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जमशेदपुर सहित देश-विदेश में आज मनाई जा रही राजीव दीक्षित की जयंती, जानिए कौन थे

Rajiv Dixit Birth Anniversary राजीव दीक्षित ने इन विदेशी कंपनियों और भारत में चल रहे अंग्रेजी कानूनों के विरुद्ध एक बार फिर से वैसा ही स्वदेशी आंदोलन शुरू करने का संकल्प लिया जैसा किसी समय बालगंगाधर तिलक ने अंग्रेजों के विरुद्ध किया था।

By Rakesh RanjanEdited By: Updated: Tue, 30 Nov 2021 01:10 PM (IST)
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राजीव दीक्षित का जन्म 30 नवंबर 1967 को उत्तर प्रदेश राज्य के अलीगढ़ जनपद में हुआ था।
जमशेदपुर, जासं। राजीव दीक्षित का जन्म 30 नवंबर 1967 को उत्तर प्रदेश राज्य के अलीगढ़ जनपद की अतरौली तहसील के नाह गांव में पिता राधेश्याम दीक्षित व माता मिथिलेश कुमारी के सुपुत्र के रूप में हुआ था। उन्होंने अपनी प्राथमिक तथा माध्यमिक शिक्षा फिरोजाबाद जिले के एक शाला से प्राप्त की। इसके उपरांत उन्होंने श्री प्रयागराज (तत्कालीन इलाहाबाद) शहर के जेके इंस्टीटयूट से बीटेक तथा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (Indian Institute of Technology ) IIT कानपुर से एमटेक की उपाधि प्राप्त की। राजीव भाई ने कुछ समय भारत CSIR (Council of Scientific and Industrial Research) में कार्य किया। उन्होंने गोपनीय Research Project मे भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के साथ भी कार्य किया।

पढ़ाई के दौरान शुरू कर दिया था आंदोलन

राजीव ने श्री प्रयागराज (तत्कालीन इलाहाबाद) के जेके इंस्टीटयूट से बी.टेक. की शिक्षा लेते समय ही ‘आजादी बचाओ आंदोलन’ से जुड गए, जिसके संस्थापक बनवारीलाल शर्मा थे, जो इलाहाबाद विश्वविद्यालय में ही गणित विभाग के मुख्य शिक्षक थे। संस्था में राजीव भाई प्रवक्ता के पद पर थे। संस्था में अभय प्रताप, संत समीर, केशर, राम धीरज, मनोज त्यागी व योगेश कुमार मिश्रा जी शोधकर्ता अपने अपने विषयों पर शोध कार्य करते थे। जो संस्था द्वारा प्रकाशित ‘नई आजादी उद्घोष’ नामक मासिक पत्रिका में प्रकाशित हुआ करते थे।

बाल्यकाल से ही थे जिज्ञासु

राजीव भाई को बाल्यकाल से ही देश की समस्त समस्याओं को जानने की गहरी रुचि थी। वे जब नौवी कक्षा में थे कि अपने इतिहास के अध्यापक से एक ऐसा सवाल पूछा, जिसका उत्तर उन अध्यापक के पास भी नहीं था। जैसा कि आप जानते हैं कि, हमको इतिहास की किताबों मे पढाया जाता है कि, अंग्रेजों का भारत के राजा से प्रथम युद्ध सन 1757 मे पलासी के मैदान में रॉबर्ट क्लाइव और बंगाल के नवाब सिराजुद्दोला से हुआ था। उस युद्ध में रॉबर्ट क्लाइव ने सिराजुद्दोला को हराया था और उसके बाद भारत गुलाम हो गया था। राजीव ने अपने इतिहास के अध्यापक से पूछा कि, सर! मुझे ये बताइए कि, पलासी के युद्ध में अंग्रेजों की ओर से लड़ने वाले कितने सिपाही थे ? अध्यापक बोले-मुझको नहीं मालूम, तो राजीव ने पूछा क्यों नहीं मालूम ? अध्यापक बोले कि मुझे किसी ने नहीं पढाया आज तक तो मैं तुमको कहां से पढ़ाऊं? राजीव ने पूछा कि, सर आप जरा ये बताइए कि बिना सिपाही के कोई युद्ध हो सकता है ? अध्यापक ने कहा नही....! फिर राजीव ने पूछा फिर हमको ये क्यों नहीं पढाया जाता है कि युद्ध में कितने सिपाही थे अंग्रेजो के पास ? एक और प्रश्न राजीव ने पूछा था कि, तो ये बताइए कि अंग्रेजों के पास कितने सिपाही थे, ये तो हमको नहीं मालुम। तो सिराजुद्दोला, जो हिंदुस्तान की ओर से लड़ रहा था, उनके पास कितने सिपाही थे?  अध्यापक ने कहा कि, वो भी नहीं मालूम। इस प्रश्न का जवाब बहुत बडा और गंभीर है कि, आखिर इतना बड़ा भारत देश मुठ्ठी भर अंग्रेजों का दास कैसे हो गया ? इसका उत्तर आपको राजीव भाई के 'आजादी का असली इतिहास' नामक व्याख्यान में मिल जाएगा।

प्रो. धर्मपाल बने गुरु

इसी बीच उनकी मुलाकात प्रो. धर्मपाल नामक इतिहासकार से हुई, जिनकी किताबें अमेरिका मे पढाई जाती है, परंतु भारत मे नहीं। धर्मपाल जी को राजीव भाई अपना गुरु भी मानते है, उन्होने राजीव भाई के अनेक प्रश्नों के उत्तर ढूंढने मे बहुत मदद की। उन्होंने राजीव भाई को भारत के बारे मे वो दस्तावेज उपलब्ध कराए, जो इंग्लैंड की लाइब्रेरी हाउस ऑफ कामन्स मे रखे थे, जिनमें अंग्रेजो ने पूरा वर्णन किया था कि कैसे उन्होने भारत गुलाम बनाया। राजीव भाई ने उन सब दस्तावेजों का बहुत अध्यन किया और ये जानकर उनके रोंगटे खडे हो गए कि भारत के लोगो को भारत के बारे मे कितना गलत इतिहास पढ़ाया जा रहा है। फिर लोगों के सामने वास्तविकता लाने के लिए राजीव भाई गांव, शहर–शहर जाकर व्याख्यान देने लगे और साथ-साथ देश की आजादी और देश के अन्य गंभीर समस्याओ का इतिहास और उसका समाधान तलाशने में लगे रहते।

योगेश मिश्रा के पिता ने बताया आजादी का सच

इलाहबाद में पढते हुए उनके एक निकटस्थ मित्र हुआ करते थे, जिनका नाम है योगेश मिश्रा। उनके पिता इलाहबाद हाईकोर्ट मे वकील थे। राजीव भाई और उनके मित्र अक्सर उनसे देश की स्वतंत्रता से जुडी रहस्यमयी बातों पर वार्तालाप किया करते थे। तब राजीव भाई को पता चला कि 15 अगस्त 1947 को देश मे कोई आजादी नहीं मिली, बल्कि 14 अगस्त 1947 की रात को अंग्रेज माउंटबेटन और नेहरू के बीच समझोता हुआ था, जिसे सत्ता हस्तांतरण संधि अर्थात "Transfer of Power Agreement" कहते हैं। इस समझौते के अनुसार अंग्रेज अपनी कुर्सी पंडित जवाहरलाल नेहरू को देकर जाएंगे, परंतु उनके द्वारा भारत को बर्बाद करने के लिए बनाए गए 34,735 कानून वैसे ही इस देश मे चलेंगे। स्वतंत्रता संग्राम में पूरे देश का विरोध ईस्ट इंडिया कंपनी के विरुद्ध था, तो केवल एक ईस्ट इंडिया कंपनी भारत छोड़ कर जाएगी, परंतु भारत को लूटने आई अन्य 126 विदेशी कंपनियां वैसे ही भारत में व्यापार करके अनवरत लूटती रहेंगी। आज उन विदेशी कंपनियों की संख्या बढ़ कर 6000 पार कर गई है। इस बारे मे और अधिक जानकरी उनके व्याख्यानों मे मिलेगी।

स्वदेशी आंदोलन का लिया संकल्प

सब जानने के बाद राजीव भाई ने इन विदेशी कंपनियों और भारत में चल रहे अंग्रेजी कानूनों के विरुद्ध एक बार फिर से वैसा ही स्वदेशी आंदोलन शुरू करने का संकल्प लिया, जैसा किसी समय बालगंगाधर तिलक ने अंग्रेजों के विरुद्ध किया था।

अपने राष्ट्र मे पूर्ण स्वतंत्रता लाने और आर्थिक महाशक्ति के रुप में खडा करने के लिए उन्होंने आजीवन ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा की और उसे आजीवन निभाया। वे घूम-घूमकर लोगों को भारत में चल रहे अंग्रेजी कानून, आधी अधूरी आजादी का सच, विदेशी कंपनियो की भारत में लूट आदि विषयो के बारे मे बताने लगे। सन 1999 में राजीव के स्वदेशी व्याख्यानों की कैसेटों ने समूचे देश में धूम मचा दी थी।

भोपाल गैस कांड

सन 1984 मे जब भारत में भोपाल गैस कांड हुआ, तब राजीव ने इसके पीछे के षडयंत्र का पता लगाकर ये खुलासा किया कि ये कोई घटना नहीं थी, बल्कि अमेरिका द्वारा किया गया एक परीक्षण था (जिसकी अधिक जानकारी आपको उनके व्याख्यानों में मिलेगी) तब राजीव भाई ने यूनियन कार्बाइड कंपनी के विरुद्ध प्रदर्शन किया। इसी प्रकार सन 1995-96 में टिहरी बांध निर्माण के खिलाफ ऐतिहासिक मोर्चे में भाग लिया और पुलिस लाठी चार्ज में काफी चोटें भी खायी। इसी प्रकार 1999 में उन्होंने राजस्थान के कुछ गांव वासियों साथ मिलकर एक शराब बनाने वाली कंपनी, जिसको सरकार ने लाइसेंस दिया था और वो कंपनी रोज जमीन की नीचे बहुत अधिक मात्रा मे पानी निकाल कर शराब बनाने वाली थी, उस कंपनी को भगाया।

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