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यहां है पूजा की अनोखी परंपरा : पानी वाली होली अौर साल के फूलों से श्रृंगार

बाहा पर्व को संताल समाज की होली भी कहा जाता है। ऐसे इसलिए क्योंकि बाहा पर्व पर पूजा करने के बाद एक दूसरे पर पानी डालने की परंपरा है। हां रंगों का इस्तेमाल वर्जित हैं।

By Rakesh RanjanEdited By: Updated: Tue, 12 Mar 2019 12:11 PM (IST)
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यहां है पूजा की अनोखी परंपरा : पानी वाली होली अौर साल के फूलों से श्रृंगार
जमशेदपुर, जागरण संवाददाता। सबके कान में सजे साल के फूल। महिलाओं के जूड़ों तक में साल के फूल। सरजामदा निदिर टोला में नजारा बदला-बदला था। हो भी क्यों न, आखिर मौका भी तो खास था। गांव का कोना-कोना सज-धज कर तैयार। हर शख्स काचा धोती-फुटा साड़ी में। हरे रंग की। जी हां, मौका था बाहा बोंगा का। प्रकृति की पूजा का। उस पूजा का जिसमें संताल आदिवासी साल के वृक्ष की पूजा करते हैं। साल के फूल से शृंगार करते हैं और इसी साल के फूलों को आशीर्वाद स्वरूप पारंपरिक पुजारी से ग्र्रहण भी करते हैं। है न खास मौका। 

इस खास मौके पर पारंपरिक तौर-तरीकों से जाहेर आयो व मारांग बुरु (संतालों के ईष्टदेव) की पूजा की गई। इसके बाद पारंपरिक बाहा लोकनृत्य की महफिल सजी और संताल समाज के लोग 'अखड़ाÓ में झूमते रहे। 

बाहा पर्व को संताल समाज की होली भी कहा जाता है। ऐसे इसलिए, क्योंकि बाहा पर्व पर पूजा करने के बाद एक दूसरे पर पानी डालने की परंपरा है। यह अलग बात है कि संताल समाज की इस पारंपरिक होली में रंगों का इस्तेमाल पूरी तरह से वर्जित रहता है और सिर्फ सादे पानी से एक दूसरे को भिंगाया जाता है।

समाज की सुख- समृद्धि की कामना

सरजामदा निदिर टोला में सर्वप्रथम गांव के पारंपरिक पुजारी यानी नायके बाबा पलटन हेम्ब्रम को नृत्य करते हुए ग्र्रामीणों ने माझी बाबा (ग्र्राम प्रधान) फातु माझी के नेतृत्व में जाहेरथान (पूजा स्थल) पहुंचाया। जाहेरथान में दिन भर पूजा की गई। पूजा कर समाज की समृद्धि की कामना की गई। माझी बाबा फातु माझी ने बताया कि पूजा करने के बाद जाहेरथान में प्रसाद स्वरूप सोड़े ग्र्रहण किया गया। सोड़े एक तरह से चिकन की खिचड़ी को ही कहा जाता है, जिसे जाहेरथान में सामूहिक रूप से पकाया भी जाता और सामूहिक रूप से ही खाया भी जाता है। बहरहाल सरजामदा में बाहा के मौके पर मारांग माझी जयशंकर टुडू, भुगलू सोरेन, मंगल बेसरा, पोटरा टुडू, जयराम हांसदा, कामू माझी, लखन टुडू, कन्हई बेसरा, दिकू बेसरा, गुलशन टुडू, रंजीत हांसदा, अनिल किस्कू, कृष्णा बेसरा आदि उपस्थित थे।

जीजा-साली, देवर-भाभी एक दूसरे पर डालते पानी

बाहा पर्व पर पूजा के बाद पानी की होली खेली जाती है। इसके लिए भी नियम तय है कि पानी जीजा-साली, देवर-भाभी ही एक दूसरे को डाल सकते हैं। पानी के अलावा इसमें किसी भी रंग का इस्तेमाल वर्जित रहता है। पर्व पर दो दिनों तक इसका जश्न मनाया जाता है। 

संताल समाज का सबसे बड़ा पर्व

बाहा पर्व संताल आदिवासियों के सबसे बड़े पर्वों में से एक है। इस पर्व पर ईष्टदेवों की पूजा कर समृद्धि का आशीर्वाद मांगा जाता है। इसमें शामिल होने के लिए पारंपरिक परिधान पहनना अनिवार्य है। इसके बिना इसमें शामिल नहीं हो सकते। 

- फातु माझी, माझी बाबा, सरजामदा-निदिर टोला

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