आधुनिक तुलसी के रूप में लोकप्रिय हुए नरेंद्र कोहली, 2017 में पद्मश्री से हुए थे विभूषित
Narendra Kohli नरेंद्र कोहली अपने शुभचिंतकों-प्रशंसकों के बीच आधुनिक तुलसी के रूप में लोकप्रिय थे। कोहली को हिंदी साहित्य में महाकाव्यात्मक उपन्यास विधा को प्रारंभ करने का श्रेय जाता है। देश के पौराणिक व ऐतिहासिक चरित्रों पर उनके लेखन को दुनिया भर में सराहना मिली है।
By Rakesh RanjanEdited By: Updated: Sun, 18 Apr 2021 10:34 AM (IST)
जमशेदपुर, जासं। वरिष्ठ साहित्यकार नरेंद्र कोहली नहीं रहे। वह अपने शुभचिंतकों-प्रशंसकों के बीच 'आधुनिक तुलसी' के रूप में लोकप्रिय थे। कोहली को हिंदी साहित्य में 'महाकाव्यात्मक उपन्यास' विधा को प्रारंभ करने का श्रेय जाता है। देश के पौराणिक व ऐतिहासिक चरित्रों पर उनके लेखन को दुनिया भर में सराहना मिली है।
पौराणिक व ऐतिहासिक चरित्रों की गुत्थियों को सुलझाते हुए उनके माध्यम से आधुनिक समाज की समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करना कोहली की विशेषता है। हाल ही में नरेंद्र कोहली का जीवन अनुभव 'समाज, जिसमें मैं रहता हूं' नाम से छपकर आया था, जिसमें भारतीय संस्कृति, परंपरा और पौराणिक आख्यानों के इस श्रेष्ठ रचनाकार का सामाजिक व पारिवारिक अनुभव शामिल था। डा. कोहली ने साहित्य की सभी प्रमुख विधाओं यथा उपन्यास, व्यंग्य, नाटक, कहानी व गौण विधाओं यथा संस्मरण, निबंध, पत्र के साथ ही आलोचनात्मक साहित्य में भी अपनी लेखनी चलाई और शताधिक ग्रंथों का सृजन किया। उनकी चर्चित रचनाओं में उपन्यास 'पुनरारंभ', 'आतंक', 'आश्रितों का विद्रोह', 'साथ सहा गया दुख', 'मेरा अपना संसार', 'दीक्षा', 'अवसर', 'जंगल की कहानी', 'संघर्ष की ओर', 'युद्ध' (दो भाग), 'अभिज्ञान', 'आत्मदान', 'प्रीतिकथा', 'बंधन', 'अधिकार', 'कर्म', 'धर्म', 'निर्माण', 'अंतराल', 'प्रच्छन्न', 'साधना', 'क्षमा करना जीजी!; कथा-संग्रह 'परिणति', 'कहानी का अभाव', 'दृष्टिदेश में एकाएक', 'शटल', 'नमक का कैदी', 'निचले फ्लैट में', 'संचित भूख'; नाटक 'शंबूक की हत्या', 'निर्णय रुका हुआ', 'हत्यारे', 'गारे की दीवार' आदि शामिल हैं।
2017 में पद्मश्री से हुए थे विभूषित
नरेंद्र कोहली वर्ष 2017 में साहित्य सृजन के लिए पद्मश्री से विभूषित हुए थे। इससे पहले उन्हें शलाका सम्मान, साहित्य भूषण, उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान पुरस्कार, साहित्य सम्मान सहित दर्जनों पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका था। बहुभाषीय साहित्यिक संस्था सहयोग की अध्यक्ष डा. जूही समर्पिता बताती हैं कि नए संदर्भों व सरोकारों के साथ नए स्वरूप में उनकी लिखी रामकथा भारतीय वाङ्मय की अमूल्य निधि है। श्रीराम जी के चरणों में उन्हें स्थान मिले और परिवारजनों व साहित्यजगत को यह दुख सहने की शक्ति मिले। साहित्यिक संस्था सहयोग के प्रत्येक सदस्य की तरफ से आदरणीय कोहली जी को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि। हममें से अनेक साहित्यकारों की कहानियों की उन्होंने समीक्षा की है। हममें से कई रचनाकारों को उनका प्रोत्साहन और स्नेह आशीर्वाद मिला है।
सी. भास्कर राव कोहली के कॉलेज के दिनों के मित्र
जमशेदपुर और यहां की साहित्यिक गतिविधियों पर डा. कोहली की नजर हमेशा बनी रही। लॉकडाउन के दौरान भी उन्होंने ऑनलाइन परिचर्चाओं में इस नगर के साहित्यकारों को शामिल किया। वर्ष 2006 में पहली बार तुलसी भवन में जब स्वदेश प्रभाकर जी की स्मृति में अक्षर कुंभ का आयोजन शुरू किया गया था, तबसे लगातार प्रत्येक वर्ष नरेंद्र कोहली जी के साथ साथ हम सब साहित्यकार इस कुंभ में डुबकी लगाया करते थे। आज उपेंद्र चतरथ जी ने फोन करके मुझसे अपनी संवेदना साझा की। आदरणीय भैया सी. भास्कर राव, जो कोहली जी के कॉलेज के दिनों के मित्र रहे हैं। डा. सूर्या राव भी उनकी सहपाठी रही हैं। संस्कार भारती, जमशेदपुर इकाई के सभी सदस्य आहत हैं। सबके पास अमूल्य स्मृतियां हैं। सब एक-दूसरे को सांत्वना दे रहे हैं। शरीर में अवस्थित उनके शरीर ने आज कारा तोड़ दिया है। महासमर के अमर लेखक कोविड के समर में परास्त हो गए। नहीं होगा कोई उनसा दूसरा, ना भूतो न भविष्यति।
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