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टाटा स्टील ने 15 साल पहले किया था कोरस का अधिग्रहण, लेकिन जानते हैं इसके पीछे की मजेदार कहानी

टाटा स्टील भले ही वर्तमान में विश्व की 10 बड़ी स्टील उत्पादक कंपनियों में से एक हो। लेकिन वर्ष 2006 में कोरस अधिग्रहण के पहले स्थिति ऐसी नहीं थी। लेकिन एक झटके में यह कंपनी दुनिया की शीर्ष दस कंपनियों में शुमार हो गई। इसके पीछे की कहानी मजेदार है।

By Jitendra SinghEdited By: Updated: Tue, 25 May 2021 09:27 AM (IST)
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टाटा स्टील ने 15 साल पहले किया था कोरस का अधिग्रहण।
जमशेदपुर : टाटा स्टील भले ही वर्तमान में विश्व की 10 बड़ी स्टील उत्पादक कंपनियों में से एक हो। लेकिन वर्ष 2006 में कोरस अधिग्रहण के पहले स्थिति ऐसी नहीं थी। टाटा स्टील के उत्पादन की गिनती शीर्ष 50 स्टील निर्माता कंपनियों में भी नहीं था। लेकिन टाटा संस के चेयरमैन रतन टाटा की महत्वकांक्षी योजना ने न सिर्फ एंग्लो डच स्टील निर्माता कंपनी कोरस जो टाटा स्टील से लगभग चार गुणा बड़ी थी, उसका अधिग्रहण किया। बल्कि टाटा स्टील को शीर्ष उत्पादन करने की श्रेणी में भी खड़ा कर दिया। लेकिन इस अधिग्रहण के पीछे भी एक कहानी है।

लक्ष्मी मित्तल ने 2004 में किया था अमेरिकी कंपनी का अधिग्रहण

अजीज प्रेमजी ने एक किताब लिखी है द मैन बियांड द बिलियंस। इस किताब के संपादनकर्ता सुदीप खन्ना ने कोरस अधिग्रहण के पीछे की कहानी साझा की है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2000 दशक के मध्य में भारतीय स्टील इंडस्ट्री की कुछ कंपनियां वैश्विक स्तर पर आगे बढ़ने की तैयारी कर रही थी। वर्ष 2004 में अरबपति लक्ष्मी नारायण मित्तल की स्वामित्व वाली मित्तल स्टील ने अमेरिकी कंपनी इंटरनेशनल स्टील ग्रुप का अधिग्रहण किया। 36.1 बिलियन डॉलर में हुई इस डील के बाद आर्सेलर मित्तल दुनिया की सबसे बड़ी स्टील उत्पादन कंपनी बन गई।

मित्तल को देख रतन टाटा ने भी विदेशी कंपनी को अधिग्रहण पर किया विचार

ऐसे में टाटा ग्रुप भी स्टील कंपनी के अधिग्रहण के बारे में विचार शुरू किया। कोरस जो नीदरलैंड के हूगोवेंस में स्थित है वर्ष 1999 में ब्रिटिश स्टील का ब्राजील के फर्म कॉम्पेनहिया साइडरर्जििका नेशनल एसए (सीएसएन) के साथ विलय हुआ। इसके बाद टाटा की ओर से 2005 में अधिग्रहण पर बातचीत शुरू हुई। टाटा समूह की ओर से कंपनी को पहला प्रस्ताव वर्ष 2006 के मध्य में भेजा गया। अक्टूबर में कोरस के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर ने कंपनी के प्रति शेयर की कीमत 455 पेंस तय की और शेयरधारकों के साथ बात करते हुए 5.1 बिलियन पाउंड में टाटा की पेशकश को स्वीकार करने की सिफारिश की। लेकिन सीएसएन बीच में आ गई और टाटा की पेशकश को 500 पेंस तक बढ़ा दिया। इसके बाद कोरस अधिग्रहण को लेकर टाटा ग्रुप व सीएसएन के बीच बोली लगती रही और शेयर की कीमत में उछाल होता रहा। अंत में सीएसएन ने कोरस के शेयर की कीमत को बढ़ाकर 603 पेंस देने की पेशकश की।

12 बिलियन डॉलर देकर कोरस को टाटा समूह ने अपने नाम किया

इसे लेकर टाटा समूह के बॉम्बे हाउस में बैठक हुई। इसमें रतन टाटा के साथ टाटा स्टील के तत्कालीन एमडी बी मुत्तुरामन और कंपनी के चीफ फायनांस ऑफिसर कौशिक चटर्जी उपस्थित थे। आपस में बात कर टाटा ने कोरस अधिग्रहण के लिए प्रति शेयर 608 पेंस देने की सिफारिश की जो कोरस के 12 माह के शेयर की कीमत से 68 प्रतिशत अधिक था। लेकिन टाटा ने इतनी बड़ी राशि देकर डील को लॉक कर लिया। इस सौदे के लिए टाटा ने कोरस के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स को 12 बिलियन डॉलर चुकाए।

एक झटके में दुनिया की दस शीर्ष स्टील कंपनी में हो गई शामिल

भारतीय कॉरपोरेट के इतिहास में देश की सीमा के बाहर इतना बड़ा अधिग्रहण अब तक नहीं हुआ था। लेकिन इस अधिग्रहण के साथ ही टाटा स्टील 25 मिलियन टन वार्षिक उत्पादन करने वाली दुनिया की शीष 10 स्टील कंपनियों की सूची में शामिल हो गई। हालांकि इस डील पर कई आलोचकों ने सवाल उठाए। इस डील की रकम को चुकाने के लिए टाटा को कर्ज लेना होगा। साथ ही कंपनी की उत्पादकता, आरएंडडी, प्रोडक्शन व लॉजिस्टिक पर भी कई सवाल उठाए गए। वहीं, कुछ ने इस डील की सराहना की। लेकिन एक साल बाद ही वैश्विक अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो गई। चीन के संरक्षणवाद ने स्टील की डिमांड को प्रभावित किया। टाटा स्टील को अपने स्टील इंडस्ट्री को बेहतर स्थति में लाने में वर्षों समय लगा। लेकिन देश के बाहर सबसे बड़े अधिग्रहण ने भारतीय व्यापार के वैश्विक सपनों को गति तो जरूर दे दी थी। 

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