दो साल बाद भी नहीं मिला अबुआ दिशोम-अबुआ राज, पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने कहा-स्थानीयता का आधार जरूरी
आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने कहा कि हेमंत सरकार को दो वर्ष हो गए लेकिन अबुआ दिशोम-अबुआ राज नहीं मिल सका। सेंगेल हेमंत सरकार का विरोध करती है। किसी भी राज्य और राष्ट्र की पहचान उसकी भाषा-संस्कृति और नागरिकों के जातिगत पहचान से बनती है।
जमशेदपुर, जासं। पूर्व सांसद व आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने कहा कि हेमंत सरकार को दो वर्ष हो गए, लेकिन "अबुआ दिशोम-अबुआ राज" नहीं मिल सका। सेंगेल हेमंत सरकार का विरोध करती है। किसी भी राज्य और राष्ट्र की पहचान उसकी भाषा-संस्कृति और नागरिकों के जातिगत पहचान से बनती है। यही स्थानीयता, राष्ट्रीयता, उप राष्ट्रीयता आदि का मूल आधार बिंदु है।
भारतीय संविधान के मूल अधिकारों के अनुच्छेदों ने इसको स्थापित किया है, जिसे नवगठित झारखंड प्रदेश को अबतक स्थापित कर लेना चाहिए था। मगर सभी सरकारों ने इसकी अनदेखी की है। निजी स्वार्थों के लिए केवल रूटीन सरकारी काम किया है। जबकि झारखंडी जन को केवल विकास नहीं बल्कि अस्तित्व, पहचान और भागीदारी/ हिस्सेदारी के साथ विकास चाहिए। अन्यथा उनके लिए विकास, विनाश बन जाता है। सेंगेल सभी भाषा-संस्कृति का सम्मान करती है। मगर झारखंड में आदिवासी-मूलवासी को दरकिनार और विस्थापित कर नहीं। केवल वोट की राजनीति से ग्रसित होकर खुद झारखंडी जन और उसकी भाषा- संस्कृति का अवहेलना कर रही है।
पांच प्रदेश में सेंगेल का चल रहा जन-जागरूकता अभियान
सेंगेल फिलहाल 22 दिसंबर 2021 से "हासा- भाषा विजय दिवस" के पालन के साथ साल के अंत तक "सरना धर्म कोड सह संताली राजभाषा सगड़ या रथ" पांच प्रदेशों में चलाकर जन जागरण का काम कर रही है। हेमंत सरकार एकमात्र राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त, आठवीं अनुसूची में शामिल संताली भाषा को अविलंब झारखंड की प्रथम राजभाषा का दर्जा क्यों नहीं देना चाहती है। क्यों बाकी आदिवासी भाषा (मुंडारी, हो, कुरुख, खड़िया) और क्षेत्रीय भाषा (खोरठा, कुरमाली, पंचपरगानिया, नागपुरी) के साथ सौतेला व्यवहार कर गैर झारखंडी भाषाओं को थोपना चाहती है। सरना धर्म कोड के मामले पर क्यों टालमटोल का रवैया अपनाती है। पुलिस अफसर रूपा तिर्की और सिदो मुर्मू के वंशज रामेश्वर मुर्मू की संदिग्ध हत्या मामले पर सीबीआई जांच के मामले पर संवेदनहीन क्यों है। शिक्षित बेरोजगार आदिवासी-मूलवासी नवयुवकों के साथ बेपरवाह क्यों है। सीएनटी-एसपीटी कानून को छेद करने वाली लैंड पूल बिल 23 मार्च 2021 को क्यों पास किया। टीएसी के मामले पर संविधान विरोधी छेड़छाड़ क्यों किया गया।
शैलेंद्र महतो के विचार का समर्थन
झारखंड में गैर झारखंडी भाषा और गलत स्थानीयता के निर्धारण के खिलाफ पूर्व सांसद शैलेंद्र महतो के भावना, विचार और चिंता का सेंगेल समर्थन करती है। सेंगेल गैर झारखंडी भाषाओं के खिलाफ नहीं है, बल्कि उनको थोपने वाली हेमंत सरकार के खिलाफ है। सेंगेल झारखंड के अलावा बंगाल, बिहार, ओडिशा, असम, छत्तीसगढ़ आदि प्रदेशों में रह रहे आदिवासी-मूलवासियों के साथ है। झारखंड को भारत के आदिवासियों का गढ़ या केंद्र मानती है। अतएव वृहद झारखंड की अपेक्षा इस समय वर्तमान झारखंड दिशोम को उसके सपनों के साथ बचाना ज्यादा जरूरी है। सेंगेल इसके लिए संघर्षरत है।