वेद की ऋचाओं से गूंजा वातावरण, हवा में फैली समिधा की खुशबू
संवाद सहयोगी हीरोडीह (गिरिडीह) बसमनडीह में हो रहे प्राण प्रतिष्ठा उत्सव में प्रवचन के दौर
संवाद सहयोगी, हीरोडीह (गिरिडीह): बसमनडीह में हो रहे प्राण प्रतिष्ठा उत्सव में प्रवचन के दौरान अयोध्या से आई कथावाचिका मानस कोकिला चंद्रकला देवी ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जन्म की कथा कही। कहा कि महाराजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति को यज्ञ आरंभ करने की इच्छा रखी। राजा दशरथ की आज्ञानुसार श्यामकर्ण घोड़ा चतुरंगिनी सेना के साथ छुड़वा दिया गया। महाराज दशरथ ने समस्त मनस्वी, तपस्वी, विद्वान ऋषि-मुनियों तथा वेदविज्ञ प्रकांड पंडितों को यज्ञ संपन्न कराने के लिए बुलावा भेज दिया। महान यज्ञ का विधिवत शुभारंभ किया गया। संपूर्ण वातावरण वेदों की ऋचाओं के उच्च स्वर में पाठ से गूंजने तथा समिधा की सुगंध से महकने लगा। समस्त पंडितों, ब्राह्मणों, ऋषियों आदि को यथोचित धन-धान्य, गौ आदि भेंटकर सादर विदा करने के साथ यज्ञ की समाप्ति हुई।
राजा दशरथ ने यज्ञ के प्रसाद चरा (खीर) को अपने महल में ले जाकर अपनी तीनों रानियों में वितरित कर दिया। प्रसाद ग्रहण करने के बाद तीनों रानियों ने गर्भधारण किया। लग्न का उदय होते ही महाराज दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या के गर्भ से एक शिशु का जन्म हुआ जो कि नील वर्ण, चुंबकीय आकर्षण वाले, अत्यंत तेजोमय, परम कांतिवान तथा अत्यंत सुंदर था। इसके बाद महारानी कैकेयी के एक तथा तीसरी रानी सुमित्रा ने दो तेजस्वी पुत्रों को जन्म दिया। उस वक्त अप्सराएं नृत्य करते हुए बधाई गीत गाने लगी कि सारे मुहल्ले में हल्ला हो गया, माता कौशल्या को लल्ला हो गया। चारों पुत्रों का नामकरण संस्कार महर्षि वशिष्ठ द्वारा किया गया तथा उनके नाम रामचंद्र, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न रखे गए। राम निरंतर माता-पिता और गुरुजनों की सेवा में लगे रहते थे। उनका अनुशरण शेष तीन भाई भी करते थे। मानस कोकिला की कथा सुनकर श्रोताओं ने भक्ति की गंगा में डुबकी लगाई।