बाबू रामनारायण सिंह को उन्हें याद करा गए मोदी
पीएम ने सभा की शुरुआत झारखंड के विभूति बाबू रामनारायण सिंह
जागरण संवाददाता हजारीबाग : पीएम ने सभा की शुरुआत झारखंड के विभूति बाबू रामनारायण सिंह को याद कर की। संविधान सभा के सदस्य और हजारीबाग के प्रथम निर्दलीय सांसद के योगदान की लगभग तीन मिनट तक पीएम ने चर्चा की। हजारीबाग के जिस विभूति की कृतियों को पूरा देश नहीं जान रहा था, उसे मोदी याद करा गए। बता गए कि हजारीबाग के पास वह अनमोल विभूति थी जिसने एक विधान एक निधान एक संविधान की बात की थी। संबोधन में मोदी ने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर आपातकाल तक इस धरती ने कई महानायकों को देखा है। इसी धरती ने हमें बाबू रामनारायण सिंह जैसा सेनानी दिया, जिन्होंने संविधान निर्माण में अपना योगदान दिया। साथ ही एक देश एक विधान के लिए काम किया। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी से मिलकर अलग प्रधान-अलग संविधान के विरोध में काम करने के लिए संगत किया। मुझे खुशी है कि उनकी भावना के अनुरुप आज जम्मू कश्मीर में भारतीय संविधान पूरी तरह से लागू है। हजारीबाग के बाबू रामनारायण सिंह उन गिने चुने लोगों में से थे जिनको कांग्रेस का छलकपट आजादी के समय ही भली भांति अंदाज लग गया था। उन्होंने कांग्रेस की वोट बैंक की राजनीति पर उनके तौर तरीके पर चुनौती दी, उन्हें ललकारा। 70 साल पहले ही उन्होंने कांग्रेस भ्रष्टाचार की दलदल बताया था। कौन थे बाबू रामनारायण सिंह बाबू रामनारायण सिंह 1927 से 1946 तक केंद्रीय विधानसभा के सदस्य के रूप में अपने विचारों से राष्ट्रवाद की धारा प्रवाहित करते रहे। 1946 में जब संविधान सभा का गठन हुआ तब उसके सदस्य के रूप में रामनारायण बाबू, पंचायत राज, शक्तियों का विक्रेंद्रीकरण, मंत्री व सदस्यों का अधिकतम 500 रुपये करने की वकालत उन्होंने की थी। संविधान सभा में ही रामनारायण बाबू ने कहा था कि देश के प्रधानमंत्री को प्रधान सेवक कहा जाए तथा नौकरशाह लोक सेवक के रुप में जान जाए। ऐसा इसलिए कि राजतंत्र की आत्मा कहीं लोकतंत्र में प्रवेश कर जाए, इस बात का उन्हें डर था। मंत्रीमंडल को सेवक मंडल के रुप में अपनाया जाए, यह सुखद संयोग है कि संविधान सभा के प्रथम कार्यवाही नौ दिसंबर 1946 को शुरु हुई थी। ठीक 73 वर्ष के बाद आज के दिन ही प्रधानमंत्री ने इस विभूति की चर्चा कर शब्दाजंलि दी। रामनारायण सिंह हजारीबाग पश्चिम संसदीय क्षेत्र के अंतरिम सांसद रहे। प्रथम आम चुनाव 1952 में हुआ। तब निर्दलीय प्रत्याशी बनकर कांग्रेसी उम्मीदवार को हराया था। आजादी के मात्र नौ वर्षों के बाद रामनाराण बाबू ने स्वराज लूट गया नामक पुस्तक लिखि जिसे लोकनायक ने भारतीय राजनीति का आचार संहिता कहा था। लोकसभा में भी रामनारायण बाबू ने बड़े हीं बेबाकी से अपने विचार रख योग विद्या की पढ़ाई के लिए संसद में योग विश्वविद्यालय की स्थापना की मांग की थी। झारखंड अलग राज्य की मांग लोकसभा में उठाने वाले वे पहले सांसद थे। राज्य पुनर्गठन आयोग के समक्ष उन्होंने स्मार पत्र भी प्रस्तुत किया था। 24 जून 1964 को उनकी मौत सड़क दुर्घटना में घायल होने के बाद चतरा अस्पताल में हुई थी।