..मक्का भी चाहिए है, मदीना भी चाहिए
ये दुआ थी उन आजमीन की जो सोमवार को हज के पाक सफर पर रवाना हो गए। इन्होंने हज की दुआ ऐसे वक्त पर मांगी थी जो दुआ के मकबूल होने का लम्हा था।
By Preeti jhaEdited By: Updated: Wed, 16 Aug 2017 01:11 PM (IST)
जमशेदपुर, [जागरण संवाददाता] । दिल कह रहा था और घड़ी थी कुबूल की, मक्का भी चाहिए है मदीना भी चाहिए। ये दुआ थी उन आजमीन की जो सोमवार को हज के पाक सफर पर रवाना हो गए। इन्होंने हज की दुआ ऐसे वक्त पर मांगी थी जो दुआ के मकबूल होने का लम्हा था। ये 20 आजमीन का आखिरी जत्था रांची से उड़ान भर कर जद्दा पहुंच गया।
हज यात्रियों की आंखों से आंसू निकल रहे थे। उनकी सदा आ रही थी-मदीने का सफर है और मैं नमदीदा नमदीदा। ये खुशी के आंसू थे। अल्लाह पाक के मकान और उसके महबूब के रौजे की जियारत को जो वो निकल रहे थे। गांधी मैदान मानगो में सामूहिक दुआ के बाद सजी दुआ की महफिल में आजमीन-ए- हज के अलावा उन्हें विदा करने सैकड़ों लोग आए थे। दयारे मदीना देखने की इनकी भी तमन्ना थी।शाहिद अख्तर ने कहाञ-थे-सुर्मा-ए-खाक-ए-मदीना जो लगा आंखों में, मिस्ल आईने के आंखों के नगीने चमके। डा. अफरोज शकील ने पढ़ा-मेरी तरफ से अहल-ए-मदीना को दो पयाम, लोगों खफा न हो मेरी रुखसत है सुब्ह-ओ-शाम। आजमीन को रुखसत करने के लिए महिलाएं भी आई थीं।
दुआ कार्यक्रम का आगाज मौलाना सगीर आलम फैजी ने कुरआन पाक की तिलावत से किया। शायर अशरफ अली अशरफ ने नात पेश की-वह हर घड़ी रहमतों की है बारिश, ऐ मदीने की शाम व सहर अल्लाह अल्लाह। मुफ्ती रियाज अहमद ने सामुहिक दुआ कराई। इस मौके पर डा. नूरजमा खान, डा.अफरोज शकील, सलीम गौसी, शाकिर खान, शाहिद अख्तर आदि को हार पहना कर सम्मानित किया गया। कार्यRम का संचालन मौलाना सगीर और धन्यवाद ज्ञापन डा. अफरोज शकील ने किया। मौके पर हाजी गुलाम नईम, खालिद इकबाल, बाबू भाई, मंजूर आलम साबरी आदि थे।
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