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दबे पांव खींच ले गई मौत, इनके हिस्से छोड़ गई दुश्वारियां

डायरिया से परिवार के मुखिया की मौत के बाद मुसाबनी के नायक परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है।

By JagranEdited By: Updated: Tue, 04 Sep 2018 04:53 PM (IST)
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दबे पांव खींच ले गई मौत, इनके हिस्से छोड़ गई दुश्वारियां

मुरारी प्रसाद सिंह, मुसाबनी : किसी ने कहा है: जिंदगी की दुश्वारिया दो-चार दिन की। लेकिन यहां तो दुश्वारियों का पहाड़ ही खड़ा हो गया है। दबे पांव मौत खींच ले गई और इनके हिस्से दुश्वारियां छोड़ गई। आलम यह है कि जिंदगी उस अंधेरी सुरंग की मानिंद बन गई है जहां दीये की रोशनी दूर-दूर तक नहीं दिखती।

पूर्वी सिंहभूम के जिला मुख्यालय जमशेदपुर से 40 किलोमीटर दूर स्थित गांव बादिया का शिव मंदिर पारा। घाटशिला अनुमंडल मुख्यालय से 16 किलोमीटर जबकि मुसाबनी प्रखंड मुख्यालय से दो किलोमीटर की दूरी पर बसे इस गांव में सबकुछ ठीकठाक चल रहा था। लोग मेहनत-मजूरी कर अपनी जिंदगी की गाड़ी खींच रहे थे। किसी से कोई शिकवा-शिकायत नहीं। लेकिन अगस्त महीना जाते हुए स्थिति ही बदल गया। यहां डायरिया की बीमारी फैली और दर्जनों लोग इसकी जद में आ गए। बीमारी से निजात पाने की जिद्दोजहद के बीच दो लोगों की जान चली गई। परेशान हाल गांव में अंधविश्वास ने भी डेरा जमा लिया। आलम यह कि डायरिया से मौत के शिकार अपनों को कंधा देने से भी परहेज किया जाने लगा।

24 अगस्त की रात फैली डायरिया: गांव में 24 अगस्त को डायरिया फैली। सूचना पर मेडिकल टीम पहुंची और इलाज शुरू किया गया। गंभीर रूप से पीड़ित तीन लोगों जमशेदपुर के एमजीएम अस्पताल भेजा गया। 25 अगस्त को एमजीएम में इलाज के दौरान अंजना नायक की मौत हो गई। अंजना की मौत के बाद डायरिया पीड़ित देवानंद नायक एमजीएम अस्पताल से भागकर घर चला गया। 31 अगस्त को परिजन उसे लेकर एमजीएम में पहुंचे और एक सितंबर सुबह उसकी मौत हो गई। लगातार दो मौतों के बाद गाव में दहशत पसर गया। देवानंद का शव गांव पहुंचा और अंतिम संस्कार की तैयारी शुरू हुई तो ग्रामीणों ने अंतिम संस्कार में शामिल होने से मना कर दिया। लोगों का कहना रहा कि अंतिम संस्कार में शामिल होने से उनके साथ भी अशुभ हो सकता है। किसी तरह परिजनों से देवानंद का अंतिम संस्कार किया।

किसी तरह किया श्राद्ध, अब रोटी के लाले: देवानंद की अकाल मौत के बाद परिवार जिस स्थिति से रूबरू है उसकी कल्पना नहीं की जा सकती है। पहले तो बकरी बेचकर परिजनों ने शव वाहन का किराया चुकाया। उसके बाद उधार लेकर श्राद्ध किया। बड़े बेटे परेश नायक ने दी मुखाग्नि दी। परेश ने 2018 में मुसाबनी स्थित शिवलाल उच्च विद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा पास की थी। आर्थिक तंगी की वजह से इंटर में दाखिला नहीं लिया था। वह भी मेहनत मजूरी कर परिवार चलाने में मदद करने लगा था। अब पिता की मौत के बाद परिवार चलाने की जिम्मेदारी उसी पर आ पड़ी है। देवानंद नायक की एक पुत्री 8वीं कक्षा में मध्य विद्यालय बादिया में पढ़ती है। छोटी बेटी छह वर्ष की है। परेश नायक की मां कुनी नायक पति की मौत से टूट चुकी है। परिवार में देवानंद की 75 वर्ष की मा भी है जो अपने बेटे की राह निहारती देहरी पर बैठी रहती है। परेश बताता है कि घर में खाने का इंतजाम तक नहीं है। रहने को झोपड़ीनुमा घर है जिसमें गुजारा हो जाएगा लेकिन भाई-बहन और मां-दादी को खिलाएं कैसे समझ में नहीं आ रहा। भाई-बहन की पढ़ाई की समस्या भी है।

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