Move to Jagran APP

Kargil Vijay Diwas 2023: बलिदानी विद्यानंद सिंह के नाम से कांपते थे दुश्‍मन, सीने में खाई थीं छह-छह गोलियां

26 जुलाई यानि कि बुधवार को कारगिल दिवस के 25 गौरवशाली वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। इस मौके पर अमर बलिदानी विद्यानंद सिंह के बलिदान को याद किया जा रहा है जो सीने में छह-छह गोलियां खाने के बाद भी दुश्‍मनों के सामने मजबूती से डटे रहे। वह नौ जून को वीरगति को प्राप्त हुए थे। वह बिहार रेजीमेंट की पहली बटालियन में तैनात थे।

By arvind ranaEdited By: Arijita SenUpdated: Tue, 25 Jul 2023 05:18 PM (IST)
Hero Image
वीरगति को प्राप्‍त हुए अमर बलिदानी विद्यानंद सिंह की तस्‍वीर।
अरविंद राणा, हजारीबाग। अपने अदम्य साहस और सीने पर छह-छह गोलियां खाने वाले अमर बलिदानी विद्यानंद सिंह नौ जून को वीरगति को प्राप्त हुए थे। वह बिहार रेजीमेंट की पहली बटालियन में तैनात थे। बलिदानी के बटालियन को कारगिल के द्रास से लगी सीमा पर 17 हजार फीट की उंचाई पर स्थित बटालिक सेक्टर की चोटी को कब्जा मुक्त कराने का जिम्मा मिला था।

यह चोटी द्रास और बटालिक सेक्टर के लिए महत्वपूर्ण था और यहां से गुजरने वाली हाईवे पर देश के दुश्मन गोलीबारी कर रहे थे, जिससे आवश्यक रसद और समान सेना तक पहुंचने में परेशानी हो रही थी। रणनीतिक दृष्टिकोण से इस चोटी पर जीत महत्वपूर्ण था। पांच को यह टास्क मिला था और छह और सात जून, 1999 को विद्यानंद सिंह की टुकड़ी ने पहाड़ी पर चढ़ाई प्रारंभ कर दी थी।

नौ की रात पहाड़ी पर चढ़ने के बाद पाकिस्तानी दुश्मनों से बंकर पर कब्जा करने को लेकर हुई आमने-सामने की लड़ाई में विद्यानंद सिंह को कई गोलियां लगी थीं। आतंकियों को ढेर करने के दौरान विद्यानंद सिंह की टुकड़ी के कई जवान बलिदान हो गए थे। इनके सीने पर भी छह से अधिक गोलियां लगी थीं। बावजूद इसके प्लाटून ने चोटी पर अपना कब्जा जमा लिया था। इस बीच जब तक उनके पास सहायता पहुंचती वे बलिदान हो चुके थे।

संक्षिप्त सूचना पर कारगिल पहुंची थी बटालियन

कारगिल बलिदानी विद्यानंद सिंह की नागालैंड में तैनाती थी और नागा विद्रोहियों से बहादुरी पूर्वक लोहा लेने के कारण उन्हें पदकों से नवाजा भी गया था। विद्यानंद ने 1985 में बिहार रेजिमेंट की पहली बटालियन में योगदान दिया था।

अपने मजबूत कद-काठी के लिए वह सेना में मशहूर थे और यहीं कारण है कि उन्होंने 1991 में नागालैंड में तैनाती के दौरान नागा विद्रोहियों के दांत खट्टे कर दिए थे। उनके असाधारण प्रदर्शन के लिए उन्‍हें वीर पदक से नवाजा गया था।

बलिदानी विद्यानंद सिंह के चाचा भी फौज में थे। चाचा की वर्दी से प्रेरणा लेकर वह सेना में शामिल हुए। मूल रुप से विद्यानंद सिंह बिहार के भोजपुर जिला के प्रखंड संदेश के पनपुरा गांव के निवासी थे।

21 मई को पहुंचे थे कारगिल, नौ जून को दिया बलिदान

बिहार रेजिमेंट की पहली बटालियन की तैनाती नागालैंड में थी। युद्ध की घोषणा होते ही बटालियन को 21 मई को कारगिल में तैनात किया गया था। 10 दिनों तक भौगोलिक जानकारी लेने के बाद बटालियन को 17 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित बटालिक सेक्टर की चोटी को अपने कब्जे में लेने का निर्देश प्राप्त हुआ था।

नौ जून की रात को अंधेरे में जवानों की टुकड़ी ने 17 हजार फीट की खड़ी चढ़ाई पूरा कर दुश्मनों पर हमला बोला था। इनके साथ कई साथियों ने वीरगति को प्राप्त किया था। बलिदानी होने के बाद विद्यानंद सिंह का पार्थिव शरीर नौ जून, 1999 को पटना पहुंचा था। बलिदानी विद्यानंद सिंह के दामाद बीरेंद्र सिंह भी फौज से सेवानिवृत हुए हैं।

हजारीबाग में रहता है पूरा परिवार, संचालित हैं कई संस्थान

बलिदानी विद्यानंद सिंह का पूरा परिवार हजारीबाग में रहता है। परिवार में बलिदानी की पत्नी पार्वती देवी, पुत्र रविशंकर, शिव शंकर और दो बेटियां रहती हैं। उनके बलिदान पर पूरा देश रोया था। बिहार सहित भोजपुर व हजारीबाग में बलिदानी विद्यानंद सिंह के नाम पर कई संस्थान संचालित हैं और बलिदान दिवस तथा कारगिल दिवस पर ट्रस्ट के माध्यम से कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।