मिट्टी नहीं, गोबर से भी बन रहा दीया, गोमाता का हो रहा संरक्षण
दीपावली पर अब तक हम कुम्हार के चाक पर बने मिट्टी का दीया ही जलाते थे लेकिन अब गोबर से बने दीपक का भी चलन बढ़ रहा है। सीमा पांडेय लगभग सात वर्ष से गोबर व गोमूत्र से घरेलू उपयोग की वस्तुएं बना रही हैं।
जमशेदपुर (वीरेंद्र ओझा)। दीपावली पर अब तक हम कुम्हार की चाक पर बना मिट्टी का दीया ही जलाते थे, लेकिन अब गोबर से बने दीपक का भी चलन बढ़ रहा है। कम से कम शहर में इसका श्रेय सीमा पांडेय को जाता है, जो लगभग सात वर्ष से गोबर व गोमूत्र से घरेलू उपयोग की वस्तुएं बना रही हैं। पहली बार गोबर से बना दीपक बिहार जा रहा है।
मानगो निवासी सीमा पांडेय बताती हैं कि उन्हें सासाराम, गया, औरंगाबाद आदि से लगभग 1000 दीयों का आर्डर मिला था, जिसे भेज भी दिया। गोबर से बने दीयों की कीमत पांच रुपये से 130 रुपये तक है। लगभग इतने ही दीये शहर में बिकेंगे। इससे पहले भी वह शहर में ही दीये बेचती थीं। पहले आदित्यपुर, साकची, मानगो आदि के कुछ दुकानदार लेते थे। अब मुझे चाईबासा और चक्रधरपुर के रेलवे स्टेशन पर भी स्टाल मिला है, जिससे ये दीये वहां भी उपलब्ध रहेंगे। वह कहती हैं कि रक्षाबंधन के समय मैं गोबर से बनी राखी बनाती हूं। मेरे साथ आदित्यपुर व मानगो की करीब 50 महिलाएं जुड़ी हैं, जिससे उन्हें रोजगार मिल रहा है तो इसी बहाने गोमाता का संरक्षण भी हो रहा है। पहले जब गाय दूध नहीं देती थी, तो लोग गाय को घर से निकाल देते थे। अब मैं उनकी गायों का गोबर खरीद लेती हूं।
देखने में लगता खूबसूरत, नहीं सोखता तेल
सीमा बताती हैं कि पहली बार लोग यही सोचते हैं कि गोबर से बना है, तो दुर्गंध देगा। तेल ज्यादा सोखता होगा, आदि। वास्तव में ऐसा बिल्कुल नहीं है। हम पहले गोबर को सुखाकर चूर्ण बना लेते हैं। इसके बाद इसे गोंदनुमा लेप में अच्छी मिलाकर सांचे में डालते हैं। यह लेप इमली के बीज, नीम की पत्ती और गवारफली के बीज से बनता है। गवारफली एक तरह की सब्जी है, लेकिन इससे व्यवसायिक तौर पर भी गोंद बनाया जाता है। इन सबको मिलाने के बाद मिश्रण का रूप बदल जाता है। सांचा से निकालने के बाद जब दीया सूख जाता है, तो उसमें रंग भी भरा जाता है।