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Hindi Diwas : तेलुगु भाषी होते हुए भी इस शख्स ने हिंदी को दिया सम्मान

Hindi Diwas साहित्य की दुनिया में डॉ. सी भास्कर राव एक जाना-पहचाना नाम है। आज हिंदी दिवस पर हम इस महान शख्स को नमन करते हैं जो तेलुगु भाषी होते हुए राष्ट्रीय भाषा को सम्मान दिया। उनका जीवन काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा।

By Jitendra SinghEdited By: Updated: Tue, 14 Sep 2021 09:18 AM (IST)
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Hindi Diwas : तेलुगु भाषी होते हुए भी इस शख्स ने हिंदी को दिया सम्मान
वेंकटेश्वर राव, जमशेदपुर : जमशेदपुर के प्रख्यात साहित्यकार जिसका नाम आज देश-विदेश में शुमार है। प्रकाशक उनसे साहित्य की किताबें लिखवाते रहते हैं। वे तेलुगु भाषी है। गैर हिंदी भाषी इस साहित्यकार ने मजबूरी में हिंदी को पढ़ा और इसके बावजूद आज हिंदी के साहित्यकार बन गए। इस साहित्यकार का नाम है डा. सी भास्कर राव।

तेलुगु भाषी होते हुए भी हिंदी ने उन्हें सम्मान दिया। हिंदी अपनाने के पीछे का मुख्य कारण है शहर में तेलुगु भाषी स्कूल का न होना तथा आस-पड़ोस में सभी हिंदी भाषी न होना। हिंदी को अपनाने से लेकर साहित्यक सफर को उन्होंने दैनिक जागरण के साथ साझा किया तथा कई अनछुए पहुलूओं को छुआ। दैनिक जागरण संवाददाता वेंकटेश्वर राव ने हिंदी दिवस को लेकर सी भास्कर राव से उनके निवास स्थान पर बातचीत की। प्रस्तुत है डा. सी भास्कर राव से साक्षात्कार के प्रमुख अंश :-

आस-पड़ोस के कारण हिंदी को किया ग्रहण

हिंदी को कैसे ग्रहण किया के सवाल पर डा. सी भास्कर राव ने बताया कि उनकी मां स्व. जगदंबा देवी मूलत: जमशेदपुर से थी, पिताजी स्व. कृष्णा राव टाटा स्टील में नौकरी करने आंध्र प्रदेश से आए थे। नाना बिष्टुपुर बाजार में उन दिनों बाजार मास्टर के पद पर कार्यरत थे। उनका यानि भास्कर राव का जन्म 22 सितंबर 1941 को हुआ। उन दिनों बिष्टुपुर में एक तेलुगु माध्यम का एक स्कूल हुआ था। वहां कक्षा एक में दाखिला भी पिताजी ने करवाया था, लेकिन बाद आस-पड़ोस के लोगों ने पिताजी को समझाया कि सब हिंदी पढ़ रहे हैं। हिंदी आगे जाकर काम यहां काम आएगी। काफी समझाने के बाद पिताजी ने कदमा में ही हिंदी माध्यम से प्राइमरी स्कूल में दाखिला करवाया। यहीं से हिंदी का सफर प्रारंभ हुआ।

रांची विश्वविद्यालय ने दिया 60 रुपया मासिक का स्कॉलरशिप

अपने शिक्षा दीक्षा के सवाल पर भास्कर राव ने बताया कि कदमा ब्वॉयज से मिडिल स्कूल तक शिक्षा ग्रहण की। मिसेज केएमपीएम हाई स्कूल से मैट्रिक किया तथा को-ऑपरेटिव कॉलेज से इंटर व ग्रेजुएशन किया। को-ऑपरेटिव कॉलेज में वर्ष 1963 में हिंदी ऑनर्स से परीक्षा उत्तीर्ण की और वे कॉलेज के पहले हिंदी बैच के टॉपर बनें। सिर्फ कॉलेज नहीं वे रांची विश्वविद्यालय के टॉपर बने तथा गोल्ड मेडल प्राप्त किया। रांची विश्वविद्यालय ने उन्हें अपने यहां से एमए करने के लिए 60 रुपया मासिक छात्रवृत्ति प्रदान की। एमए हिंदी में भी यूनिवर्सिटी टॉपर बने तथा गोल्ड मेडल प्राप्त किया। वर्ष 1965 में एमए से उत्तीर्ण हुए।

घर ढूंढते हुए आए थे कॉलेज के शिक्षक

कैसे हुआ कॉलेज में दाखिला के सवाल पर उन्होंने कहा कि इंटर उत्तीर्ण करने के बाद को-ऑपरेटिव कॉलेज के हिदी के शिक्षक डा. सत्यदेव ओझा अपने प्रथम बैच के छात्रों के लिए घर ढूंढते हुए कदमा स्थित उनके निवास स्थान पर पहुंचे। पिताजी को काफी समझाया तथा कहा कि वे दक्षिण मूल के हैं अगर वे हिंदी में ऑनर्स करते हैं तो यह उनके लिए अतिरिक्त शिक्षा हो जाएगी। डा. ओझा द्वारा काफी समझाने के बाद उनके पिताजी मान गए और हिंदी ऑनर्स में दाखिला करवाया। सी भास्कर राव ने बताया कि डा. ओझा उनके गुरु है। उन्हीं के कारण साहित्य को एक मुकाम तक हासिल कर पाया।

पिता की प्रेरणा व पत्नी के सहयोग से मिली हिंदी कथाकार के रूप में पहचान

साहित्य के सफर की शुरुआत के सवाल पर सी भास्कर राव ने बताया कि पिता की प्रेरणा और पत्नी डा. सूर्या राव के सहयोग से आज वे हिंदी कथाकार के रूप में जाने जाते हैं। सबसे पहले उन्होंने पिताजी द्वारा तेलुगु कहानियों को हिंदी मे अनुवाद किया। अनुवाद के बाद इसका प्रकाशन स्थानीय पत्रिकाओं में होने लगा। उनके पिता की कहानियां आंध्र प्रभा नामक पत्रिका में प्रकाशित होती थी। एक-दो साल बाद यह अनुभव हुआ कि अगर वे सिर्फ अनुवाद करेंगे तो वे सिर्फ अनुवादक बनकर रह जाएंगे। इस कारण उन्होंने पुस्तक लिखनी प्रारंभ की। उन्होंने हिंदी गद्य की सारी विधाओं में 50 से अधिक पुस्तक लिख चुके हैं। गद्य रूप में साहित्य और सिनेमा को आधार मानकर कई किताबें लिखी गई है।

पहले उपन्यास के लिए टाइम्स ऑफ इंडिया समूह ने किया सम्मानित

पहली किताब के सवाल पर उन्होंने बताया कि उनकी पहली किताब उपन्यास के रूप में प्रकाशित थी। नाम था दिशा। इसका प्रकाशन वर्ष 1969 में हुआ। इसी पुस्तक के लिए टाइम्स आॅफ इंडिया समूह ने उन्हें सम्मानित किया था। यह सम्मान उन्हें दिया जाता है जो गैर हिंदी भाषी नहीं है और हिंदी के विकास के लिए प्रयासरत है। अब तक उन्हें कई पुरस्कार मिल चुके हैं। उसमें से एक वर्ष 2018 में मॉरीसश में आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलन का सम्मान भी शामिल है।

टाटा कॉलेज चाईबासा में हिंदी शिक्षक के रूप में पहली स्थाई नियुक्ति

पहली पदस्थापना के सवाल सी भास्कर राव बताते हैं कि उनकी पहली स्थाई नियुक्ति टाटा कॉलेज चाईबासा के हिंदी विभाग में शिक्षक के रूप में हुई थी। यह नियुक्ति 1968 में हुई थी।। यहीं वे पत्नी सूर्या के साथ 14 साल गुजारा तथा कई किताबें लिखी। उनकी पत्नी भी चाईबासा के एक स्कूल में हिंदी शिक्षिका के रूप में पढ़ाती थी। पत्नी सूर्या ने चाईबासा से ही हिंदी में पीजी की। भास्कर राव ने बताया कि रांची विश्वविद्यालय ने स्नातकोत्तर में टॉपर होने के कारण उन्हें अस्थाई रूप से संत कोलंबस कॉलज हजारीबाग में अस्थाई रूप से लेक्चरर के रूप में नियुक्त किया। यहां उन्होंने तीन वर्ष तक बच्चों को पढ़ाया। यहां से उनके शिक्षक के करियर की शुरुआत हुई थी।

पत्नी से हुआ था प्रेम विवाह

परिवार के बारे में पूछे प्रश्न पर साहित्यकार भास्कर राव ने बताया कि सूर्या के साथ उनका प्रेम विवाह हुआ था। आज प्रेम विवाह को 55 वर्ष हो गए। सभी कार्यो में उनकी पत्नी ने सहयोग किया। साहित्य की पुस्तक लिखने में हमेशा वह मार्गदर्शक की भूमिका में रही। उनकी पत्नी मूल रूप से उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद से हैं, लेकिन उनकी शिक्षा दीक्षा जमशेदपुर में हुई। उनके परिवार में एक बेटा शालिन राव हैं, जो फिक्की रायपुर में डिप्टी डायरेक्टर व छत्तीसगढ़ के स्टेट हेड हैं। उसकी पत्नी मूलत: पंजाबी भाषी है। उनके समधि सितारिस्ट है। बेटे की शादी को भी 25 साल हो गए। उनकी दो बेटियां हैं। कुल मिलाकर उनके परिवार में साहित्य और संगीत का संगम है।

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