Engineers day 2020 : भारत रत्न मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ने बनाया था जमशेदपुर का डिमना लेक
Engineers day 2020. बहुत कम लोग जानते हैं कि विश्वेश्वरैया ने ही जमशेदपुर स्थित डिमना लेक का निर्माण किया था। यह लेक देखने में प्राकृतिक लगता है लेकिन यह पूरी तरह कृत्रिम झील है।
By Rakesh RanjanEdited By: Updated: Tue, 15 Sep 2020 08:34 PM (IST)
जमशेदपुर, वीरेंद्र ओझा। भारत रत्न सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की जयंती को अभियंता दिवस के रूप में मनाया जाता है। बहुत कम लोग जानते हैं कि विश्वेश्वरैया ने ही जमशेदपुर स्थित डिमना लेक का निर्माण किया था। दलमा की तलहटी में पहाड़ियों से घिरा यह लेक देखने में प्राकृतिक लगता है, लेकिन यह पूरी तरह कृत्रिम झील है। पूर्वी सिंहभूम जिला मुख्यालय से करीब 13 किलोमीटर दूर बोड़ाम प्रखंड में पड़ने वाला यह झील 93.30 वर्ग किलोमीटर में फैला है।
दरअसल, टाटा स्टील की स्थापना स्वर्णरेखा व खरकई नदी के बीच में हुई थी, ताकि साल भर पानी मिलता रहे। हालांकि, स्वर्णरेखा नदी पर बांध बनाने से जलापूर्ति कभी बाधित नहीं हुई, लेकिन उसी समय कंपनी प्रबंधन को एक विशाल जलाशय या झील की आवश्यकता महसूस हुई। उस समय तक विश्वेश्वरैया मैसूर (कर्नाटक) में कृष्णराज सागर बांध बनाकर लोकप्रिय हो चुके थे, लिहाजा टाटा स्टील ने उन्हें आमंत्रित किया। इन्हें टाटा स्टील ने निदेशक बनाया, जिस पद पर वे 1927 से 1955 तक रहे।
कृत्रिम झील के लिए इस स्थान को चुना
जमशेदपुर आने के बाद विश्वेश्वरैया ने कृत्रिम झील के लिए इस स्थान को चुना। इस झील का निर्माण 1944 में पूरा हुआ, जिसमें आठ फाटक वाला बांध भी बनाया। इस वजह से इसे डिमना डैम भी कहा जाता है। डैम से साकची स्थित पंप हाउस तक तीन मोटी पाइपलाइन बिछाई गई, जो डिमना रोड के नीचे से गुजरती है। इस झील की क्षमता 34000 मिलियन लीटर है, जबकि डैम की अधिकतम ऊंचाई 530 फुट है। इससे ऊपर पानी बहने पर डैम का फाटक खोला जाता है। अमूमन इस डैम से पानी तभी लिया जाता है, जब स्वर्णरेखा नदी का जलस्तर कम हो जाता है। जमशेदपुर में जलापूर्ति व्यवस्था की आधारभूत संरचना इन्होंने ही तैयार की थी। डिमना लेक शहर का प्रमुख पर्यटक स्थल है, जहां जाड़े के मौसम में पश्चिम बंगाल व ओडिशा से भी काफी सैलानी आते हैं।
विलक्षण प्रतिभा के धनी थे विश्वेश्वरैया
सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का जन्म 15 सितंबर 1860 को कर्नाटक स्थित मैसूर राज्य के मुदेनाहल्ली गांव में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव में हुई, जबकि इसके बाद उनकी पढ़ाई बेंगलुरू में हुई। स्नातक परीक्षा में सर्वोच्च अंक आने पर मैसूर के महाराजा ने इन्हें पुणे स्थित कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में पढ़ने के लिए भेजा। वहां भी अव्वल दर्जे से पास होने के बाद महाराष्ट्र सरकार में इन्हें सहायक अभियंता की नौकरी मिल गई। विश्वश्वरैया विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। पढ़ाई तो इन्होंने सिविल इंजीनियरिंग से की थी, लेकिन इन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय विभिन्न क्षेत्रों में दिया। कर्नाटक में भद्रावती स्टील प्लांट व मैसूर सोप फैक्ट्री, ओडिशा का हीराकुड डैम समेत लड़कियों के लिए छात्रावास सहित उच्च शिक्षा के लिए भी योगदान दिया। मैसूर विश्वविद्यालय बनाने का श्रेय भी इन्हें जाता है। वर्ष 1955 में इन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया। इनका निधन 12 अप्रैल 1962 को बेंगलुरू में हुआ।
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