा हो रही है। भव्य दुर्गा मंडप के पहले यहां मिट्टी का मंडप बना हुआ था। 1800 ई. में टिकैत विचित्र नारायण सिंह ने मंडप का पक्का निर्माण कराया।

इस वर्ष भी पूजा धूमधाम से मनाने की तैयारी यहां चल रही है। ग्रामीणों के मुताबिक, जरीडीह दुर्गा मंडप से मां दुर्गा की प्रतिमा ले जाकर कई इलाकों में स्थापित की गई है।

यह भी पढ़ें: Ranchi Land Scam: बढ़ती जा रही IAS छवि रंजन की मुश्‍किलें, झारखंड हाई कोर्ट ने डिफॉल्‍ट बेल देने से किया इंकार

धनबाद से कारीगर आकर बनाते हैं प्रतिमा

उदय नारायण सिंह के वंश मुखिया टिकैत राजमणि सिंह ने कहा कि यहां पर दुर्गा पूजा 1500 ई. शुरू की गई थी। उसके बाद चेतनारायण सिंह, खुदनारायण सिंह ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया और अब वे स्वयं दुर्गापूजा करते आ रहे हैं।

बताया कि यहां दुर्गा की प्रतिमा बनाने के लिए धनबाद से कारीगर बुलाए जाते हैं। आश्विन माह पड़ते ही दुर्गा प्रतिमा बनाने का कार्य शुरू हो जाता है। दुर्गा पूजा में जो भी खर्च होता है, उसका वहन टिकैत राजामणी सिंह करते हैं।

बकरे और भैंसे की दी जाती है बलि

दुर्गा मंडप परिसर की सजावट कलश स्थापना से लेकर विसर्जन तक की जाती है। कलश स्थापना से लेकर विसर्जन तक बकरे की बलि दी जाती है। साथ ही नवमी को संध्या भैंसे की बलि दी जाती है। भैंसे की बलि पड़ने के बाद उसे मिट्टी में प्रवाह कर दिया जाता है।

भैंसे की बलि राजा के घर से ही दी जाती है। यह प्रथा शुरू से ही चली आ रही है। पूर्वजों की यह प्रथा आज भी कायम है। बताया कि कलश स्थापन से ही पूजा-अर्चना के लिए दूरदराज से श्रद्धालु प्रतिमा का दर्शन करने के लिए आते है। मेला भी लगाया जाता है।

इस मंडप की काफी महिमा है। माता के दरबार में जो भी श्रद्धालु आते हैं, उनकी मनोकामनाएं माता पूर्ण करती हैं। यहां पर बिरनी प्रखंड के अलावे दूसरे प्रखंड से अष्‍टमी, नवमी की पूजा करने भक्‍त आते हैं। मनोकामनाएं पूर्ण होने के बाद भक्‍त माता को घूंघट व सिंगार का चढ़ावा चढ़ाते हैं- विनोद पांडेय, पुजारी।  

यह भी पढ़ें: अब 250 रु. में मिलेंगे महादेव के दर्शन, बाबा बैद्यनाथ मंदिर में शीघ्र दर्शनम शुल्क घटा; भक्‍तों के खिले चेहरे

आपके शहर की तथ्यपूर्ण खबरें अब आपके मोबाइल पर