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कभी करते थे पलायन, आज मिट्टी से निकाल रहे सोना; अब आदिवासियों को रोजगार के लिए महानगरों की खाक छानने की जरूरत नहीं

Godda News बीते 23 सालों में झारखंड के गोड्डा में आदिवासी समाज सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त हुआ है। आदिवासी लोग खेती कर काफी आमदनी कर रहे हैं। 500 से अधिक आदिवासी परिवारों को सिर्फ सब्जी से ही लाखों की आमदनी हो रही है। यहां के आदिवासी युवक रोजगार की तलाश में महानगरों की खाक छानते थे लेकिन अब गांव में ही उन्हें सिंचाई के संसाधन मिल गए है।

By Vidhu VinodEdited By: Aysha SheikhUpdated: Fri, 17 Nov 2023 09:51 AM (IST)
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अब आदिवासियों को रोजगार के लिए महानगरों की खाक छानने की जरूरत नहीं
विधु विनोद, गोड्डा। राज्य गठन के बीते 23 वर्षों के दौरान यहां के आदिवासी समुदायों के जीवन में कई सकारात्मक बदलाव आए हैं। यह बदलाव शिक्षा, स्वास्थ्य, के साथ ही बुनियादी सुविधाओं में भी देखने को मिल रहे हैं। इससे आदिवासी समाज सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त हुआ है।

गोड्डा जिले के पोड़ैयाहाट प्रखंड की आदिवासी बहुल पंचायत लाठीबारी की तस्वीर भी बदली है। पांच- छह वर्ष पूर्व तक यहां के आदिवासी युवक रोजगार की तलाश में महानगरों की खाक छानते थे लेकिन अब गांव में ही उन्हें सिंचाई के संसाधन मिल गए है। उनकी जमीन पर तीन फसलें उपज रही है।

इससे बड़ी आबादी समृद्धि की राह पर चल पड़ी है। पूर्व मुखिया सिमोन मरांडी और वर्तमान में मुखिया बनी उनकी पत्नी रोजमेरी मुर्मू के प्रयासों ने रंग लाया है। यहां वर्ष 2018 में नाबार्ड के सहयोग से राष्ट्रीय जल छाजन कार्यक्रम के तहत तत्कालीन मुखिया सिमोन मरांडी ने लाठीबारी पंचायत में एक साथ 19 तालाब व चेकडैम का निर्माण कराया।

इससे आदिवासी किसानों की जमीन को सिंचाई की सुविधा मिल गई। अब उक्त पंचायत में सब्जी और अनाज की भरपूर पैदावार शुरू हो गई। हर सीजन में यहां के 500 से अधिक आदिवासी परिवारों को सिर्फ सब्जी से ही लाखों की आमदनी हो रही है। अब गांव का कोई युवक दूसरे प्रदेशों में पलायन नहीं करता है। हर घर में बाइक है।

एंड्रायड फोन से कृषि संबंधी आनलाइन जानकारियां हासिल करते है। सिंचाई सुविधा मिलने पर किसानों की मेहनत ने यहां की दिशा और दशा बदल दी है। कभी बंजर रहने वाली उनकी मिट्टी सोना उगल रही है।

नाबार्ड का मिला सहयोग

पंचायत के किसान राजेश किश्कू, सुनीता देवी, बबलू सोरेन, मुन्ना मिर्धा, परमेश्वर टुडू, ढेना मुर्मू, मुरारी सोरेन आदि ने बताया किया वर्ष 2017-2018 के दौरान जर्मनी के बैंक केएफडब्लू की ओर से नाबार्ड के सहयोग से मिट्टी जांच व जल छाजन कार्यक्रम चलाया गया।

तत्कालीन मुखिया सिमोन मरांडी ने पंचायत के गांव धारोपट्टा, रघुनाथपुर और लाठीबारी में उक्त कार्यक्रम को धरातल पर उतारने में अहम भूमिका निभाई। इस दौरान धारोपट्टा गांव में दस तालाब बनाए गए। वहीं रघुनाथपुर में दो और लाठीबारी में सात तालाब व चेकडैम का निर्माण कराया गया।

इससे उनकी बंजर जमीन को सालों भर सिंचाई की सुविधा मिल गई। तालाब व चेकडैम बनने से भूजल स्तर भी बेहतर हो गया। मिट्टी जांच कर किसानों को बहुफसलीय खेती का प्रशिक्षण दिया गया। इसमें सब्जियों और श्रीअन्न की खेती पर अधिक जोर दिया गया। गांव में देखते ही देखते किसान खेती में रमने लगे।

उपज होने से आय भी बढ़ती गई

नाबार्ड की ओर से लाठीबारी पंचायत में बहुफसलीय खेती के लिए किसानों को प्रशिक्षित कर उन्हें संसाधन मुहैया कराया गया। बीते तीन वर्षों में यहां केएफडब्लू स्वाइल प्रोजेक्ट के तहत 55 लाख रुपये जल व मिट्टी संरक्षण में व्यय किए गए। इसी माह वहां मशरूम और पोषण वाटिका के लिए बीज का वितरण किया गया है। इसके सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। - नूतन राज, डीडीएम, नाबार्ड, गोड्डा।

लाठीबारी पंचायत के विकास के लिए योजना

बद्ध तरीके से काम किया जा रहा है। पहले यहां पलायन की समस्या थी। कालांतर में यहां सिंचाई संसाधनों को दुरुस्त कर हर हाथ को काम और हर खेत को पानी के संकल्प के साथ नाबार्ड के कार्यक्रम को धरातल पर उतारा गया है। आज यहां 500 से अधिक आदिवासी किसान सुखी संपन्न जीवन जी रहे हैं। खेतों से ही किसानों की उपज बिक जाती है। - सिमोन मरांडी, पूर्व मुखिया, लाठीबारी पंचायत।

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