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Vishwakarma Puja 2022 : विधि से करें विश्वकर्मा पूजा, जानें शुभ मुहूर्त, महत्व और आरती करने का तरीका

Vishwakarma Puja 2022 इस बार 17 सितंबर शनिवार को विश्वकर्मा पूजा की जाएगी। विश्वकर्मा को देवशिल्पी भी कहा जाता है यानी देवताओं का कारीगर। विश्वकर्मा ने कई नगरों जैसे सोने की लंका इंद्रप्रस्थ व द्वारिका का निर्माण किया है...

By Jitendra SinghEdited By: Updated: Fri, 16 Sep 2022 12:15 PM (IST)
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Vishwakarma Puja 2022 : विधि से करें विश्वकर्मा पूजा, जानें शुभ मुहूर्त, महत्व और आरती करने का तरीका

जमशेदपुर : देवलोक के मुख्य अभियंता व इस ब्रह्मांड के निर्माणकर्ता भगवान विश्वकर्मा ही हैं। यह ब्रह्मा जी के मुख्य सहयोगी माने गए हैं। वार्षिक गोचरीय गति के अनुसार भगवान सूर्य के कन्या राशि में प्रवेश के साथ वर्षा ऋतु का अंत एवं शरद ऋतु का प्रारंभ होता है। प्रत्येक वर्ष प्रायः 17 सितंबर को सूर्य देव का प्रवेश कन्या राशि में होता है।

इस दिन भक्तों द्वारा भगवान विश्वकर्मा का ध्यान व पूजन किया जाता है। यह त्योहार मुख्य रूप से तकनीकी अभियंत्रण क्षेत्र से जुड़े लोगों द्वारा औद्योगिक प्रतिष्ठानों में धूमधाम व उत्साह से मनाया जाता है।सूर्य के इस संक्रांति दिवस को शिल्प कला ज्ञान के प्रदाता भगवान विश्वकर्मा जी के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है।

शनिवार को 2.13 बजे तक सर्वार्थ सिद्धि योग

17 सितंबर शनिवार को प्रातः सूर्योदय के उपरांत से दिवा 2.13 बजे तक सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा, जो ध्यान व पूजन के लिए सर्वोत्तम है। दिवा 2.13 बजे के उपरांत द्विपुष्कर योग अपराह्न तीन बजे तक रहेगा। यह योग भी पूजन आदि कार्य के लिए उत्तम है। इस प्रकार प्रातः काल से लेकर अपराह्न तीन बजे तक का समय अनुकूल है।

इस बार भी भगवान सूर्य शनिवार 17 सितंबर को रात्रि में 10.48 बजे कन्या राशि में प्रवेश कर रहे हैं। अतः विश्वकर्मा जी का पूजन भक्ति भाव एवं श्रद्धा के साथ 17 सितंबर शनिवार को ही करना श्रेयस्कर रहेगा।

ऐसे करें पूजन

पंडित रमाशंकर तिवारी के अनुसार, श्री विश्वकर्मा जी के पूजन के क्रम में स्नान के उपरांत थाल में पूजन सामग्री रखकर जल द्वारा शुद्धि व आचमनी करके, धूप दीप जलाकर श्री गणेश जी व माता गौरी का ध्यान करें। ध्यान के उपरांत हाथ में अक्षत पुष्प जल व द्रव्य लेकर संकल्प करें।

संकल्प के उपरांत सर्वप्रथम गणेश व माता गौरी का आवाहन पूजन तदुपरांत कलश में वरुण देव का ध्यान आवाहन पूजन करना चाहिए। इसके बाद नवग्रहों की कृपा हेतु सूर्यादि नवग्रहों का ध्यान आवाहन पूजन करके अंत में प्रधान देवता श्री विश्वकर्मा का ध्यान आवाहन व पूजन करना चाहिए। पूजन के उपरांत हवन आरती पुष्पांजलि एवं क्षमा प्रार्थना करना श्रेयस्कर रहेगा। भगवान विश्वकर्मा की कृपा समस्त ब्रह्मांड में बनी रहे। शुभमस्तु।

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