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Jharkhand News: पद्मश्री डा. दमयंती बेसरा फिर चर्चा में, ये है खास वजह

Padmashri Dr Damayanti Besra ऑल इंडिया संताली राइटर्स एसोसिएशन की आजीवन सदस्य पद्मश्री डा. दमयंती बेसरा एक बार फिर चर्चा में आई हैं इसकी वजह भी खास है। संताली साहित्य में इनका बेजोड़ योगदान रहा है। आप भी जानिए।

By Rakesh RanjanEdited By: Updated: Sun, 09 May 2021 12:00 PM (IST)
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ऑल इंडिया संताली राइटर्स एसोसिएशन की आजीवन सदस्य पद्मश्री डा. दमयंती बेसरा ।
जमशेदपुर, जासं। ऑल इंडिया संताली राइटर्स एसोसिएशन की आजीवन सदस्य पद्मश्री डा. दमयंती बेसरा एक बार फिर चर्चा में आई हैं, क्योंकि इन्हें हाल ही में ओडिशा के बारीपदा स्थित श्रीरामचंद्र भंजदेव विश्वविद्यालय में सिंडिकेट का सदस्य बनाया गया है। बेसरा एक प्रसिद्ध लेखक तथा शिक्षाविद होने के साथ-साथ ऑल इंडिया संताली राइटर्स एसोसिएशन की आजीवन सदस्य भी हैं। ये साहित्य अकादमी नई दिल्ली में संताली की प्रथम संयोजक भी रही हैं। संताली साहित्य में इनका बेजोड़ योगदान रहा है, आप भी जानिए।

मयूरभंज में ही हुआ जन्म

दमयंती बेसरा का जन्म 18 फरवरी 1962 को जमशेदपुर से सटे ओडिशा के मयूरभंज जिले के बबरजोड़ा में हुआ था। यह गांव जिला मुख्यालय बारीपदा से 90 किलोमीटर दूर है। वह स्वर्गीय राजमल माझी और स्वर्गीय पुंगी माझी की सबसे बड़ी बेटी हैं। शिक्षा की स्थिति उन दिनों अच्छी नहीं थी, खासकर गांवों में। बबरजोड़ा में कोई स्कूल नहीं था। लेकिन कुछ दयालु, तर्कसंगत और शिक्षित मूल निवासियों ने एक छोटे के छांव में शिक्षा दी। दमयंती भी अन्य बच्चों में शामिल हो गई। सबसे पहले, उन्होंने चाक के साथ जमीन पर पत्र लिखना शुरू किया। जब वह पढाई में रुचि लेती थीं तो मामा खुश हो जाते थे। इनके चाचा देउली नामक गांव में रहते थे। उनकी कोई संतान नहीं थी, इसलिए उन्होंने दमयंती को गोद लिया और एक सरकारी स्कूल में दाखिला दिलाया।

दमयंती की प्रारंभिक शिक्षा

बचपन में दमयंती का उपनाम दिगिज् था। संथाल परंपरा के अनुसार नाम उनकी दादी का दिया गया था। लेकिन उसके माता-पिता के नाम के बजाय, उसके चाचा और चाची का नाम स्कूल में लिखा गया था। उनके चाचा स्वर्गीय बुधन माझी थे और चाची स्वर्गीय मणि माझी थीं। इन दो लोगों ने दमयंती को उचित स्कूली शिक्षा प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। देउली स्कूल में, वह तीसरी कक्षा तक पढ़ी, क्योंकि वहां कोई स्कूली शिक्षा उपलब्ध नहीं थी। फिर वह चंदीदा स्कूल चली गई, जो गांव से करीब दो किलोमीटर दूर था। चंदीदा स्कूल में इन्होंने चौथी व पांचवीं कक्षा की पढ़ाई पूरी की। फिर इन्हें टीएंडआर गर्ल्स हाईस्कूल, रायरंगपुर में भर्ती कराया गया। यह इनके छात्रावास जीवन की शुरुआत थी।

रायरंगपुर कन्याश्रम में रहीं

कक्षा छठवीं से 11वीं तक वह रायरंगपुर कन्याश्रम में रहीं। इस दौरान, इन्होंने कविता लिखना शुरू किया। वर्ष 1977 में मैट्रिक पास किया। रायरंगपुर गर्ल्स हाईस्कूल से मैट्रिक पास करने के बाद दमयंती का परिवार आगे की पढ़ाई को लेकर चिंतित हो गया, क्योंकि रायरंगपुर में कोई महिला कालेज नहीं था। इनके चाचा फागुराम माझी ने इन्हें भुवनेश्वर के रामदेवी महिला कालेज में दाखिला दिलाया। भुवनेश्वर में ये पोस्ट मैट्रिक छात्रावास में रही।

मैट्रन ब्रजा दीदी ने की मदद

दमयंती का जन्म संथाली साहित्य की सेवा के लिए हुआ था। उन दिनों छात्रावास की फीस 60 रुपये थी, लेकिन वित्तीय समस्याओं के कारण, वह छात्रावास का बकाया समय पर नहीं चुका पा रही थीं। इन्हें परिवार से 40-50 रुपये ही मिलता था। दमयंती को आर्थिक परेशानी का सामना करना पड़ा। पहनने के लिए केवल दो जोड़ी कपड़े थे। इन सभी कठिनाइयों के बावजूद दमयंती बहुत अच्छा कर रही थी और हमेशा अपने छात्रावास के साथियों के बीच सर्वोच्च अंक प्राप्त करती थीं। इनसे हॉस्टल मैट्रन ब्रजा दीदी (ब्रजेश्वरी मिश्रा) काफी प्रभावित थीं। ब्रजा दीदी दमयंती को अपनी बहन की तरह प्यार करती थी। उन्होंने अधिक बकाया होने के बावजूद छात्रावास में रहने दिया। वह पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति द्वारा छात्रावास के बकाया का भुगतान करने में कामयाब रहीं, जो साल के अंत में मिलता था। 1979 में इंटरमीडिएट आर्ट्स और 1981 में बीए ओडिया (प्रतिष्ठा) के साथ पास किया। वर्ष 1983 में, उन्होंने उत्कल विश्वविद्यालय, भुवनेश्वर से लिंग्विस्टिक में एमए उपाधि प्राप्त की, लेकिन वित्तीय समस्याओं के कारण एमए के दौरान यूनिवर्सिटी हॉस्टल का खर्च उठाने में सक्षम नहीं थीं, जिसकी वजह से ये पोस्ट मैट्रिक छात्रावास में रहीं। कॉलेज के दिनों में इन्होंने ओड़िया और संताली भाषा में लिखना शुरू किया।

संबलपुर में मिली रोजगार अधिकारी की नौकरी

1985 में उन्हें संबलपुर में जूनियर रोजगार अधिकारी के रूप में पहली नौकरी मिली। नौकरी के दौरान इन्होंने कर्मचारी चयन आयोग की तैयारी की और क्लर्क-कम-टाइपिस्ट बनीं। भुवनेश्वर स्थित एजी ओडिशा में काम करते हुए इन्होंने ओडिशा पब्लिक सर्विस कमीशन के लिए आवेदन दिया। इसके बावजूद इन्होंने अपनी दूसरी नौकरी छोड़ दी और वर्ष 1987 में व्याख्याता के रूप में महाराजा प्रताप चंद्र कॉलेज में योगदान दिया। यही वह नौकरी थी जिसके लिए वह बनी थीं। यहीं से इन्हें साहित्य सेवा के लिए मौका मिला। कविताओं के साथ निबंध भी लिखने लगीं।

साहित्यिक प्रतिभा का उदय

वर्ष 1988 में दमयंती बेसरा का विवाह गंगाधर हांसदा से हुआ। वह एक बैंक अधिकारी थे और साहित्य के लेखक और प्रेमी भी। दरअसल इनकी शादी न केवल दिलों का बंधन था, बल्कि दो साहित्य प्रेमियों का मिलन भी साबित हुआ। हांसदा से शादी करने के बाद इनका भाग्य बदल गया। 1990 में इनकी पहली कविता "ओनोलिया" (लेखक) फागुन कोयल पत्रिका में प्रकाशित हुई थी, पंडित रघुनाथ मुर्मू पर एक निबंध भी प्रकाशित हुआ था। दमयंती यहीं नहीं रुकी। इन्होंने ओड़िया और संताली दोनों भाषाओं में कविता और निबंध लिखना जारी रखा। अपने पति से मिले प्रोत्साहन के बाद दमयंती ने एमफिल ओड़िया वर्ष 1993 में पूरा किया। दमयंती के पति भी एक लेखक हैं, उन्होंने नाटक लिखे। शादी के बाद, लेखक की जोड़ी ने विग सार नाम का एक नाटक लिखा। गंगाधर को उन कविताओं के बारे में पता चला जो दमयंती लिख रही थीं, तो उन्होंने उसे प्रकाशित करने के लिए प्रोत्साहित किया। 1994 में दमयंती की पहली एंथोलॉजी जिवि झरना प्रकाशित हुई। यह एक महिला संताली लेखक द्वारा लिखित और प्रकाशित पहली रचना है। इस एंथोलॉजी के लिए, उन्हें ऑल इंडिया संताली राइटर्स एसोसिएशन से "वर्ष का कवि" पुरस्कार मिला। वर्ष 2020 में इन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया।

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