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Ratan Tata, Tata Group : रतन टाटा ने विदेशी कंपनियों का अधिग्रहण कर टाटा ग्रुप को ऐसे बनाया ग्लोबल

Ratan Tata Tata Group रतन टाटा ने 1991 में जब टाटा समूह का चेयरमैन पद संभाला तो उस समय देश में आर्थिक सुधार हो रहा है। भारतीय बाजार पूरी दुनिया के लिए खुल रही थी। इसी समय रतन टाटा ने टाटा समूह का ग्लोबलाइजेशन करने के बारे में सोचा...

By Jitendra SinghEdited By: Updated: Sun, 23 Jan 2022 05:16 PM (IST)
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Ratan Tata, Tata Group : रतन टाटा ने विदेशी कंपनियों का अधिग्रहण कर टाटा ग्रुप को ऐसे बनाया ग्लोबल
जमशेदपुर : देश में यदि भारतीय कंपनियों के वैश्वीकरण की बात आती है तो टाटा समूह पहली कंपनी है जिसका सबसे पहले वैश्वीकरण हुआ। टाटा समूह के संस्थापक जमशेद जी नसरवान जी टाटा ने वर्ष 1868 में चीन के साथ व्यापार की शुरूआत करने के साथ ही समूह के वैश्वकीकरण की शुरूआत की। लेकिन सहीं मायने में इसे वैश्विक रूप देने वाले हैं वर्तमान में टाटा समूह के अंतरिम चेयरमैन रतन टाटा। इसके लिए उन्होंने एक अंतराष्ट्रीय साम्राज्य का निर्माण किया।

रतन टाटा ने 1983 में शुरू किया खाका

रतन टाटा ने समूह को वैश्विक रूप देने के लिए वर्ष 1983 में अंतराष्ट्रीय स्तर पर विकसित करने की सिफारिश की। साथ ही वे वैश्विक स्तर से आने वाले अवसरों पर समूह का फोकस करने की पहल की। वर्ष 1991 में जब रतन टाटा समूह के चेयरमैन बने तो भारत में आर्थिक सुधारों की शुरूआत हो चुकी थी।

यह समय भारत में वैश्वीकरण के रूप में एक नई पहल थी। रतन टाटा ने बड़ी-बड़ी कंपनियों का अधिग्रहण कर न सिर्फ भारतीय नेतृत्वकर्ताओं की मानसिकता बदली बल्कि यह भी बता दिया कि भारतीय कंपनियां भी विदेशी कंपनियों का अधिग्रहण कर सकती है।

सबसे पहले किया टेटली का अधिग्रहण

टाटा समूह के चेयरमैन रहते रतन टाटा ने केवल नौ वर्षों में 36 छोटी बड़ी कंपनियों का अधिग्रहण किया। इसमें सबसे पहले वर्ष 2000 में चाय कंपनी टेटली का अधिग्रहण किया। वर्ष 1990 में टेटली लिप्टन दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चाय ब्रांड बन गया था। जबकि टाटा टी दुनिया की सबसे बड़ी चाय उत्पादक कंपनी थी।

टाटा ने महसूस किया कि पूरे भारत में 50 से अधिक चाय बगान होने के बावजूद उनके पास कोई ब्रांड नहीं है। ऐसे में टाटा समूह ने टाटा टी को लंबे समय के लिए मैदान में उतारने के लिए दूसरी कंपनियों को अधिग्रहण करने पर विचार किया ताकि उनके मार्केट को भी कैप्चर किया जा सके। जब टेटली के मालिकों ने अपने ब्रांड बेचने का फैसला किया, तो टाटा ने तुरंत ही इस मौके का फायदा उठाया।

271 मिलियन यूरो में खरीदा था टेटली

टाटा ने दुनिया भर के खरीदारों को पछाड़ कर 271 मिलियन यूरो में टेटली का अधिग्रहण किया। यह किसी भी भारतीय कंपनी द्वारा किसी अंतराष्ट्रीय ब्रांड का सबसे बड़ा अधिग्रहण था। इस अधिग्रहण के साथ टाटा टी अंतराष्ट्रीय स्तर पर उस स्थिति पर पहुंच चुका था जहां वह न सिर्फ दूसरी सबसे बड़ी चाय कंपनी बनी बल्कि उसने यूनीलीवर औार लॉरी जैसे वैश्विक कंपनियों के आंख में आंख मिलाकर प्रतियोगिता में शामिल हो सकता था।

रतन टाटा ने टाटा टी को वैश्विक पेय कंपनी बनाते हुए अपने सपने को साकार किया और टाटा टी बदलकर टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट बन गई। आज इस कंपनी में टेटली, टाटा टी, टाटा कॉफी, हिमालय जैसे कई अन्य उत्पाद भी शामिल हो चुके हैं।

इस कड़ी में टाटा समूह ने एंग्लो डच स्टील कंपनी कोरस, टाटा मोटर्स द्वारा ब्रिटिश ऑटोमोबाइल कंपनी जगुआर और लैंड रोवर का भी अधिग्रहण किया। रतन टाटा की इस पहल का देश में जबदस्त उत्साह दिखा। वैश्विक स्तर पर भारत का नाम हुआ और टाटा समूह वैश्विक स्तर पर इंडियन टेकओवर की अगुवाई कर रहा था।

कोरस से समूह का लगा बड़ा झटका

टाटा स्टील ने वर्ष 2008 में अपने से ज्यादा बड़ी कंपनी कोरस का अधिग्रहण किया। उस समय यह यूरोप की सबसे बड़ी स्टील उत्पादन कंपनी थी। लेकिन इस अधिग्रहण के बाद ही आर्थिक मंदी का दौर आया और कंपनी की स्थिति बिगड़ गई। विशलेषकों ने टाटा की आलोचना करनी शुरू कर दी। लेकिन रतन टाटा ने अपने निर्णय को सहीं साबित करने हुए इस कंपनी को प्रोफिट देने वाली कंपनी के रूप में विकसित कर दिया।

महंगा पड़ा कोरस का अधिग्रहण

रतन टाटा ने दूसरी सबसे बड़ी कंपनी कोरस का अधिग्रहण किया। टाटा समूह ने ब्राजील के एक प्रतिद्धंद्धी के खिलाफ सीधे मुकाबले में 13.1 अरब अमेरिकी डॉलर में कोरस कंपनी का अधिग्रहण किया। जो उस समय 25 मिलियन टन वार्षिक क्षमता के साथ दुनिया की 10 शीर्ष स्टील उत्पादक कंपनियों में से एक थी।

हालांकि इस अधिग्रहण के साथ ही जहां भारतीय स्टील सेक्टर में टाटा के कदम की सराहना हुई वहीं, राष्ट्रीय स्तर पर यह बहस भी शुरू हो गया कि कोरस का अधिग्रहण काफी अधिक राशि में की गई है। लेकिन रतन टाटा ने इस अधिग्रहण को सहीं ठहराया। जिसने टाटा को यूरोपिय बाजार तक पहुंच स्थापित कर दी थी।

रतन टाटा ने कभी हिम्मत नहीं हारी

रतन टाटा ने स्पष्ट किया था कि एक दौर आएगा जब पीछे मुड़कर कहेंगे कि हमने सहीं काम किया था। हालांकि दुर्भाग्य से जब टाटा ने यूरोप में प्रवेश किया तो वह दौर बहुत बेहतर नहीं था। अमेरिका सहित चीन ने यूरोप में सस्ती कीमत में स्टील की डंपिंग शुरू कर दी और इससे बाजार में स्टील की कीमतें काफी प्रभावित हुई।

हालांकि 12 सालों के बाद कंपनी ने स्वीकार किया कि उसने गलत समय में बाजार में दांव लगाया। वर्ष 2018 में थिसेनक्रूप एजी के साथ संयुक्त उद्यम की अपनी हिस्सेदारी टाटा समूह ने बेच दी। इसके बाद दूसरी तिमाही में टाटा स्टील के शुद्ध लाभ में टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) को पीछे छोड़ते हुए सबसे अधिक मुनाफे वाली कंपनी बन गई।

जगुआर लैंड रोवर (जेएलआर)

2008 में टाटा मोटर्स ने फोर्ड मोटर कंपनी से 2.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर में जगुआर लैंड रोवर का अधिग्रहण किया। हालांकि अमेरिकी बाजार में मंदी की चपेट में आने से लग्जरी व एसयूवी कार की मांग में कमी आई और जेएलआर को काफी नुकसान हुआ। दिवालिया होने के कगार पर फोर्ड ने जगुआर लैंड रोवर डिवीजन की बिक्री के लिए एक अच्छा खरीदार की तलाश कर रही थी।

ऐसे में टाटा ने वैश्विक बाजार में टाटा की कार को स्थापित करने के लिए ऑटोमोबाइल सेक्टर में लक्जरी व हाई एंड प्रीमियम सेग्मेंट में प्रवेश करने का मौका देखा और इस कंपनी का भी 219 बिलियन डॉलर में अधिग्रहण किया।

शुरुआती नुकसान के बाद संभला जगुआर

शुरुआत में कंपनी को नुकसान झेलना पड़ा। इस पर आलोचकों ने कहा कि अधिग्रहण का समय इससे बुरा नहीं हो सकता। लेकिन अगले 18 माह में कंपनी का स्टॉक तीन गुणा हुआ बल्कि ग्राहकों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई। वर्ष 2009 से 2017 के बीच जेएलआर ने अपने प्रोडक्ट पर निवेश किया और अपने मुनाफे को बढ़ाकर 34 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचा दिया। पिछले कुछ वर्षों से टाटा मोटर्स ने अपने घरेलू कारोबार में हुए नुकसान की भरपाई जेएलआर के मुनाफे से बराबर किया और टाटा मोटर्स के रेवेन्यू में 80 प्रतिशत का योगदान दिया।

103 बिलियन डॉलर तक पहुंचा समूह का कारोबार

टाटा समूह ने इन सभी अधिग्रहणों की मदद से वर्ष 2020-21 में समूह का कुल राजस्व बढ़ाकर 103 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचा दिया है। वर्तमान में टाटा समूह 121 देशों में अपनी पहुंच स्थापित करते हुए आठ लाख से अधिक लोगों को रोजगार देती है और समूह के कुल राजस्व का 65 प्रतिशत भारत से ही उत्पन्न होता है।

रतन टाटा का कहना है कि टाटा समूह का हम वैश्वीकरण करना चाहते थे इसलिए हमने पूरी प्लानिंग के साथ इस दिशा में पहल की। यही कारण है कि वर्ष 1992 में कंपनी का कुल राजस्व आठ बिलियन डॉर से बढ़कर 103 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया है।

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