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शहीद मुंडन ¨सह के गांव में बुनियादी सुविधाओं का अभाव

गुमला : गुमला का पहाड़ पनारी एक ऐतिहासिक गांव है। यह गांव रातू महाराजा के शासकीय क्षेत्र में आता था। यहां के शहीद मुंडन सिंह ने स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई लड़ी थी। यह पहाड़ पनारी गांव आज भी बुनियादी सुविधाओं का अभाव झेल रहा है।

By JagranEdited By: Updated: Tue, 03 Apr 2018 09:33 PM (IST)
शहीद मुंडन ¨सह के गांव में बुनियादी सुविधाओं का अभाव

गुमला : गुमला का पहाड़ पनारी एक ऐतिहासिक गांव है। यह गांव रातू महाराजा के शासकीय क्षेत्र में आता था और इस गांव को एक परगना का दर्जा प्राप्त था। मुंडल ¨सह पहाड़पानारी गांव के परगइनत थे। लगान वसूली के लिए अंग्रेजी शासन के बढ़ते दबाव के खिलाफ मुंडल ¨सह और वासुदेव कोना के जमींदार बख्तर साय ने मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। इन दोनों वीर शहीदों की गाथा अब भी प्रासंगिक है फिर भी स्वतंत्रता संग्राम के अमर शहीद मुंडल ¨सह की जन्मभूमि पहाड़ पनारी गांव आजादी के सात दशक बाद भी उपेक्षित है। यह गांव जिला मुख्यालय से महज दस किलोमीटर की दूर पर है लेकिन अब तक इस गांव का समुचित विकास नहीं हुआ है। गांव तक पहुंचने के लिए अच्छी सड़कें नहीं है। यह क्षेत्र कृषि प्रधान है लेकिन ¨सचाई का पर्याप्त संसाधन नहीं है। अखिल भारतीय क्षत्रिय महासंघ के अध्यक्ष सूरजदेव ¨सह ने पहाड़ पनारी गांव का भ्रमण करने के बाद इस ऐतिहासिक गांव में शहीद की प्रतिमा स्थापित करने का सपना दो वर्ष पूर्व देखा था। वह सपना बुधवार को शहादत दिवस कार्यक्रम के अवसर पर पूरा होगा। प्रतिमा का अनावरण कर ऐतिहासिक गांव को एक नया पहचान देने का काम किया जाएगा। पहाड़ पनारी गांव का इतिहास चार से पांच सौ साल पुराना है। वर्तमान में शहीद मुंडल ¨सह का आठवां व नौवां पीढ़ी गांव में खेती गृहस्थी से अपना आजीविका चला रहे हैं। पहाड़ पनारी गांव में मुंडन ¨सह का वंशावली सुरक्षित है। ग्रामीण सुरेन्द्र ¨सह ने बताया कि पूर्वजों के अनुसार उनके पूर्वज विक्रम संवत 1991 में चन्द्रभान ¨सह राजस्थान मूल से आए थे। शहीद मुंडल ¨सह सूरजभान ¨सह के आठवीं पीढ़ी के थे, जिन्हें रातू महराजा द्वारा परगनइत का दर्जा दिया गया और अभी वे शहीद मुंडन ¨सह के आठवां नौवां पीढ़ी गांव में रहते हैं। पहाड़ पनारी में भंडार था जहां दुर्गा पूजा भी होता था। दरबारी लगती थी लेकिन अब शहीद मुंडन ¨सह से जुड़े अस्तित्व जमींददोज हो गया है। भंडार गृह का अवशेष अब भी देखा जा सकता है। उनका मानना है कि जब ब्रिटिश शासन द्वारा ग्रामीणों पर शोषण किया गया, तब वासुदेव कोना के जागीदार बख्तर साय से मिलकर अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी थी। इनकी वीरता की गाथा आज भी प्रासंगिक है। शहीद बख्तर साय के नाम के साथ मुंडन ¨सह का नाम जुड़ा है। बख्तर साय वासुदेव कोना के रहने वाले थे और मुंडन ¨सह पहाड़ पनारी के। स्वतंत्रता आंदोलन के वीर शहीदों के नाम वासुदेव कोना व रायडीह में कार्यक्रम आयोजित होते हैं। शहीद मुंडन ¨सह के नाम से जुड़ा गांव पहाड़ पनारी उपेक्षित है। गांव में उनके वंशज आज भी उपेक्षित है। गांव में पीने की पानी और ¨सचाई की कोई सुविधा नहीं है।

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