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झाग ही झाग: दिल्ली की यमुना से भी बुरा है झारखंड की स्वर्णरेखा का हाल, प्रदूषण से नाले में तब्दील हो रही नदी

झारखंड की जीवनरेखा कही जाने वाली स्वर्णरेखा नदी के पानी में बुधवार शाम अचानक झाग भर गया। यह झाग ठीक उसी तरह था दिल्ली की यमुना नदी में दिखता है। यह दृश्य देख जब लोग नदी तट पर गए तो देखा कि काफी संख्या में मछलियां भी मर कर ऊपर आ गई थीं। राज्य में हो रहे भारी प्रदूषण के कारण स्वर्णलेखा का हाल किसी नाले जैसा हो चुका है।

By Jagran NewsEdited By: Mohit TripathiUpdated: Thu, 29 Jun 2023 06:09 PM (IST)
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ये दिल्ली की यमुना नहीं, झारखंड की स्वर्णरेखा नदी है

जमशेदपुर, जागरण संवाददाता। झारखंड समेत शहर की जीवनरेखा कही जाने वाली स्वर्णरेखा नदी के पानी में बुधवार शाम अचानक झाग भर गया, जिससे आसपास के लोग चिंतित हो गए। यह झाग ठीक उसी तरह था, जैसा टीवी पर दिल्ली की यमुना नदी में दिखता है। यह दृश्य देखकर जब लोग नदी तट पर गए, तो देखा कि काफी संख्या में मछलियां भी मर कर ऊपर आ गई थीं।

भाजपा ने रखी जांच की मांग

इस घटना की जानकारी मिलने पर भाजपा, व्यवसायिक प्रकोष्ठ के प्रदेश संयोजक नीरज सिंह भी नदी तट पहुंचे। स्वर्णरेखा नदी में पहली बार इस तरह का दृश्य देखकर उन्होंने एसडीओ, धालभूम पीयूष सिन्हा को फोन पर इसकी सूचना देते हुए प्रशासन से जल्द इसकी जांच कराने की मांग की।

सिंह ने कहा कि नदी किनारे रहने वाली बड़ी आबादी इस नदी में नहाती है, जिनमें कई बच्चे भी होते हैं। यदि नदी का पानी किसी रसायन की वजह से प्रदूषित हुआ है, तो कोई बड़ी दुर्घटना भी हो सकती है। कोई बड़ी अनहोनी ना हो, इसलिए अविलंब इसकी जांच कर समस्या दूर की जाए।

उन्होंने कहा कि प्रशासन यह प्रयास करे कि फिलहाल लोग नदी की ओर न जाएं। नदी किनारे कई बस्तियां बसी हुई हैं, जहां बड़ी आबादी निवास करती है। पेयजल के लिए पूरा शहर इस नदी पर निर्भर है। सिंह ने कहा कि गुरुवार को भाजपा, व्यावसायिक प्रकोष्ठ का प्रतिनिधिमंडल जिले की उपायुक्त से मिलकर इस घटना की जल्द से जल्द जांच की मांग करेगा।

सोमवार से हो रही मानसून की बारिश

शहर में सोमवार से मानसून की बारिश हो रही है। इससे पहले नदी लगभग सूखी थी। बुधवार को नदी के पानी में प्रवाह दिखना शुरू हुआ, जिससे नदी में पसरी जलकुंभी भी बह रही है। इससे पहले करीब दो महीने तक शहरवासी बारिश नहीं होने से पेयजल संकट से जूझ रहे थे।

स्वर्णरेखा व खरकई नदी में जलकुंभी ऐसी पसर गई थी, जैसे नदी नहीं खेत हो। जलप्रवाह नहीं होने से नदी के आसपास दुर्गंध फैल रही थी। मच्छरों का भी प्रकोप काफी बढ़ गया था।