धर्म, कला और वास्तुशिल्प की अनूठी कीर्ति है नवरत्न गढ़
की किरणों प्रस्फूटित होते हुए दिखाई पड़ रही है। अब यहां की बदहाली दूर होगी। ग्रामीण रविदास और गोविद उरांव का कहना है कि ऐतिहासिक धरोहर को समेटे यह किला पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित होगा। लोगों को रोजगार भी मिलेगा।
मो. उमर अंसारी, सिसई (गुमला) : यहां धर्म के प्रति आस्था दिखती है, कला का दर्शन होता है और वास्तुशिल्प के अद्भूत व अविश्वसनीय चिन्ह मिलते हैं। सिसई प्रखंड के नगर स्थित नवरत्न गढ़ का भग्नावाशेष इसके गौरवशाली इतिहास का एहसास कराता है। यहां जमीन के अंदर यत्र-तत्र प्रतिमा व वास्तु के अवशेष भी मिले हैं। इसके संरक्षण के लिए पुरातत्व विभाग कई वर्षो से इसे राष्ट्रीय धरोहर घोषित कराने के लिए प्रयत्नशील रहा था। राष्ट्रीय धरोहर का दर्जा मिलने से इस ऐतिहासिक और पुरातात्विक स्थल के संरक्षण और विकास के एक नई उम्मीद जगी है। यहीं पर सुप्रसिद्ध कपिलनाथ मंदिर है, जहां धर्म की आस्था और कला का संगम देखने को मिलता है। क्या है इतिहास
छठी-सातवीं शताब्दी में मध्य एवं पूर्वोत्तर भारत में तीन राजवंशों का प्रभुत्व था। बंगाल के पाल, झारखंड व ओडिशा के भूभाग में नाग और मध्य प्रदेश के भूभाग में भोज वंश के बीच आपसी वर्चस्व और साम्राज्य विस्तार को लेकर त्रिपक्षीय संघर्ष हुआ था। नागवंशियों का मूल धर्म शैव था। यह वंश अपने राज्य की सुरक्षा और धर्म की रक्षा के लिए लगातार संघर्ष करता रहा। उसी संघर्ष की परिणति थी कि नागवंशी अपनी राजधानी बार-बार बदलते रहे। रातू, जरियागढ़, सिसई के नगर व पालकोट के लालगढ़ में नागवंशियों की कृतियां बिखरी पड़ी है। ऐतिहासिक तथ्यों से इस बात का साक्ष्य मिलता है कि छोटानागपुर के नागवंशी राजाओं के सर्वोत्तम कृतियों में से एक नवरत्नगढ़ की किला है। दुर्जनशाल ने बसाया था नगर जनश्रुतियों और ऐतिहासिक तथ्यों के विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि सोलवहीं-सत्रहवीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य का तेजी से विस्तार हो रहा था। नागवंशियों के ऊपर आक्रमण की नीतियां बनायी जा रही थी। तब नागवंशी राजा ने अपने धर्म-संस्कृति और साम्राज्य की रक्षा के लिए जंगलों से आच्छादित और पहाड़ों से घीरे नवरत्न गढ़ की स्थापना की। इस नगर के संस्थापक दुर्जनशाल की मृत्यु के बाद समय ने करवट लिया। परिस्थितियों में बदलाव आया और बाद में यहां बिरानगी छाने लगी। दुर्जन शाल ने यहां पर छह मंजिला किला बनवाया था। समय के साथ संरक्षण के अभाव में दुर्जनशाल का किला ढहने लगा। अब यहां तीन मंजिल वाला किला ही बचा है। यह तीन मंजिला किला भी खंडर होता जा रहा है। पुरातात्विक अवशेषों के संरक्षण के लिए भारतीय पुरातत्व संरक्षण विभाग प्रयत्नशील रहा है। विश्व की अनमोल विरासत की सुरक्षा के लिए डेढ़ दशक से चल रहे प्रयास के कारण इसे यह दर्जा प्राप्त हुआ है। कहा जाता है कि नवरत्न गढ़ में रानी रूकवेल रहा करती थी। जहां कमल सरोवर का निर्माण कराया गया था। कपिलनाथ मंदिर और भैरव मंदिर का भी निर्माण कराया गया था। यहां प्रकृति की अद्भूत छटा कभी आकर्षण का केंद्र हुआ करता था, जो अब भी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। यहां इस जिला की किला की दीवारें काफी चौड़ी है। 33 इंच मोटी दीवार वाले इस किला में रानी निवास, कचहरी घर, कमल सरोवर, भूल भुलैया का भी निर्माण कराया गया था। इन दीवारों पर बड़े ही करीने के साथ पशुओं के चित्र उकेरे गए थे। पशुओं में घोड़ा और सिंह की आकृति चारों स्तंभों पर उकेरे गए थे जो आज भी देखने को मिल रहे हैं। यहां के दीवारों पर नाग के भी चित्र देखने को मिलते हैं। नाग भोले शंकर के गले का आभूषण हैं और नागवंशियों इसे दीवारों में चित्रित कराया था। इस परिसर में और किला के मुख्यकक्ष में बड़ी-बड़ी मूर्तियां देखने को मिलती है। कहते हैं लोग इतिहास के गर्भ में प्राचीन संस्कृति के अवशेष होने के कारण यहां के स्थानीय लोगों को हमेशा से गर्व महसूस होता रहा है। यहां के पुरातात्विक अवशेषों के अनुरक्षण, संरक्षण और संवर्द्धन की नई उम्मीदें जगी है। इस ऐतिहासिक कृति को संरक्षित करने से यहां पर्यटन विकास की असीम संभावनाएं जगी है।