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Jyeshtha Gauri Puja 2021: ज्येष्ठा गौरी पूजन आज, जानिए इस व्रत की महिमा

Jyeshtha Gauri Puja 2021 ज्येष्ठा गौरी पूजन आज है। इस व्रत की मिहमा अपरंपार है। अखंड सुहाग की प्राप्ति के लिए स्त्रियां ज्येष्ठा गौरी का व्रत करती हैं। अगर आपको इसके बारे में नहीं पता तो जानिए। यह व्रत तीन दिनों का होता है।

By Rakesh RanjanEdited By: Updated: Mon, 13 Sep 2021 06:11 PM (IST)
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जानिए ज्येष्ठा गौरी व्रत की महिमा एवं पूजन विधि।
जमशेदपुर, जासं। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को ज्येष्ठा गौरी पूजन का व्रत मनाया जाता है। इस बार यह 13 सितंबर सोमवार को पड़ रहा है। शायद बहुत से हिंदू धर्मावलंबी इस व्रत के बारे में नहीं जानते। बहुत कम घरों में यह व्रत मनाया जाता है। ऐसे में सनातन संस्था के पूर्वी भारत प्रभारी शंभू गवारे इस व्रत की महिमा, व्रत मनाने का उद्देश्य और पूजन विधि के बारे में बता रहे हैं।

सनातन संस्था बताती है कि असुरों से पीड़ित सर्व स्त्रियां श्री महालक्ष्मी गौरी की शरण में गईं और उन्होंने अपना सुहाग अक्षय करने के लिए उनसे प्रार्थना की। श्री महालक्ष्मी गौरी ने भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि पर असुरों का संहार कर शरण में आईं स्त्रियों के पतियों को तथा पृथ्वी के प्राणियों को सुखी किया। इसीलिए अखंड सुहाग की प्राप्ति के लिए स्त्रियां ज्येष्ठा गौरी का व्रत करती हैं।

तीन दिन का होता व्रत

यह व्रत तीन दिनों का होता है। प्रांत भेदानुसार यह व्रत करने की विविध पद्धतियां हैं। इसमें धातु या मिट्टी की प्रतिमा बनाकर अथवा कागज पर श्री लक्ष्मी का चित्र बनाकर उस चित्र का, तथा कई स्थानों पर नदी के तट से पांच कंकड़ लाकर उनका गौरी के रूप  में पूजन किया जाता है। महाराष्ट्र में अधिकतर स्थानों पर पांच छोटे मिट्टी के घडे एक के ऊपर एक रखकर उस पर मिट्टी से बना गौरी का मुखौटा रखते हैं। कुछ स्थानों पर सुगंधित फूल देने वाली वनस्पतियों के पौधे अथवा गुलमेहंदी के पौधे एकत्र कर बांधकर उनकी प्रतिमा बनाते हैं और उस पर मिट्टी से बना मुखौटा चढ़ाते हैं। उस मूर्ति को साड़ी पहनाकर अलंकारों से सजाते भी हैं। गौरी की स्थापना के दूसरे दिन उनका पूजन कर नैवेद्य निवेदित किया जाता है। तीसरे दिन गौरी का नदी में विसर्जन करते हैं। लौटते समय उस नदी की रेत अथवा मिट्टी घर लाकर पूरे घर में छिड़कते हैं।

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