सरायकेला-खरसावां जिला स्थित दलमा वन्यजीव आश्रयणी पूर्वी सिंहभूम जिला और बंगाल के पुरुलिया जिले को भी छूता है। यह झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 100 किलोमीटर व जमशेदपुर से 15 किलोमीटर की दूर पर है।इसका प्रवेशद्वार टाटा-रांची राष्ट्रीय उच्चपथ-33 पर चांडिल अनुमंडल क्षेत्र में पड़ता है।
हाथियों के लिए विख्यात दलमा की खूबसूरत पहाड़ियां और वन्यप्राणी अभयारण्य में वर्ष भर देशी-विदेशी पर्यटक आते रहते हैं।
इस आश्रयणी का उद्घाटन 1975 में स्व. संजय गांधी ने किया था। कई छोटी-बड़ी पहाड़ियों से मिला दलमा का जंगल 193 वर्ग किलोमीटर में फैला है। 3000 फीट से अधिक ऊंचाई वाले दलमा में गत वर्ष 56,000 से अधिक पर्यटक आए थे।दलमा वन्यप्राणी आश्रयणी के अंदर जंगली जानवरों को नजदीक से देखने के लिए विशेष प्रबंध किए गए हैं। पर्यटकों के लिए मचान, वाचटावर, हाइडआउट आदि बनाए गए हैं।
जहां से पर्यटक जंगल के अंदर पाए जाने वाले हाथी, हिरण, बंदर, लाल गिलहरी, मोर, भालू आदि को नजदीक से अठखेलियां करते देख सकते हैं।
दलमा में दुर्लभ औषधीय पेड़-पौधों से लेकर 200 प्रजाति की सामान्य व दुर्लभ तितलियों की दुनिया भी है। दलमा की चोटी से रात में जमशेदपुर शहर आकाश में टिमटिमाते तारों जैसा दिखता है।
गेस्ट हाउस में रात भर ले सकते प्रकृति का आनंद
दलमा के जंगलों में आकर प्रकृति का लुत्फ उठाने वाले पर्यटकों के लिए वन विभाग की ओर से मकुलाकोचा व पिंड्राबेड़ा में गेस्ट हाउस बनाया गया है।दोनों स्थानों को मिलाकर कुल 32 कमरे हैं, जहां पर्यटक प्रकृति की गोद में रात बिता सकते हैं। यहां रात में ठहरने के लिए 800 से 1100 रुपये तक के कमरे उपलब्ध हैं।
दलमा के डीएफओ डा. अभिषेक कुमार कहते हैं कि दलमा के अंदर बसे 85 गांवों के लोगों को स्वरोजगार से जोड़ा गया है।ग्रामीण वैद्य के सहयोग से पर्यटकों के लिए केरला की तर्ज पर मालिश की सुविधा, विश्व प्रसिद्ध छऊ नृत्य का आनंद उठाने के अलावा स्थानीय वन उत्पाद के लिए बाजार विकसित किया जा रहा है, ताकि दलमा आने वाले पर्यटक यहां की यादें संजोकर अपने साथ ले जा सकें।
धार्मिक दृष्टिकोण से भी आते हैं पर्यटक
दलमा की चोटी पर भगवान शिव प्राकृतिक गुफा में विराजमान हैं। पास में ही हनुमान मंदिर है, जहां दलमा आने वाले पर्यटक पूजा-अर्चना भी करते हैं।सावन के महीने में मंदिर के साथ ही
जंगल के रास्ते को भव्य तरीके से सजाया जाता है, जहां पूरे झारखंड से श्रद्धालु बोल बम... का जयकारा लगाते हुए भगवान शिव को जल अर्पित करते हैं।
दलमा के आसपास चांडिल डैम, डिमना लेक, प्राचीन वनदेवी कालीमंदिर आदि पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। दलमा के अंदर पर्यटक झरने का आनंद भी उठा सकते हैं। जंगल भ्रमण के लिए सफारी गाड़ी भी है।
दलमा में गुफाओं की श्रृंखला
दलमा पहाड़ अपने अंदर अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य समेटे हुए है, जिसमें लगभग आठ झरनों के अलावा इतनी ही गुफाओं की श्रृंखला भी है।इसमें सबसे प्रसिद्ध दलमा माई की गुफा है। इन गुफाओं के बारे में दलमा के अंदर बसे 85 गांवों के लोग तो जानते हैं, लेकिन बाहरी दुनिया को इसकी कम ही जानकारी है।
ग्रामीण इन गुफाओं के किस्से बड़ी श्रद्धा के साथ सुनाते हैं। दलमा में कार्यरत वनकर्मी अंचित राणा कहते हैं कि इन गुफाओं के अंदर कोई नहीं जाता।दलमा माई की गुफा सबसे प्रसिद्ध है। इसके अलावा मंदिर के पास नरसिंह गुफा व कटासीन गुफा है, जिसे दरबार के नाम से जाना जाता है।दोनों गुफा के ऊपर गणेश मंदिर है। इन गुफाओं के अंदर भालू रहते हैं। दलमा के बीहड़ जंगल में कोंकादशा के पास निताईबेड़ा गुफा है।
दलमा में पाए जाने वाले दुर्लभ जीव
दलमा वन्य प्राणी आश्रयणी में भारत सरकार की ओर से भारतीय प्राणी सर्वेक्षण के संयुक्त निदेशक डा. गोपाल शर्मा के नेतृत्व में एक टीम ने 12 दिनों तक जंगल में रहकर 60 स्थानों पर
जीव-जंतुओं पर अध्ययन किया था।
इसमें पाया गया कि दलमा के अंदर 55 प्रजाति के कीट पाए गए, जिसमें कई विलुप्त होने के कगार पर हैं। इसके अलावा 200 से अधिक प्रकार की तितलियां, जिसमें मोथ प्रजाति सहित कई तितलियां दलमा में पहली बार देखी गईं।हाथी, भालू, जंगली बिल्ली, लाल गिलहरी, मोर के अलावा 100 से अधिक प्रकार के पक्षी व 15 प्रकार के रेंगने वाले जीव पाए गए।
दुर्लभ औषधीय पौधों का भंडार
दलमा में जीव-जंतु ही नहीं, दुर्लभ औषधीय पौधों का भी भंडार है। दलमा के डीएफओ डा. अभिषेक कुमार कहते हैं कि दलमा जंगल के अंदर पाए जाने वाले औषधीय पौधों में अर्जुन, काला शीशम, कालमेघ, अमलताश, बीजा-साल, इमली, गुलर, पीपल, बरगद, चिरैता, आंवला, हर्रे, बहेड़ा के अलावा दर्जनों औषधीय पौधे हैं।
इसमें से काला शीशम को इंडियन फारेस्ट एक्ट-1972 के तहत संरक्षित घोषित कर दिया गया है, जिसका व्यापार करना गैरकानूनी है।
छात्रों के लिए बना अध्ययन का केंद्र
दलमा वन्य प्राणी आश्रयणी छात्रों के लिए अध्ययन का केंद्र बन गया है। जहां विभिन्न स्कूल-कालेज के शिक्षक व छात्र यहां पाए जाने वाले
जीव जंतुओं, पेड़ पौधों के जीवन के बारे में जानकारी लेते हैं। छात्रों को जानवरों की दुनिया समझाने के लिए मकुलाकोचा में अत्याधुनिक म्यूजियम बनाया गया है।