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जमशेदपुर : नौकरी छोड़कर नवाचार से जलकुंभी के कचरे को बना दिया मूल्यवान, ढाई हजार रुपये में बिक रही एक साड़ी

Jalkumbhi Saree स्वच्छता पुकारे टीम के संस्थापक गौरव आनंद ने अपने नवाचार से रोजगार के साथ पर्यावरण संतुलन की नई राह बनाई है। उन्होंने जलकुंभी से धागा निकालकर उसे साड़ी का रूप दिया और अब यह साड़ी देश में ही नहीं विदेशों में भी लोकप्रिय हो रही है। इसके साथ ही जलकुंभी की समस्या का भी निदान हो रहा है।

By Jagran NewsEdited By: Yogesh SahuUpdated: Sun, 17 Sep 2023 06:53 PM (IST)
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नौकरी छोड़कर नवाचार से जलकुंभी के कचरे को बना दिया मूल्यवान, ढाई हजार रुपये में बिक रही एक साड़ी

Jalkumbhi Saree : निर्मल प्रसाद, जमशेदपुर। सही सोच व मंथन से कुछ भी संभव है। चार वर्ष पूर्व जमशेदपुर से गुजरने वाली स्वर्णरेखा नदी की सफाई का बीड़ा जब स्वच्छता पुकारे टीम के संस्थापक गौरव आनंद ने उठाया, तो जलकुंभी सबसे बड़ी समस्या थी।

जितनी बार हटाओ, फिर से उग आती, इससे नदी का प्रवाह तो रूकता ही था, पानी भी गंदा हो जाता था। यह जलीय जीव-जंतु तक प्रचुर मात्रा में आक्सीजन व धूप भी नहीं पहुंचने देता था।

इस समस्या को नवाचार की मदद से गौरव ने नई दिशा दी और कचरे को मूल्यवान बना दिया। आज इसी जलकुंभी के कचरे से पर्यावरण स्नेही (एनवायर्नमेंट फ्रेंडली) 'धारा' ब्रांड की हैंडलूम साड़ियां बाजार में आनलाइन बेची जा रही हैं, जिसकी शुरूआती कीमत 2500 रुपये है।

स्वच्छता पुकारे डाट काम पर जाकर कोई भी इन साड़ियों को खरीदने के लिए आनलाइन आर्डर कर सकता है। फिलहाल इन साड़ियों का निर्यात यूरोप तक हो रहा है।

स्थायी नौकरी छोड़कर उठाया बीड़ा

अपने इस नवाचार को मूर्त रूप देने के लिए पेशे से एनवायर्नमेंटल इंजीनियर 45 वर्षीय गौरव आनंद ने टाटा स्टील यूटीलिटीज एंड इंफ्रास्ट्रक्चर सर्विसेज लिमिटेड में सीनियर मैनेजर पद की स्थायी नौकरी छोड़ दी।

अब पूरा ध्यान जलकुंभी से साड़ियां बनाने के अलावा दूसरे संस्थानों को भी प्रशिक्षित कर कचरे से कमाई करने का माध्यम बन रहे हैं।

गौरव वर्तमान में नेशनल इंस्टीट्यूट आफ अर्बन अफेयर्स, एनटीपीसी कोरबा, आधार पूनावाला समूह, दिल्ली-एनसीआर में इनर व्हील क्लब सहित जलपाईगुड़ी के टी-गार्डन में काम करने वाले मजदूरों को प्रशिक्षण दे रहे हैं।

जलकुंभी से प्रतिमाह निकालते 150 किलोग्राम धागा

गौरव बताते हैं कि जलकुंभी को बंगाल में ‘टेरर आफ बंगाल’ कहा जाता है, इसलिए मैंने पश्चिम बंगाल से इसकी शुरूआत की। 24 परगना जिले के बंदगांव में अपना प्लांट स्थापित किया है।

यहां आसपास के तालाबों में उगने वाली जलकुंभी को सुखा कर उससे धागा निकाला जाता है। 200 स्थानीय लोगों व महिलाओं को प्रशिक्षित कर वे प्रतिमाह औसतन 150 किलोग्राम धागा निकालते हैं।

एक साड़ी के निर्माण में 85 प्रतिशत जलकुंभी का धागा व 15 प्रतिशत कपास के धागे को मिलाकर तीन दिन में हाथ से बनी अलग-अलग रंगों व डिजाइन की साड़ी तैयार हो जाती है। ये साड़ियां पूरी तरह से घर पर ही धुलाई योग्य है और सामान्य साड़ी की तरह टिकाऊ भी हैं।

जमशेदपुर में स्वर्णरेखा नदी से जलकुंभी निकालते गौरव आनंद। फोटो- जागरण

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प्रतिवर्ष 10 हजार साड़ियों का होता है उत्पादन

गौरव कहते हैं कि फिलहाल हम प्रारंभिक चरण में हैं और अभी प्रतिवर्ष लगभग 10 हजार साड़ियों का उत्पादन कर रहे हैं।

जलकुंभी (Jalkumbhi) के सदुपयोग के प्रति जितनी तेजी से कंपनियों के सीएसआर टीम सहित संस्थानों में जागरूकता बढ़ेगी, उत्पादन भी बढ़ेगा।

उत्पादन बढ़ने से साड़ियों की कीमतों में भी कमी आएगी। हमारा उद्देश्य पर्यावरण को बिना नुकसान पहुंचाए प्रकृति से प्राप्त संसाधन का सदुपयोग करते हुए उसे मूल्यवान बनाना है।

जलकुंभी के धागे से बनी साड़ियों को पहनना अपने आप में नया अनुभव होगा, हम जल्द ही केले के छिलके से फाइबर निकालकर उसका भी धागा तैयार करने की योजना पर काम कर रहे हैं।

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इसके माध्यम से प्रकृति प्रदत्त हर चीज का सदुपयोग हो सके। गौरव कहते हैं कि पर्यावरण को नुकसान से बचाना है, तो बड़े कदम ही नहीं सही नजर भी जरूरी है।

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