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जानिए, आखिर मलखान सिंह आजकल कंफ्यूज क्यों दिख रहे हैं

आदित्यपुर निवासी व ईचागढ़ से तीन बार विधायक रहे मलखान सिंह उर्फ अरविंद सिंह आजकल कंफ्यूज दिख रहे हैं। इससे उनके शुभचिंतक भी परेशान हैं। राजनीति से लगाव रखने वाले आम लोग भी जानना चाहते हैं कि मलखान सिंह आखिर इस तरह का व्यवहार क्यों कर रहे हैं।

By Jitendra SinghEdited By: Updated: Fri, 11 Dec 2020 11:16 AM (IST)
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अरविंद सिंह उर्फ मलखान सिंह ईचागढ़ के पूर्व विधायक रह चुके हैं।

जमशेदपुर, जागरण संवाददाता। आदित्यपुर निवासी व ईचागढ़ से तीन बार विधायक रहे मलखान सिंह उर्फ अरविंद सिंह आजकल कंफ्यूज दिख रहे हैं। इससे उनके शुभचिंतक भी परेशान हैं। राजनीति से लगाव रखने वाले आम लोग भी जानना चाहते हैं कि मलखान सिंह आखिर इस तरह का व्यवहार क्यों कर रहे हैं। कभी कांग्रेस के धरना-प्रदर्शन में चले जा रहे हैं, तो कभी आम आदमी पार्टी के धरना-प्रदर्शन में शामिल हो रहे हैं। आखिर वे चाहते क्या हैं। 

कभी बात होती है कि वे भाजपा में जाएंगे, तो कभी कांग्रेस में जाने की अफवाह उड़ती है, लेकिन मलखान की गतिविधियों से जनता भी कंफ्यूज हो गई है। उनके करीबी भी नहीं बता पा रहे हैं कि ‘विधायकजी’ के मन में क्या है। जी हां, करीबियों में मलखान सिंह विधायकजी के नाम से ही चर्चित हैं। 

निर्दलीय से निर्दलीय तक

अरविंद सिंह ने 1995 में पहली बार बिहार विधानसभा के लिए ईचागढ़ से जो चुनाव लड़ा था, वह निर्दलीय लड़ा था। हालांकि उन्होंने कांग्रेस से टिकट मांगा था, लेकिन कांग्रेस ने जब टिकट नहीं दिया तो निर्दलीय लड़े और जीते भी थे। इसके बाद इनकी सफलता से उत्साहित होकर भारतीय जनता पार्टी ने इन्हें वर्ष 2000 के चुनाव में टिकट दिया। इस चुनाव में भी मलखान जीते। इसके बाद वर्ष 2005 में भी भाजपा के टिकट पर ईचागढ़ से ही चुनाव लड़े, लेकिन स्व. सुधीर महतो से चुनाव हार गए। इस हार के लिए मलखान सिंह ने भाजपा के ही कुछ लोगों पर भितरघात का आरोप लगाते हुए भाजपा छोड़कर झारखंड विकास मोर्चा का दामन थाम लिया। अरविंद सिंह का यह फैसला सही कहा जा सकता है, क्योंकि 2009 के चुनाव में वे झारखंड विकास मोर्चा के टिकट पर चुनाव लड़े और उपमुख्यमंत्री रहते सुधीर महतो काे हराकर तीसरी बार विधायक बने। इसके बाद 2014 में अरविंद सिंह झाविमो के टिकट पर चुनाव लड़े और हार गए, तो झाविमो को भी तिलांजलि दे दी। 2019 का चुनाव अरविंद सिंह ने ईचागढ़ से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लड़ा और तीसरे नंबर पर आ गए। यहां झामुमो की सविता महतो जीतीं और भाजपा के साधुचरण महतो दूसरे नंबर पर रहे। 2014 के बाद से अरविंद सिंह आज तक निर्दलीय चल रहे हैं।

भाजपा व कांग्रेस में इनके करीबी

अरविंद सिंह के कुछ करीबी इनके साथ ही पार्टी बदलते रहते थे। कभी कांग्रेस, कभी झाविमो तो कभी भाजपा में इनके साथ इनके करीबियों ने झंडा ढोया। लेकिन झाविमो छोड़ने के बाद काफी दिनों तक इनके करीबी भी उहापोह में रहे। जब देखा कि विधायकजी कंफ्यूज हैं तो उन्होंने अपनी सुविधानुसार कांग्रेस और भाजपा में जगह बना ली। ये अब भी इनके साथ रहते हैं, लेकिन अब इनका कोई समर्थक या करीबी निर्दलीय नहीं रहा। इनके पास सुबह-शाम बैठने वाला कोई कांग्रेसी होता है तो कोई भाजपाई। हद तो तब हाे गई, जब हाल ही में ये साकची गोलचक्कर पर आम आदमी पार्टी के धरने में भी शामिल हो गए। लिहाजा इनके करीबियों में आप वाले भी शामिल हो गए हैं। कहा जा रहा है कि विधायकजी सर्वदलीय नेता बनने की ओर कदम बढ़ा रहे हैं।

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