वनांचल की रूपरेखा, झारखंड का नाम
झारखंड अलग राज्य का गठन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : झारखंड अलग राज्य का गठन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की देन है। जमशेदपुर के लोगों के लिए यह जानकारी खुशी की बात है कि भाजपा ने पहले वनांचल नाम से अलग राज्य की मांग का समर्थन किया। तब दक्षिण बिहार में पार्टी के कद्दावर नेताओं इंदरसिंह नामधारी और समरेश सिंह ने वनांचल आंदोलन को नई धार दी। कोल्हान में रुद्रप्रताप सारंगी जैसे दिग्गज ने आंदोलन को नए मुकाम पर पहुंचाया। दरअसल, अलग वनांचल राज्य की रूपरेखा भाजपा ने लौह नगरी जमशेदपुर में बनाई थी। वर्ष था 1988 और महीना जुलाई। भाजपा के शीर्ष नेताओं अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवानी और मुरली मनोहर जोशी की मौजूदगी में पार्टी राष्ट्रीय कार्यसमिति की लौहनगरी में हुई बैठक में दक्षिण बिहार (अब झारखंड) में भाजपा की सांगठनिक स्थिति पर काफी गंभीरता से विचार किया गया। कार्यकर्ताओं से मिले फीडबैक के बाद इस बात पर आम राय बनी कि भाजपा को वनांचल नाम से अलग राज्य की मांग करनी चाहिए और जहां भी जरूरत पड़े इसके लिए दबाव बनाना चाहिए। जरूरत हो तो आंदोलन भी करना चाहिए। इसके बाद के वर्षो में वनांचल की गठन की मांग को लेकर भाजपा ने कई दौर में आंदोलन चलाए। पार्टी कार्यकर्ता जेल भी गए। शासन के निशाने पर रहे। लेकिन, पार्टी अलग राज्य की मांग को लेकर अपना स्टैंड कड़ा करती चली गई। नतीजा ये निकला कि 1990 के दशक में भाजपा ने इसे जबर्दस्त चुनावी मुद्दा बना दिया। दक्षिण बिहार में पार्टी को इसका जबर्दस्त फायदा भी मिलता रहा। इस स्थिति को सियासी रूप से अपने पक्ष में करने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी ने 1996 और 1999 के लोकसभा चुनाव में तुरुप का पत्ता चला- आप मुझे वोट दो, भाजपा आपको वनांचल देगी। दोनों लोकसभा चुनाव में दक्षिण बिहार ने भाजपा की झोली भर दी। 2000 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी इस क्षेत्र में भगवा का जोर चला। इस स्थिति को देखते हुए पार्टी को ये महसूस हुआ कि अब अलग राज्य बनाने का सही अवसर आ गया है। तब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने इस दिशा में कवायद तेज की और ये वाजपेयी जी की ही देन रही कि 15 नवंबर 2000 की आधी रात को झारखंड अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आ सका।
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