लाल चींटी की चटनी खाइए, कोसों दूर भाग जाएगा कोरोना महामारी; आदिवासियों की पसंदीदा डिश है यह
वैश्विक महामारी कोरोना को दूर भगाने के लिए लोग तरह-तरह के उपाय कर रहे हैं। इम्यूनिटी बढ़े इसके लिए कोई होम्योपैथ का सहारा ले रहा तो कोई आयुर्वेद का। लेकिन आदिवासी समुदाय के लोग आज भी पारंपरिक व्यंजन से इम्यूनिटी बढ़ा रहे हैं।
By Jitendra SinghEdited By: Updated: Mon, 07 Jun 2021 09:53 AM (IST)
जमशेदपुर, जासं। कोरोना को दूर भगाने के लिए आज तरह-तरह के उपाय हो रहे हैं। विटामिन-सी और जिंक की टेबलेट खाने के लिए मारामारी चल रही है। ऐसे समय में लाल चींटी मिल जाए तो कोरोना दूर भाग जाता। झारखंड के ग्रामीण इसे खोज रहे हैं, लेकिन कहीं दिखाई नहीं दे रही है यह लाल चित्ती वाली चींटी।
पूर्वी सिंहभूम जिले के चाकुलिया प्रखंड स्थित मटकुरवा गांव में लाल चींटी की चटनी खाने की परंपरा बरसों से चली आ रही है। ग्रामीण ने बताया कि अफसोस की बात है कि यह चींटी जाड़े के मौसम में आसानी से मिल जाती है, जबकि अभी खोजने से भी नहीं मिल रही है। गांव के एक पढ़े-लिखे युवा ने बताया कि इस चींटी में विटामिन-सी और जिंक दोनों पाए जाते हैं। इसमें टार्टरिक एसिड भी होता है, जो रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है। ठंड के मौसम में इसकी चटनी बड़े चाव से खाई जाती है।
चींटी को सिल पर पिस तैयार की जाती है चटनीचींटी को पेड़ की डाली व तनों से उतारकर पत्ते के दोने या किसी बर्तन में इकट्ठा किया जाता है। इसके बाद इसमें लगे खर-पतवार को साफ करके सिल पर पीसा जाता है। स्वाद के लिए इसमें हरी या लाल मिर्च, अदरक व लहसुन आदि मिलाकर पीसा जाता है। इसे खाने के बाद ठंड के मौसम में ठंड से होने वाली बीमारी नहीं होती है। अत्यधिक ठंड से बुखार, खांसी, सर्दी समेत कई बीमारी से छुटकारा मिल जाता है।
फिलहाल ढू़ढ़े नहीं मिल रही लाल चित्ती वाली यह चींटीइस बार गांवों में भी कोरोना खूब फैल हुआ है, लेकिन अफसोस की बात है कि लाख खोजने पर भी यह चींटी नहीं मिल रही है। कुछ लोगों का कहना है कि यह चींटी पहाड़ की चोटी पर उगे पेड़ में मिल सकती है, लेकिन अभी कोई बहुत दूर जाना नहीं चाहता। जाड़े के मौसम में तो यह अमूमन आम, नीम, जामुन, पीपल, बरगद सभी पेड़ में मिल जाती है। यदि यह अभी मिल जाती तो कोरोना कोसों दूर भाग जाता। ग्रामीण इसे कुरकू भी कहते हैं।
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