अब बस भगवान का ही है सहारा...टनल में फंसे मजूदरों के घरवालों के नहीं थम रहे आंसू, ईश्वर की आराधना में जुटा परिवार
उत्तराखंड के उत्तरकाशी में सुरंग में फंसे 41 मजदूरों में से झारखंड के 15 श्रमिक भी हैं जिनके परिवार के लोगों को पल-पल चिंता निगल रही है। इनमें बिरनी केशोडीह निवासी हेमलाल महतो का 40 वर्षीय पुत्र विश्वजीत वर्मा व उनके साढू सिमराढाब के बुधन महतो का इकलौता पुत्र 25 वर्षीय सुबोध भी है। परिवार को अब बस भगवान का ही सहारा है।
जांस, गिरिडीह/बिरनी। उत्तराखंड के उत्तरकाशी में सुरंग में फंसे मजदूरों में से बिरनी प्रखंड के सिमराढाब के सुबोध कुमार वर्मा और केशोडीह के विश्वजीत वर्मा के सकुशल टनल से निकलने की कोई खबर गुरुवार शाम तक यहां नहीं पहुंची। नतीजतन उनके स्वजनों में चिंता व मायूसी बढ़ गई है।
इंतजार की घड़ी होती जा रही लंबी
12 दिनों से सभी मजदूर सुरंग में फंसे हुए हैं। इनके घरों की चैन चिंता निगल रही है। दोनों के घरों में सभी लोगों का रो-रो कर बुरा हाल है। स्वजनों को जिनके लौटने इंतजार है, वह घड़ी दर घड़ी लंबा होता जा रहा है।
अपनों की आस में स्वजनों का यहां रोते-बिलखते दिन कट रहा है, जबकि दोनों के दो स्वजन का दिन-रात वहां टनल के मुंहाने पर भी पर अपनों से मिलने की उम्मीद में कट रहा है।
पल-पल स्वजनों को निगल रही है चिंता
बिरनी केशोडीह निवासी हेमलाल महतो का 40 वर्षीय पुत्र विश्वजीत वर्मा व उनके साढू सिमराढाब के बुधन महतो का इकलौता पुत्र 25 वर्षीय सुबोध चारधाम आलवेदर रोड की यमुनोत्री मार्ग पर सिलक्यारा में बन रहे सुरंग में भूस्खलन के बाद 12 नवंबर की सुबह से फंसे हैं।
वहां झारखंड के 15 श्रमिक समेत 41 श्रमिकों की जान भी जाेखिम में पड़ी है। उनके बुधवार देर रात या गुरुवार सुबह तक निकाले जाने की उम्मीद थी, पर गुरुवार शाम छह बजे तक किसी को भी सुरक्षित नहीं निकाला जा सका।
मजदूर सुबोध वर्मा व केशोडीह के मजदूर विश्वजीत वर्मा के भाई पिछले दस दिनों से सुरंग के बाहर खड़े होकर उनका इंतजार कर रहे है। गुरुवार शाम छह बजे तक दोनों मजदूर सुरंग से बाहर नहीं निकलने की खबर सुनते ही यहां दोनों के स्वजनों की चिंता और बढ़ गई।
बिरनी के सिमराढाब के मजदूर सुरंग में फंसे मजदूर के माता व पिता की चिंता बढ़ी खाट पर लेटे हुए।
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अब बस भगवान का ही है आसरा
मजदूर सुबोध की मां पिछले दस साल से गंभीर बीमारी से ग्रसित है। गुरुवार शाम तक बेटे के सुरंग से निकलने की कोई खबर उन तक नहीं पहुंची तो वह बेचैन हो उठी। मां की आंखों से आंसू थम नहीं रहे हैं।
सुबोध के पिता बुधन महतो व मां चंद्रिका देवी ने शाम को बताया कि इकलौता पुत्र है। बाहर कमाने के लिए पहली बार अपने मौसा विश्वजीत वर्मा के साथ गया था, ताकि मां का इलाज करा सके।
बुधवार को गुरुवार को पुत्र के निकलने की उम्मीद की खबर मिली तो खुशी का ठिकाना नहीं था। पर शाम तक कोई खबर नहीं मिली। अब तो भगवान पर ही भरोसा है। पुत्र घर से 16 सौ किलोमीटर दूरी पर उत्तरकाशी में फंसा है। केवल सुरक्षित बाहर निकाले जाने का भरोसा पर भरोसा मिल रहा है।
ईश्वर की आराधना में जुटा परिवार
सुबोध की माता पिता समेत पूरे स्वजन सुरक्षित बाहर निकलने के लिए देवी-देवता की पूजा कर रहे हैं। कहा कि पुत्र को कहीं कुछ हो गया तो घर का पूरा संसार ही खत्म हो जाएगा।
विश्वजीत के पत्नी चमेली देवी ने बताया कि पति को कहीं कुछ हो गया तो बच्चों की भविष्य पर भी दुःख का पहाड़ टूट जाएगा। पति की मजदूरी के घर के सात सदस्यों की भूख मिट रही थी। अब आगे क्या होगा, कहा नहीं जा सकता। ऊपर वाले पर ही आसरा है।
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