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Jivitputrika Vrat 2020 : जीवित्‍पुत्रिका व्रत 10 को, जानिए पूजन विधि और शुभ मुहूर्त

Jivitputrika Vrat 2020. महिलाएं आश्विन माह के कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को जितिया या जीवित्‍पुत्रिका व्रत करतीं हैं। इस वर्ष यह व्रत 10 सितंबर को है।

By Rakesh RanjanEdited By: Updated: Mon, 07 Sep 2020 04:52 PM (IST)
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Jivitputrika Vrat 2020 : जीवित्‍पुत्रिका व्रत 10 को, जानिए पूजन विधि और शुभ मुहूर्त
जमशेदपुर, जासं। वंश वृद्धि व संतान की मंगल कामना के लिए महिलाएं आश्विन माह के कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को जितिया या जीवित्‍ पुत्रिका व्रत करतीं हैं। महिलाएं अपने बच्‍चों की लंबी उम्र और उसकी रक्षा के लिए अष्टमी के दौरान निर्जला और निराहार रहती हैं। सनातन धर्मावलंबियों में इस व्रत का विशेष महत्व है। इस वर्ष यह व्रत 10 सितंबर को है।

जितिया व्रत में तीन दिनों का विशेष विधान है। जितिया व्रत में पहले दिन को नहाय-खाय कहा जाता है। इस दिन महिलाएं स्नान करने के बाद एक बार भोजन करती हैं और फिर दिन भर कुछ नहीं खाती हैं। व्रत में दूसरे दिन को खुर जितिया कहा जाता है। अष्टमी के दिन पड़ने वाला खुर जितिया व्रत का विशेष व मुख्‍य दिन है। इस दिन महिलाएं निर्जला व निराहार रहती हैं। व्रत के तीसरे दिन पारण किया जाता है। इस दिन व्रत का पारण करने के बाद ही व्रति महिलाएं भोजन ग्रहण करती हैं।

कोरोना काल में बढ़ा महत्व

समूचा विश्व कोरोना वायरस के प्रकोप से त्राहिमाम कर रहा है। सभी लोग चाह रहे हैं कि वे और उनका पूरा परिवार इस महामारी से कोसों दूर व अछूता रहे। सभी माताएं चाहती हैं कि उनके बच्चे सही सलामत व स्वस्थ रहें। संतान की सलामती के लिए किए जाने वाले जितिया व्रत भी कोरोना काल के दौरान ही पड़ रहा है। ऐसे में कोरोना के बचाव के साथ ही संतान की सुख-समृद्धि के लिए जितिया व्रत का महत्व इस वर्ष और अधिक बढ़ गया है।

10 को पूजा का शुभ मुहूर्त

इस बार आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि बुधवार रात नौ बजकर 54 मिनट पर प्रारंभ होगी और गुरुवार 10 सितंबर की रात 10 बजकर 57 मिनट तक रहेगी। पंडित समरेश बनर्जी के अनुसार 10 सितंबर को अष्टमी में चंद्रोदय का अभाव है। इसी दिन जितिया पूजा किया जाएगा। शुक्रवार को सुबह से ही व्रति महिलाएं पारण कर सकेंगी। इस दौरान व्रति महिलाए स्नान-भोजन के बाद पितरों की पूजा भी करेंगी। इसके पूर्व नहाय-खाय की सभी प्रक्रिया बुधवार नौ सितंबर की रात नौ बजकर 53 मिनट से पहले ही पूरी करनी होगी। नहाय खाय की रात को खुले स्थान में जाकर चारों दिशाओं में कुछ खाना रख दिया जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह खाना चील व सियारिन के लिए रखा जाता है। 

कई दंतकथाएं हैं प्रचलित

जितिया व्रत को लेकर अलग-अलग क्षेत्र में अलग-अलग दंतकथाएं प्रचलित हैं। वैसे जितिया व्रत की कथा महाभारत काल से जुड़ी हुई है। महाभारत युद्ध के बाद अपने पिता की मृत्यु के बाद अश्वथामा क्रोधित थे और बदले की आग में जल रहे थे। उसने रात को पांडवों के शिविर में घुस कर द्रौपदी के पांचों संतान को सोते हुए अवस्‍था में, पांच पांडव समझकर मार डाला था। इस अपराध के कारण अर्जुन ने उसे बंदी बना लिया और उसकी दिव्य मणि छीन ली। इसके बाद अश्वथामा ने उत्तरा की गर्भ में पल रहे संतान को गर्भ में मारने के लिए ब्रह्मास्त्र का उपयोग किया। इसे निष्फल करना नामुमकिन था और उत्तरा की संतान का जन्म लेना आवश्यक था। इस कारण भगवान कृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर उसको गर्भ में ही पुनः जीवित किया। गर्भ में मरकर जीवित होने के कारण उसका नाम जीवित्‍पुत्रिका पड़ा। आगे जाकर यही, राजा परीक्षित बना। तब ही से इस व्रत को किया जाता है।

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