नए साल में और बेहतर हो जाएगी झारखंड की स्वास्थ्य सुविधाएं, इन शहरों में बनेंगे 50 बेड वाले क्रिटिकल केयर हॉस्पिटल
Jharkhand News नए साल में गोड्डा की स्वास्थ्य सेवाओं के बेहतर होने की उम्मीद है। यहां गोड्डा और महागामा अनुमंडल में क्रमश 50-50 बेड के क्रिटिकल केयर हॉस्पिटल इस साल बन कर तैयार होंगे। इसका काम चालू है जबकि महागामा के महुआरा मौजा में कोल इंडिया की ओर से 300 बेड का अत्याधुनिक अस्पताल की आधारशिला भी इसी साल रखी जाएगी।
विधु विनोद, गोड्डा। नए साल में गोड्डा की स्वास्थ्य सेवाओं के बेहतर होने की उम्मीद है। यहां गोड्डा और महागामा अनुमंडल में क्रमश: 50-50 बेड के क्रिटिकल केयर हॉस्पिटल इस साल बन कर तैयार होंगे। इसका काम चालू है, जबकि महागामा के महुआरा मौजा में कोल इंडिया की ओर से 300 बेड का अत्याधुनिक अस्पताल की आधारशिला भी इसी साल रखी जाएगी।
राज्य सरकार ने इसके लिए कोल इंडिया से करार किया है। कोल इंडिया की ओर से 300 बेड अस्पताल के लिए राशि भी आवंटित कर दी है। वहीं नए साल में सदर अस्पताल की क्षमता 200 बेड की हो जाएगी। वर्तमान में यह 100 बेड का अस्पताल है। सदर अस्पताल के द्वितीय तल पर करीब सवा चार करोड़ रुपये की लागत से भवन निर्माण और लिफ्ट आदि का काम अंतिम चरण में है।
48 स्वास्थ्य उपकेंद्र आयुष्मान आरोग्य मंदिर में होंगे तब्दील
इसी माह इसकी शिफ्टिंग होगी, जबकि इस साल जिले के 48 स्वास्थ्य उपकेंद्र आयुष्मान आरोग्य मंदिर में तब्दील होंगे। इसमें 23 उपकेंद्रों में ईसीएल की ओर से सीएसआर की राशि दी गई है। वहीं, 25 उपकेंद्रों को एनएचएम की ओर से आयुष्मान आरोग्य मंदिर में तब्दील किया जाएगा।जिला प्रशासन की देख-रेख में इन उपकेंद्रों को हेल्थ व वेलनेस सेंटर के रूप में विकसित करने का काम चल रहा है। आने वाले दिनों में इनकी पहचान आयुष्मान आरोग्य मंदिर के रूप में होगी।
बता दें कि कोरोना काल के बाद यहां स्वास्थ्य संसाधनों में कई आयाम जुटे हैं। पीएम केयर फंड से जहां सदर अस्पताल में ऑक्सीजन प्लांट का निर्माण हुआ। वहीं पोड़ैयाहाट और सुंदरपहाड़ी के सामुदायिक अस्पतालों में डीएमएफटी मद से पीएसए ऑक्सीजन प्लांट लगे। तीनों ऑक्सीजन प्लांट चालू हैं। अभी इन अस्पतालों में ऑक्सीजन सपोर्ट बेड भी व्यवस्थित किए गए हैं।
अभी जिले में दक्ष चिकित्सकों की भारी कमी है। यहां चिकित्सकों के 150 पद सृजित है। इसमें 50 डॉक्टर ही प्रतिनियोजित हैं। 100 पद रिक्त है। इसका खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ता है। दुर्घटना के शिकार या बर्न केस में यहां से मरीजों को बाहर रेफर किया जाता है।
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