Jitiya Vrat 2022 Date : संतान की रक्षा का व्रत जिउतिया 18 को, पूजा और पारण का सही समय एवं विधि विधान जानें
काशी एवं मिथिला से प्रकाशित पंचांग के अनुसार जीवत्पुत्रिका व्रत रविवार 18 सितंबर को है। शनिवार 17 सितंबर को अपराह्न 2.56 बजे तक सप्तमी तिथि रहेगी तदुपरांत अष्टमी तिथि लग रही है। अष्टमी तिथि रविवार 18 सितंबर को सायं 4.39 बजे तक रहेगी...
By Jitendra SinghEdited By: Updated: Fri, 16 Sep 2022 12:02 PM (IST)
जमशेदपुर : पौराणिक कथाओं व मान्यताओं के आधार पर माताओं द्वारा संतान की रक्षा के लिए किया जाने वाला प्रमुख व्रत जीवत्पुत्रिका है, जिसे जिउतिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत आश्विन कृष्ण पक्ष की उदया अष्टमी तिथि को किया जाता है। पं. रमाशंकर तिवारी के अनुसार, शास्त्रीय मान्यता है कि जीवत्पुत्रिका व्रत को करने से संतान शोक नहीं होता है। अतः इस व्रत को माताएं संतान की लंबी आयु, रक्षा, आरोग्यता, सफलता, सुख ख्याति एवं कष्टों से मुक्ति की कामना से करती हैं।
क्षेत्रीय लोकाचार व मान्यताओं के आधार पर इस व्रत में माताएं सप्तमी तिथि को दिन में नहाय खाय रात में विधिवत पवित्र भोजन करके अष्टमी तिथि के सूर्योदय से पूर्व भोर में ही सरगही व चिल्हो सियारो को भोज्य पदार्थ अर्पण कर व्रत प्रारंभ करती हैं। व्रत में राजा जीमूत वाहन की कथा को श्रवण करती हैं।जितिया व्रत का क्या है समय
काशी एवं मिथिला से प्रकाशित पंचांग के अनुसार जीवत्पुत्रिका व्रत रविवार 18 सितंबर को है। शनिवार 17 सितंबर को अपराह्न 2.56 बजे तक सप्तमी तिथि रहेगी, तदुपरांत अष्टमी तिथि लग रही है। अष्टमी तिथि रविवार 18 सितंबर को सायं 4.39 बजे तक रहेगी, उसके बाद नवमी तिथि लगेगी। पौराणिक व शास्त्रीय उल्लेखों के अनुसार सूर्योदय कालीन शुद्ध अष्टमी तिथि में व्रत करके, तिथि के अंत में अर्थात नवमी तिथि में पारण करना वर्णित है। सप्तमी विद्ध अष्टमी तिथि में व्रत प्रारंभ करना शास्त्र सम्मत नहीं है।
राजा जीमूत वाहन की पूजा क्यों
जीमूत वाहन अत्यंत दयालु परोपकारी एवं धर्मात्मा राजा थे उन्होंने सर्पों की रक्षा हेतु अपने शरीर को विष्णु वाहन गरुड़ के समक्ष भोजन हेतु समर्पित कर सर्प की माता को पुत्र शोक से बचाया था। राजा के इस परोपकारी कृत्य से गरुड़ अति प्रसन्न हुए तथा राजा के कहने पर सभी मारे गए सर्पों को पुनः जीवित कर दिया।इसी कारण इस व्रत में राजा जीमूत वाहन की पूजा होती है तथा इस व्रत को जीवत्पुत्रिका व्रत कहा जाता है।
जिउतिया व्रत सूर्योदय के उपरांत की शुद्ध अष्टमी में करना शास्त्र के अनुसार उचित है। व्रत के दौरान शांत चित्त, क्रोध से परहेज करते हुए सदविचार के साथ भगवत भजन व ध्यान करें। परमपिता परमेश्वर की कृपा से सभी व्रतियों का व्रत सफल हो एवं अभीष्ट व मनोवांछित फल की प्राप्ति हो।
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