Jharkhand News : 'हनुमान भक्त' रबिलाल कर रहे संथाली में रामचरितमानस का अनुवाद, ऐसे मिली प्रेरणा
Jharkhand News हनुमान जी को अपना इष्ट देव और खुद को उनका परम भक्त बताने वाले रबिलाल इन दिनों राम काज में जुटे हुए हैं। उनका कहना है कि वह इसे दो महीने में पूरा कर लेंगे। ये काम है रामचरितमानस का अनुवाद संथाली में करने का ताकि आदिवासी समाज के लोगों तक प्रभु श्रीराम की महिमा को उनकी ही बोली में पहुंचाया जा सके।
कौशल सिंह, जामताड़ा। अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा से पूरा देश राममय है। आदिवासी समाज भी मर्यादा पुरुषोत्तम के प्रति अगाध आस्था रखता है। ऐसे में भगवान राम की महिमा को आदिवासी समाज के बीच पहुंचाने के लिए दिल्ली के लालबहादुर शास्त्री विश्वविद्यालय से संस्कृत में बीएड कर रहे जामताड़ा के रबिलाल हांसदा ने पहल की है।
वह रामचरित मानस का संथाली भाषा में अनुवाद कर रहे हैं। इस अनुवादित ग्रंथ को वह अयोध्या में प्रभु श्रीराम मंदिर में समर्पित करेंगे। मानस के पांच कांड का वह अनुवाद कर चुके हैं। उनका दावा है कि अगले दो माह में पूरा ग्रंथ तैयार हो जाएगा।
रबिलाल इससे पहले हनुमान चालीसा का अनुवाद संथाली में कर चुके हैं। वह कहते हैं कि आदिवासी समाज तक भगवान की गाथाएं उनकी अपनी भाषा में पहुंचें, इस उद्देश्य से यह कदम उठाया है।
स्वयं जनजातीय समाज से संबंध रखने वाले रबिलाल बचपन से ही भगवान राम, हनुमान, भोलेनाथ, मां दुर्गा व अन्य देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। सनातन धर्मग्रथों का अध्ययन किशोरावस्था से शुरू किया था।
संथाली में हनुमान चालीसा की दो हजार प्रतियां प्रकाशित
रबिलाल ने हनुमान चालीसा का भी संथाली में अनुवाद किया था, जिसकी दो हजार प्रतियां प्रकाशित कर वह आदिवासी समाज के बीच पहुंचा चुके हैं। उन्होंने बताया कि जामताड़ा जिले में स्थित उनके पैतृक गांव कुंडहित के सिंहवाहिनी प्लस टू स्कूल में वैकल्पिक विषय संथाली भाषा के शिक्षक नहीं थे।ऐसे में उन्होंने पढ़ाई के लिए संस्कृत विषय चुना। शिक्षक उमेश कुमार पांडेय ने सानिध्य में रुचि संस्कृत में बढ़ी। इस दौरान रामायण, रामचरित मानस व महाभारत का अध्ययन किया। प्रभु श्रीराम और मां शबरी के प्रसंग ने मर्यादा पुरुषोत्तम का आदिवासी समाज से रिश्ता और प्रगाढ़ हुआ।सुंदरकांड पढ़ने के दौरान प्रभु हनुमान व श्रीराम के प्रति अनुराग बढ़ा। हर आदिवासी इन्हें जानें, इस उद्देश्य से संथाली भाषा धर्मग्रंथों के अनुवाद की ठान ली। रामचरित मानस के अनुवाद में दो वर्ष से लगे हैं। प्रकाशन की जिम्मेदारी गुरु उमेश पांडेय ने ली है।
उन्होंने ही अनुवादित हनुमान चालीसा को प्रकाशित कराया था। रामचरित मानस को अनुवाद करने के बाद ओलचिकी (संथाली भाषा की लिपि) के विशेषज्ञों को भी इसकी प्रतियां देंगे। फिर आदिवासी जन तक पहुंचाएंगे।
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