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Internation Nurse Day 2022: कौन थीं फ्लोरेंस नाइटिंगेल, जिनके सम्मान में मनाया जाता है नर्स दिवस

Internation Nurse Day 2022 डाक्टर के इलाज के साथ-साथ मरीजों को ठीक करने में नर्सों योगदान भी कम नहीं हैं। जो अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए मुस्कुराते हुए निस्वार्थ भाव से सेवा करती हैं ताकि मरीज जल्द स्वस्थ होकर अपने घर जा सके।

By Madhukar KumarEdited By: Updated: Thu, 12 May 2022 11:59 AM (IST)
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Internation Nurse Day 2022: अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस पर क्यों मनाया जाता है, यहां जानिए।

जमशेदपुर, जासं। अस्पतालों में सामान्य दिन हो या कोरोना काल। देश भर के अस्पतालों में नर्सों ने अपनी जिम्मेदारी का बखूबी अनुपालन किया। एक मां, बहन और बेटी बनकर मरीजों का ये इलाज करती हैं। उनकी दर्द को अपना दर्द समझती हैं और उसे कम करने के लिए दिन-रात मेहनत करती हैं। डाक्टर के इलाज के साथ-साथ मरीजों को ठीक करने में इनका योगदान भी कम नहीं हैं। जो अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए मुस्कुराते हुए निस्वार्थ भाव से सेवा करती हैं ताकि मरीज जल्द स्वस्थ होकर अपने घर जा सके।

मुझे गर्व है कि मैं नर्स हूं-ताला

टीएमएच की सिस्टर इंचार्ज हैं ताला टुडू। उनका कहना है कि मुझे बचपन से ही चिकित्सा के क्षेत्र में काम करने की इच्छा थी। मुझे गर्व है कि मैं एक नर्स हूं। एक बीमार असहाय व्यक्ति हमारे पास सिर्फ एक उम्मीद लेकर आता है। वह है जीवन जीने की उम्मीद और हम हर दिन और हर मरीज के लिए उसी उम्मीद पर खरा उतरने की कोशिश करते हैं। मुझे आज भी वह पल याद है जब रानी नाम की एक नन्ही सी मरीज एक उम्मीद लेकर आई। उन दिनों मेरी पोस्टिंग टीएमएच के न्यू केबिन में थी। उस प्यारी सी मरीज की उम्र महज 12 साल थी। श्यामली रंग, गहरी आंखे, हसमुख चेहरा और मिलनसार स्वभाव की इस मरीज के चेहरे पर एक ही सवाल था कि आखिर मुझे क्या हुआ है। वह इस बात से अनभिज्ञ थी कि उसका ल्यूकेमिया का इलाज चल रहा था। डाक्टरों के इलाज और नर्सिंग सेवा ने ही उसे जीवन जीने की उम्मीद के साथ दूसरा जन्म दिया। ठीक होने के कुछ दिन बाद तक वह हमेशा अपनी मां के साथ मुझसे मिलने आती थी। उसकी याद आज भी हमारे स्मृति में जीवंत है।

मरीजों को ठीक होते देखकर अच्छा लगता है-एन्सी

टाटा सेंट्रल हास्पिटल की नर्स एन्सी मैथ्यू का कहना है कि एक नर्स के रूप में हम सभी को अपना मानते हैं। हम ऐसे मरीजों से भी मिलते हैं, उनका इलाज करते हैं जो गंभीर रोग से पीड़ित होता है। हमें उनके दर्द का एहसास होता है। मैं आपको आश्वस्त कर सकती हूं कि हर नर्स अपने मरीजों को 100 प्रतिशत से अधिक सर्मपण देती है। यह जीवन का हिस्सा है जब इलाज के दौरान किसी मरीज जीवित नहीं रहता तो हमें भी दुख होता है। जब मरीज ठीक होकर जाते हैं तो हमें भी उतनी ही खुशी मिलती है जितनी उनके स्वजनों को होती है। एक मरीज को इलाज के बाद स्वस्थ होकर घर लौटते हुए देखना एक नर्स के लिए इससे ज्यादा संतुष्टि की बात भला और कुछ नहीं हो सकता है।

अन्य दोस्तों की तुलना में जीवन की बेहतर समझ-सुदीप्ता

सुदीप्ता होरो टाटा मेन हास्पिटल में कार्यरत हैं। वर्ष 2018 में इन्होंने कालेज आफ नर्सिंग, टीएमएच में दाखिला लिया। मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, सूक्ष्य जीवन विज्ञान और नर्सिंग अनुसंधान जैसे विषयों के अध्ययन कर आज मरीजों को अपनी सेवा दे रही है। सुदीप्ता का कहना है कि नर्सिंग के क्षेत्र में आने के बाद मैं आश्वस्त हूं कि मेरे अन्य दोस्तों की तुलना में मेरा जीवन को समझने की बेहतर समझ है। मुझे अपने आप में गर्व है कि मैं नर्सिंग को पेशे के रूप में चुना।

अलग-अलग भूमिका में जीवन गुजारती है नर्स-डोलन

टाटा सेंट्रल हास्पिटल, घाटोटांड की नर्स डोलन साहा कहती हैं कि एक नर्स का जीवन बहुत अलग होता है। जो अलग-अलग हर मरीजों के लिए अलग-अलग भूमिका निभाती हैं। वृद्ध मरीजों के लिए हम उनकी बेटियां हैं, किशोरों के लिए उनकी बहनें और छोटी बहनों के लिए हम उनकी मां के समान हैं। एक नर्स के रूप में हम मरीजों की उस मनोस्थिति को समझने की कोशिश करते हैं, जिनसे वे गुजरते हैं। मैं इतना कहना चाहती हूं कि हमारे लिए हर मरीज का जीवन महत्वपूर्ण हैं। जब तक संभव होगा, मैं समाज और अपने मरीजों की सेवा करती रहूंगी।

फ्लोरेंस नाइटिंगेल की स्मृति में मनाया जाता है नर्स दिवस

12 मई 1820 को फ्लोरेंस का जन्म हुआ था। उनकी स्मृति पर ही अंतराष्ट्रीय नर्स दिवस मनाया जाता है। जिन्होंने जिंदगी भर बीमार रोगियों की सेवा में लगा दी। फ्लोरेंस नाइटेंगल के बारे में कहा जाता है कि वह रात के समय हाथों में लालटेन लेकर अस्पताल का चक्कर लगाती थी, क्योंकि उन दिनों बिजली नहीं होती थी। फ्लोरेंस को अपने मरीजों की इतनी फिक्र होती थी कि वह रात में अस्पताल में घूमकर यह देखती थी कि कहीं किसी मरीज को उनकी जरूरत तो नहीं है। उनके समर्पण भावना के कारण ही नर्सिंग के काम को समाज में सम्मानजनक स्थान दिलवाया। इनकी पहल पर ही 1860 में पहली बार आर्मी मेडिकल स्कूल की स्थापना हुई थी।