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मिल रही हूं खाक में मैं खरकई Jamshedpur News

200 किलोमीटर का सफर पूरा करने के बाद सोनारी दोमुहानी में अपना सफर स्वर्णरेखा के साथ शुरू करती हूं। यह सफर भी सुखद नहीं रहता। कई गंदे नालों से सामना होता है।

By Rakesh RanjanEdited By: Updated: Sat, 22 Jun 2019 04:47 PM (IST)
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मिल रही हूं खाक में मैं खरकई Jamshedpur News

जमशेदपुर, वीरेंद्र ओझा। झारखंड के दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में बहने वाली पहाड़ी नदी हूं। मेरा उद्गम ओडिशा के मयूरभंज जिला से होता है। एशिया के घने जंगलों में शुमार सिमलीपाल से साफ-सुथरी निकलती हूं। रास्ते में वनौषधि से तृप्त होते हुए कलकल निनाद करते हुए चलती हूं।

चाईबासा के पास मेरा सीना चौड़ा हो जाता है। इससे पहले जोड़ा और नोवामुंडी का इलाका पड़ता है, जहां मेरा रंग लाल हो जाता है। यहां की मिट्टी लौह अयस्क (आयरन ओर) से पटी रहती है, लिहाजा यह मेरे अंदर भी समा जाती है। चाईबासा से जैसे-जैसे आगे बढ़ती हूं, मेरा रंग साफ होता जाता है। लेकिन यहां मुझे एक नई परेशानी का सामना करना पड़ता है। यहां मुझे करीब 40 साल से बांधने (ईचा डैम) की कोशिश चल रही है। सरकार की लाख कोशिश के बावजूद यह काम पूरा नहीं हो सका है, क्योंकि यहां के ग्रामीण मुझे आजाद और अविरल बहते हुए देखना चाहते हैं। बहरहाल, चाईबासा से मेरा रास्ता सरायकेला की ओर मुड़ जाता है। यहां से मैं खरसावां की सीमा को छूते हुए गम्हरिया और आदित्यपुर से गुजरती हूं, साफ रहती हूं। लेकिन जैसे ही जुगसलाई से गुजरती हूं, मेरा सामना नर्क से होता है। यहां 13 ‘मलहारिणी सरिता’ (नाले) मुझे मटमैला कर देते हैं।

200 किलोमीटर का सफर पूरा करने के बाद सोनारी दोमुहानी में अपना सफर स्वर्णरेखा के साथ शुरू करती हूं। यह सफर भी सुखद नहीं रहता। जमशेदपुर की सीमा तक कई गंदे नालों से सामना होता है। जगह-जगह रिहाइशी कालोनी का गंदा पानी मेरे अंदर समाने लगते हैं। यहां मैं दो जिलों के बीच से गुजरती हूं, जिसमें बायीं ओर सरायकेला-खरसावां जिला का आदित्यपुर पड़ता है, जबकि दायीं ओर पूर्वी सिंहभूम जिला के जमशेदपुर शहर का कदमा-सोनारी का इलाका है। टाटा स्टील व जुस्को के प्रयास से अब शहरी इलाकों का गंदा पानी नहीं आता, इसलिए साफ रहती हूं। आदित्यपुर वाले इलाके में आबादी नहीं के बराबर है, इसलिए यहां भी गंदगी से खतरा नहीं के बराबर है। बस यहीं मेरा मिलन स्वर्णरेखा नदी से होता है, जिसमें मैं समा जाती हूं। स्वर्णरेखा के साथ मिलकर मैं पश्चिम बंगाल होते हुए ओडिशा के बालासोर जाकर बंगाल की खाड़ी में समा जाती हूं।

 गांजिया बराज देगा 250 गांवों को जीवन

बरसात के दिनों में सरायकेला-खरसावां जिला स्थित गम्हरिया व सरायकेला के आसपास बसे करीब 250 गांव टापू बन जाते हैं। इन दिनों यहां की खेती तो चौपट हो ही जाती है, यहां के लोगों को गम्हरिया प्रखंड मुख्यालय जाने के लिए पांच की बजाय 50 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। इन गांवों को बचाने के लिए गम्हरिया के पास गांजिया बराज बन रहा है। फिलहाल इसमें आधा काम ही हुआ है। इसके बनने से इन ढाई सौ गांवों को नया जीवन मिल जाएगा। इसके बन जाने से गम्हरिया प्रखंड के पांच और राजनगर प्रखंड के 10 पंचायत के 15,000 हेक्टेयर में फैले खेतों की सिंचाई हो सकेगी। गांजिया बराज का निर्माण दूसरी बार हो रहा है, इससे पहले बना पुल और डायवर्सन तीन जुलाई 2017 को बह गया था। इस बराज का निर्माण सुवर्णरेखा बहुद्देशीय परियोजना के तहत किया जा रहा है, जिसकी अनुमानित लागत लगभग 250 करोड़ रुपये है।

किसानों के लिए वरदान

गर्मी के मौसम में खरकई नदी का 90 फीसद पानी कम हो जाता है। इसका उपयोग आसपास के किसान खीरा-ककड़ी उपजाने के लिए करते हैं। सरायकेला और आदित्यपुर के पास खरकई नदी के किनारे बड़े पैमाने पर खीरा-ककड़ी की खेती होती है। यह सिलसिला बरसात में नदी के भरने तक चलता है। इस लिहाज से खरकई नदी के खेती के काम भी आती है।

विधायक के लगाए तीन हजार पौधे गायब, मेयर के हरे-भरे

सरायकेला खरसावां जिले में एक वर्ष पूर्व झारखंड सरकार के आह्वान पर वृहद स्तर पर पौधरोपण किया गया था। इस मौके पर विधायक चंपई सोरेन ने भी आदित्यपुर ट्रांसपोर्ट कालोनी के पास खरकई नदी के किनारे पौधरोपण का उद्घाटन किया था। इसमें करीब तीन हजार पौधे लगाए गए थे, लेकिन आज एक भी पौधा नहीं बचा है। उसी दिन उसी स्थान के पास आदित्यपुर नगर निगम के मेयर विनोद श्रीवास्तव के नेतृत्व में भी पौधरोपण हुआ था, जिसमें करीब 100 पौधे लगाए गए थे। मेयर के लगाए सभी पौधे आज भी हरे-भरे हैं। कई तो वृक्ष का रूप ले रह हैं। मेयर का कहना है कि उन्होंने इन पौधों की नियमित देखभाल की। वहीं, सरायकेला के विधायक चंपई सोरेन का कहना है कि वन विभाग जब सरकारी आयोजन करता है, तो उसे पौधे की देखभाल भी करनी चाहिए। देखरेख के अभाव में पौधे सूख गए।

जुगसलाई-आदित्यपुर में नहीं बना सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट

खरकई नदी में पहले कदमा व सोनारी के रिहाइशी इलाकों का गंदा पानी जाता था, लेकिन यहां जुस्को सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बना दिया है। जुगसलाई की ओर पार्वती घाट के पास भी टाटा स्टील की ओर से कंपनी का गंदा पानी नदी में गिरता था, जो अब नहीं है। टाटा स्टील अब इस पानी को साफ करके नदी में छोड़ती है। इसके बावजूद जुगसलाई और आदित्यपुर इलाके में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट नहीं बनाया है, जिससे 13 गंदे नालों का पानी अब भी खरकई में गिर रहा है। बिष्टुपुर इलाके में खरकई पुल के पास दुर्गापूजा व काली पूजा की मूर्तियों का विसर्जन होता है।

ईचा डैम बनना ही उपाय

खरकई नदी को बचाने का एक ही उपाय है कि ईचा डैम बन जाए। इसके बने बिना नदी में सालों भर पानी नहीं रहेगा। बरसात के दिनों में इस नदी में ओडिशा के ब्यांगबिल या बैंक्वेल डैम से पानी छोड़ा जाता है, तो सरायकेला-खरसावां जिले में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इसके बाद नदी सूखने लगती है। डैम में पानी रहेगा तो धीरे-धीरे ही सही जल का प्रवाह बना रहेगा। इसके अलावा जब यह नदी आदित्यपुर से होते हुए बागबेड़ा-जुगसलाई के इलाके से गुजरती है, तो वहां एक दर्जन गंदे नाले गिरते हैं। यहां सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाना बहुत जरूरी है। इससे नदी बुरी तरह प्रदूषित हो जाती है। इससे जुगसलाई से सोनारी तक खरकई में जलकुंभी हो जाती है, जिसमें मच्छर पनपते हैं। यह क दमा-सोनारी से लेकर जुगसलाई व आदित्यपुर के लोगों की परेशानी का कारण बनता है। इससे मच्छरजनित बीमारी फैलती है।

 - सरयू राय (पर्यावरणविद् सह खाद्य आपूर्ति मंत्री,झारखंड सरकार)

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