जैन आचार्यश्री प्रसन्न सागर ने पारसनाथ पर्वत पर किया महापारणा, सांसद-केंद्रीय मंत्री, बाबा रामदेव रहे मौजूद
Giridih महापारणा महोत्सव जैन मुनि आचार्यश्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज ने पारसनाथ-मधुबन की पवित्र भूमि पर 557 दिन का सिंहनिष्क्रिडित व्रत व मौन साधना शनिवार को पूरी की। इस दौरान केवल 61 दिन लघु पारणा की और 496 दिन निर्जला उपवास में रहे।
By Pramod ChaudharyEdited By: Prateek JainUpdated: Sat, 28 Jan 2023 11:00 PM (IST)
गिरिडीह, जागरण संवाददता: जैन मुनि आचार्यश्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज ने पारसनाथ-मधुबन की पवित्र भूमि पर 557 दिन का सिंहनिष्क्रिडित व्रत व मौन साधना शनिवार को पूरी की। इस दौरान केवल 61 दिन लघु पारणा की और 496 दिन निर्जला उपवास में रहे। इस महासाधना के पूरे होने पर सात दिवसीय महापारणा महाप्रतिष्ठा महोत्सव मधुबन में शनिवार को शुरू हुआ।
पारसनाथ टोंक तपोस्थल से आचार्य प्रसन्न सागर जी नौ किमी नीचे उतरे और दोपहर एक बजे मेला मैदान में बने भव्य पंडाल में आसन ग्रहण किया। इस दौरान पालकी यात्रा में विराजे आचार्य का भजन लहरियों से अविस्मरणीय अभिनंदन-स्वागत किया गया। इसके पूर्व आचार्य ने पर्वत पर हजारों भक्तों के बीच महापारणा किया। उन्हें जल व सोंठ का रस पर्वत से उतरकर नीचे ग्रहण कर महापारणा करना था। बावजूद इसमें बदलाव किया गया, पर्वत पर ही उन्होंने महापारणा किया। इसके बाद ढोल -नगाड़े व भजन गाती टोलियों के साथ वे नीचे उतरे।
150 साधु-साध्वी चल रहे थे साथ
आचार्य के साथ लगभग 150 से अधिक साधु व साध्वी पैदल चले। पार्श्वनाथ टोंक तप स्थल से वे पैदल सीआरपीएफ कैंप तक पहुंचे और पुनः क्षेत्रपाल में रुके। वहां से सीआरपीएफ व जिला प्रशासन के भारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच पालकी में महोत्सव स्थल खेल मैदान तक पहुंचे। रास्ते में जगह-जगह उनका स्वागत देखते ही बन रहा था। श्रद्धालु पालकी के आगे-पीछे ढोल, बाजा व नृत्य कर उनका स्वागत कर रहे थे।ऐसे तोड़ा मौन व्रत
दिव्य ध्वनि के तहत आचार्य ने ओम, नम: व संस्कृत के श्लोकों का उच्चारण कर अपना मौन व्रत तोड़ा। उनकी दिव्य ध्वनि सुनने को हजारों श्रावक-श्राविका व श्रद्धालु हाथ जोड़े शांत मन से लालायित थे। महापुण्य के इस क्षण के सभी सहभागी बने।
कारिका की एक लाइन से मिला तप का साहस
प्रसन्न सागर जी महाराज ने कहा कि : आचार्य पद्मनाभम जी महाराज ने कारिका (गाथा) में चार चरण में अपनी बात कही है। कारिका की एक लाइन ने मुझे व्रत करने के लिए हिम्मत व साहस दिया। उस एक लाइन को अपनी धुरी बनाकर जियें तो हम असफल नहीं हो सकते। वह है आत्मा मरता ही नहीं है तो डर किस बात का। इतनी लंबी साधना में इतना बड़ा पर्वत जहां कोई नहीं हम, हवा और मेरी परछाई थी।खून की उल्टी हुई, शरीर पर ओले पड़ते रहे
आचार्य ने कहा कि व्रत करने के लिए हिम्मत, जुनून व साहस होना चाहिए। सात साल से साधना व उपवास कर रहे हैं। सिंहनिष्क्रिडित के 200 दिन के व्रत के लिए गुरु से आशीर्वाद लिया था। गुरु आचार्य विद्यासागर महाराज ने शरीर व स्वास्थ्य को ध्यान रखकर व्रत करने बात कही थी। उन्होंने कहा कि कोरोना के समय हस्तिनापुर में माता जी ने साथ दिया। जब सम्मेद शिखर के पर्वत पर चढ़े तो व्रत प्रारंभ के चौथे उपवास में खून की उल्टी हुई। इसके बाद चैतन्य माताजी ने उन्हें लौंग दिया।
आचार्यश्री ने कहा कि गुरु की प्रेरणा व संत का प्यार अद्भुत होता है। यह साधना हमने नहीं की है, गुरुओं के प्यार व वात्सल्य ने की है। मैंने लगातार पर्वत के ऊपर साधना की। शरीर मेरा है, धड़कनें उनकी चल रही है। पर्वत पर छह ऋतुएं देखीं। 26 मई को धूप थी, दोपहर में उसके बाद आंधी आई फिर तूफान व पानी बरसने लगा। नींबू के आकर के ओले गिरने लगे तो वहीं बेहोश हो गए। सभी गार्ड नीचे थे। कुछ देर में लोग पहुंचे और अंदर ले गए। इसके बाद सभी लोग नीचे ला रहे थे। इस बीच कंपाउंडर इंजेक्शन देने के बात कही। तभी उन्हें होश आ गया और उन्होंने कहा कि इंजेक्शन लेने के लिए साधना नहीं कर रहे।
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