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Jharkhand: यहां शादी में बाराती साथ ले आते खाना, बहू के सम्‍मान में भेंट देकर घर ले जाते हैं दुल्‍हनिया

Jharkhand News एक तरफ जहां आज भी बेटियों के पैदा होने पर खुशी गम में बदल जाता है। भ्रूण हत्‍या बेटियों पर अत्‍याचार जैसी घटनाएं आम हैं। इसके विपरीत आदिवासी समाज में बेटियों के पैदा होने पर जश्‍न मनाया जाता है। यहां तो ब्याह के अवसर पर बहू के सम्मान में वर पक्ष ही वधू पक्ष को सात रुपये के साथ गाय या बैल भेंट करते हैं।

By Jagran NewsEdited By: Arijita SenUpdated: Wed, 09 Aug 2023 09:16 AM (IST)
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आदिवासी समाज की शादियां साल की डालियों को काटकर बनाए गए मंडप में घर के बाहर संपन्न होता है।
कौशल सिंह, जामताड़ा। Jharkhand News: आधुनिक समाज में भी दहेज की बलिवेदी पर बेटियां चढ़ जाती हैं, मगर आदिवासी समाज में इस कुरीति का नामोनिशान नहीं है। यहां तो ब्याह के अवसर पर बहू के सम्मान में वर पक्ष ही वधू पक्ष को सात रुपये के साथ गाय या बैल भेंट करते हैं।

आदिवासी समाज में भ्रूण हत्या नहीं की जाती। यहां बेटियों के जन्म पर खुशी मनाई जाती है। संताल देसमांझी परगना बाईसी के प्रमुख सलाहकार सुनील हेंब्रम ने बताया कि शादी-ब्याह में दहेज तो छोड़िए, वधू पक्ष के लोगों पर बरातियों को भोज खिलाने का भी जिम्मा नहीं होता। वधू पक्ष ने यदि तीन रुपये का भोज देना स्वीकार किया तो इसका अर्थ है कि कन्या पक्ष बरातियों को कुछ खिला नहीं सकता। तब वर पक्ष ही भोजन की व्यवस्था करेगा।

बराती अपना भोजन खुद लेकर जाएंगे। यदि वधू पक्ष ने पांच रुपये का भोज स्वीकार किया, तो बरातियों को एक समय खिलाया जाएगा। जो वधू पक्ष अमीर हैं और बरातियों को भोजन कराना चाहते हैं, तब 16 रुपये का भोज स्वीकार करते हैं। इसके तहत वधू पक्ष ही पूरी व्यवस्था करता है। उन्होंने बताया कि वधू पक्ष पर भोज की बाध्यता नहीं है।

पंचमहामोड़े की मौजूदगी में होता सकामओड़ेच

आदिवासी समाज के रबिलाल हांसदा कहते हैं, हमारे समाज में तलाक जैसी कोई परंपरा कभी नहीं रही। आज की परिस्थितियों में यदि कोई अलगाव चाहता है तो पंचायत में निर्णय होता है। इसके लिए सकामओड़ेच परंपरा है। इसका अर्थ है साल के पत्ते को तोड़ देना।

यह वही साल का पत्ता होता है जिसमें पति सिंदूर लेकर बरातियों के साथ वधू के घर पहुंचता है। शादी की रस्म खत्म होने के बाद इस पत्ते को सुरक्षित रखा जाता है।

यदि अलगाव की स्थिति उत्पन्न होती है तो समाज के लोग कोर्ट नहीं जाते। पंचमहामोड़े की उपस्थिति में वर-वधू साल के पत्ते का एक-एक छोर पकड़कर तोड़ देते हैं। इसका मतलब है कि उनमें अलगाव हो गया।

पंचायत में होते फैसले, नहीं पड़ता कोर्ट पर बोझ

कुछ अपवाद छोड़ दें, तो देशभर में आदिवासी समाज के न तो दहेज उत्पीड़न के मामले कोर्ट पहुंचते हैं, न तलाक की अर्जियां जाती हैं। इस समाज में बेटियों के जन्म लेने पर जमकर खुशियां मनाई जाती हैं।

शादियों का जिम्मा गांव के ही पंचमहामोड़े का होता है। इनमें गांव के नायकी, गोड़ैत, पाराणिक, मांझीहड़ाम और जोगपराणिक की भागीदारी होती हैं। वर-वधू पक्ष के मांझी हड़ाम के बीच ही विवाह संबंधी सब कुछ तय होता है।

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