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Giridih News: धनवार के पूर्व विधायक हरिहर नारायण का निधन, 90 की उम्र में रांची के RIMS में ली अंतिम सांस

धनवार के पूर्व विधायक हरिहर नारायण प्रभाकर की रांची के रिम्स में इलाज के दौरान शनिवार सुबह छह बजे मौत हो गई। 90 वर्षीय प्रभाकर धनवार प्रखंड क्षेत्र के भलुवाही गांव के रहने वाले थे। गुरुवार को वह ब्रेन हेमरेज की जद में आ गए थे। इलाज के लिए परिजन उनको रांची के रिम्स ले गए थे। वहां इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई।

By Jagran NewsEdited By: Aditi ChoudharyUpdated: Sat, 15 Jul 2023 04:04 PM (IST)
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धनवार के पूर्व विधायक हरिहर नारायण का निधन, 90 की उम्र में रांची के RIMS में ली अंतिम सांस

जागरण संवादाता, गिरिडीह : धनवार के पूर्व विधायक हरिहर नारायण प्रभाकर अब लोगों के बीच नहीं रहे। रांची के रिम्स में इलाज के दौरान शनिवार सुबह छह बजे उनकी मौत हो गई। 90 वर्षीय प्रभाकर धनवार प्रखंड क्षेत्र के भलुवाही गांव के रहने वाले थे।

गुरुवार को वह ब्रेन हेमरेज की जद में आ गए थे। इलाज के लिए परिजन उनको रांची के रिम्स ले गए थे। वहां इलाज के दौरान शनिवार को उनकी मौत हो गई। शाम में गांव के सार्वजनिक श्मसान घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। गांव में रांची से शव आने का इंतजार किया जा रहा है।

पहली बार भाजपा के टिकट से बने विधायक

बता दें कि हरिहर नारायण प्रभाकर ने 1977 और 1985 से 1995 तक तीन बार अलग-अलग पार्टियों के टिकट पर चुनाव जीतकर धनवार विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया था। 1977 में पहली बार भाजपा के टिकट पर विधायक बने थे। हालांकि, आपातकाल की वजह से वह ढ़ाई वर्ष ही प्रतिनिधित्व कर पाए थे।

1990 में कांग्रेस पार्टी की तरफ से लड़े चुनाव

साल 1985 में दूसरी बार भाजपा के टिकट पर चुनाव जीते और धनवार विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। 1990 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े ओर जीते दर्ज की। हालांकि, वह फिर से भाजपा में लौट आए थे। उसके बाद उन्हें बिहार राज्य इकाई का पार्टी सचिव बनाया गया।

2005 के बाद चुनाव से बनाई दूरी

2004 में तत्कालीन उद्योग मंत्री रवींद्र राय के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों से निपटने के पार्टी के तरीके से असंतोष का हवाला देकर हरिहर नारायण ने भाजपा से फिर इस्तीफा दे दिया। इसके बाद वह लोक जन शक्ति पार्टी में शामिल हो गये। 2005 में उन्होंने लोक जन शक्ति पार्टी के उम्मीदवार के रूप में धनवार सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन वह हार गए। इसके बाद वे कभी चुनाव ही नहीं लड़े।

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