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Cricket News Update : इस खिलाड़ी ने झारखंड को कहा अलविदा, बड़ौदा का दामन थामा

Cricekt News Update स्टील एक्सप्रेस के नाम से विख्यात वरुण एरोन ने झारखंड को अलविदा कहते हुए बड़ौदा का दामन थाम लिया है। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में नौ मैच खेल 11 विकेट लेने वाले वरुण एरोन के नाम प्रथम श्रेणी क्रिकेट में सबसे तेज गेंद फेंकने का रिकार्ड है...

By Jitendra SinghEdited By: Updated: Thu, 01 Sep 2022 09:19 AM (IST)
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Cricket News Update : इस खिलाड़ी ने झारखंड को कहा अलविदा, बड़ौदा का दामन थामा
जमशेदपुर : झारखंड राज्य क्रिकेट संघ (जेएससीए) के साथ 18 साल के शानदार करियर के बाद भारतीय तेज गेंदबाज वरुण एरोन ने झारखंड को अलविदा कह दिया है। स्टील एक्सप्रेस के नाम से विख्यात वरुण एरोन आगामी सत्र में बड़ौदा की ओर से खेलते नजर आएंगे। एसएस राव, सुमित पांडा से लेकर धौनी और सौरव तिवारी के साथ खेलने वाले वरुण एरोन ने पांच साल पहले जमशेदपुर को छोड़ पुणे शिफ्ट हो गए।

जब उनसे पूछा गया कि क्या अब बड़ौदा एक्सप्रेस के नाम से पहचान होगी, वरुण ने मुस्कुराते हुए कहा-मेरी पहचान स्टील एक्सप्रेस ही है। मैं अपने जीवन के 18 साल लौहनगरी में बिताए हैं। यह शहर ताउम्र मेरे दिल में रहेगा।

153 किलोमीटर प्रति घंटा की स्पीड में गेंद फेंक चर्चा में आए थे

स्पीडस्टर वरुण एरोन 2010-11 के सीजन में पहली बार उस समय चर्चा में आए थे, जब उन्होंने विजय हजारे ट्रॉफी के फाइनल में 153 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से गेंद फेंकी थी। एरोन को टीम इंडिया के भविष्य का स्पीडस्टर कहा जाता था। लेकिन उनका करियर लगातार चोटों से जूझता रहा। 2011 में उन्होंने वेस्टइंडीज के खिलाफ अपना टेस्ट पदार्पण किया था और नौ मैचों में 18 विकेट चटकाए। उसी साल इंग्लैंड के खिलाफ उनको वनडे में भी खेलने मौका मिला था। 50 ओवर फॉर्मेट में भी उन्होंने 9 मैच खेले और 11 विकेट लेने में सफल रहे।

मुझे झारखंड रणजी टीम पर गर्व

जब वरुण से 18 साल तक झारखंड का प्रतिनिधित्व करने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, पिछला 10-12 साल झारखंड क्रिकेट के लिए स्वर्णिम दौर रहा है। हमने एक ट्रॉफी जीती है और कई सेमीफाइनल और क्वार्टर फाइनल में पहुंचे हैं। मुझे धौनी, सौरभ, इशांक जग्गी, नदीम, राहुल शुक्ला और सनी गुप्ता जैसे झारखंड के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों के साथ खेलने का मौका मिला।

सीनियर खिलाड़ियों से काफी कुछ सीखने को मिला

उन्होंने कहा कि मेरे लिए एसएस राव और सुमित पांडा ऐसे खिलाड़ी थे जो बचपन में आदर्श हुआ करते थे। वे तेज गेंदबाज थे और मेरे करियर के शुरुआत में अच्छा प्रदर्शन कर रहे थे। एसएस राव ने काफी कुछ सीखने को मिला। वह मेरे बड़े भाई के समान है। मनीष वर्धन के रूप में भी हमारे पास एक बेहतरीन कप्तान था। मेरे पास सीनियरों का एक बड़ा समूह था जिनसे काफी कुछ सीखने को मिला। जब उनसे पूछा गया कि क्या आप अब बड़ौदा एक्सप्रेस से खुद को स्थापित करना चाहते हैं तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा-मैं हमेशा स्टील एक्सप्रेस रहना चाहता हूं।

अमिताभ चौधरी ने जेएससीए में स्थिरता लाया

नौ अंतरराष्ट्रीय मैच में 11 विकेट झटकने वाले वरुण ने कहा कि जब मैं झारखंड टीम में था तो दूसरे राज्यों से खेलने का अवसर मिला था। लेकिन झारखंड के प्रति वफादारी की भावना थी जो मैं अब भी करता हूं। इस साल मुझे लगा कि यह बदलने का समय है क्योंकि मेरा लक्ष्य उच्चतम स्तर का क्रिकेट खेलना है। मुझे लगता है कि अमिताभ चौधरी के निधन से झारखंड एक परिवर्तनकारी दौर से गुजर रहा है। तो मुझे पूरा यकीन था कि यह एक अच्छा कदम था। बड़ौदा के पास वास्तव में अच्छे विकेट हैं जिनमें गति और उछाल है। यह मेरे लिए मुफीद है।जब आप इसकी तुलना रांची के विकेट से करते हैं तो यह पूरी तरह से अलग विकेट है। इन कारकों को मिलाकर, मैं एक नई चुनौती की तलाश कर रहा था, जो मुझे बड़ौदा में मिला।

अमिताभ के बिना झारखंड क्रिकेट अधूरा

उन्होंने कहा कि जेएससीए के पूर्व अध्यक्ष अमिताभ चौधरी व जेएससीए एक दूसरे के पूरक हैं। उनके बिना राज्य क्रिकेट अधूरा है। पिछले 15-20 साल से क्रिकेट खेल रहे हर खिलाड़ी पर उनका प्रभाव रहा। धौनी से लेकर आज के जूनियर खिलाड़ी तक। उन्होंने एसोसिएशन में स्थिरता लाई। उनके समय में स्थिरता, निरंतरता और निश्चितता थी कि यदि आप एक अच्छे खिलाड़ी हैं और आप राज्य के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं तो आपके साथ हमेशा उचित व्यवहार किया जाएगा। मेहनती क्रिकेटरों के लिए उनके मन में बहुत सम्मान था। वे एक दूरदर्शी और निष्पक्ष प्रशासक

विजय हजारे ट्राफी जीतना अविस्मरणीय पल

2011 में विजय हजारे ट्राफी जीतना मेरे घरेलू क्रिकेट करियर का सबसे महत्वपूर्ण पल था। बंगाल को छोड़कर पूर्वी क्षेत्र की किसी अन्य टीम ने कभी भी यह ट्रॉफी नहीं जीती है। यह हमारे लिए बहुत बड़ा था। मुझे ईमानदारी से लगता था कि हम आसानी से रणजी ट्रॉफी भी जीत सकते थे। हमारे पास निश्चित रूप से पांच-छह उच्च-स्तरीय प्रथम श्रेणी के खिलाड़ियों वाली टीम थी। सभी पांच खिलाड़ियों ने कम से कम 'इंडिया ए' के लिए और हम में से दो-तीन ने भारतीय टीम के लिए खेला था। हमारे पास निश्चित रूप से रणजी ट्रॉफी जीतने का मौका था, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो सका।

काउंटी क्रिकेट खेलना अनूठा अनुभव

उन्होंने कहा कि इंग्लैंड में काउंटी खेलना अनूठा अनुभव था। जब आप काउंटी टीम के लिए खेलते हो तो आप एक समर्थक होते हो। उनके पास चुनने के लिए बहुत सारे अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी होते हैं लेकिन वे आपको चुनते हैं। उस दौरान आपको बेहतर प्रदर्शन करना होगा। विभिन्न परिस्थितियों के साथ सामंजस्य बिठाने का मौका मिलता है। क्रिकेट के लिहाज से और व्यक्तिगत रूप से भी यह एक शानदार अनुभव था।

जब उनसे पूछा गया कि बड़ौदा का दामन थामने के बाद राष्ट्रीय क्रिकेट में वापसी का मौका मिलेगा, उन्होंने कहा, मैं भविष्य के बारे में अभी कुछ नहीं कह सकता। मैं सही प्रयास करना चाहता हूं और मेहनत मुझे कहां ले जाती है यह तो वक्त ही बताएगा। मैं भविष्य में नहीं देख सकता और कह सकता हूं कि क्या हो सकता है। मैं बस इतना कर सकता हूं कि सही कदम उठाएं, प्रयास करें और देखें कि यह मुझे कहां ले जाता है। मेरे लिए बड़ौदा जाने से ज्यादा आसान विकल्प झारखंड था। लेकिन पेशेवर करियर में परिवर्तन जरूरी होता है।

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