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जल संरक्षण में मील का पत्थर साबित हो रहा बोरी बांध

खूंटी जिले से शुरू हुआ बोरी बांध का माडल जल संरक्षण के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हो रहा है। खूंटी जिला प्रशासन सेवा वेलफेयर सोसायटी और ग्राम सभा के संयुक्त मुहिम को ग्रामीणों के सहयोग से इसे मुकाम तक पहुंचाया जाता है।

By JagranEdited By: Updated: Wed, 06 Jan 2021 08:28 PM (IST)
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जल संरक्षण में मील का पत्थर साबित हो रहा बोरी बांध

खूंटी : खूंटी जिले से शुरू हुआ बोरी बांध का माडल जल संरक्षण के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हो रहा है। खूंटी जिला प्रशासन, सेवा वेलफेयर सोसायटी और ग्राम सभा के संयुक्त मुहिम को ग्रामीणों के सहयोग से इसे मुकाम तक पहुंचाया जाता है। बोरी बांध के माडल को पूरे देश में सराहा गया और इस माडल के लिए जिला को दो नेशनल अवार्ड भी मिल चुका है। जनशक्ति से जलशक्ति अभियान के तहत शुरू किए गए इस आंदोलन को ग्रामीणों का भरपुर सहयोग मिला। पठारी क्षेत्र होने के कारण विभिन्न क्षेत्रों में गर्मी के मौसम में जल की समस्या उत्पन्न होती है। नदी-नालों को पानी बहकर चला जाता है। ऐसे में सेवा वेलफेयर संस्था ने समुदाय की जिम्मेदारी तय करते हुए उनके एकजुटता का एहसास कराते हुए इस समस्या से निपटने के लिए समुदाय को आगे आने के लिए प्रेरित किया।

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2018 से शुरू हुई मुहिम चढ़ता गया परवान

बोरी बांध बनाने का सिलसिला पांच दिसंबर 2018 को तोरपा प्रखंड के तपकरा क्षेत्र से शुरू हुआ। तपकरा की अंबाटोली में बोरी बांध बनाने के लिए सोसाइटी ने सीमेंट का खाली बोरा उपलब्ध कराया। मुखिया सुदीप गुड़िया के नेतृत्व में ग्रामीणों ने श्रमदान कर पहला बांध बनाया। पानी जमा होने के बाद ग्रामीणों के चेहरे पर खुशी की झलक साफ दिखाई दे रही थी। इसके बाद 13 दिसंबर को कुदलुम गांव में और पेरका में बोरी बांध बना। बोरी बांध बनाने के दौरान जिले के तत्कालीन उपायुक्त सूरज कुमार ने भी पेरका में ग्रामीणों के साथ श्रमदान किया। उन्होंने कहा था कि यह मुहिम खूंटी की तस्वीर बदल सकती है।

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पहले ली जाती ग्रामसभा की सहमति

बोरी बांध बनाने के लिए पहले ग्रामसभा की सहमति ली जाती है। सोसाइटी के सदस्य ग्रामसभा में जाकर लोगों से रायशुमारी करते हैं। उन्हें बांध से होने वाले फायदे बताए जाते हैं। खेतों में सिचाई के लिए पानी मिलने के साथ पशु-पक्षियों को पीने के लिए पानी मिलने, जलस्तर बढ़ने के साथ खेतों में नमी बने रहने के फायदे को देखते हुए ग्रामसभा की सहमति मिलने के बाद बांध बनाने का काम करते है।

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मदईत से बनते बोरी बांध

समूह में रहना और सारे कार्य करना आदिवासियों की परंपरा रही है। खेतीबाड़ी के अलावा जनहित के सारे कार्य आदिवासी समूह में मदईत यानि सहयोग कर करते हैं। इसी परंपरा को बोरी बांध बनाने में आगे बढ़ाया गया। काम के बाद एक साथ बैठकर समूह में भोजन करने की व्यवस्था की जाने लगी। जिला प्रशासन का सार्थक सहयोग मिलने के बाद अब क्षेत्र में इस मुहिम को रफ्तार मिलने लगी। इस माडल को मनरेगा में भी शामिल कर लिया गया है। मदईत के अलावा अब मनरेगा से भी बोरी बांध बनाए जाने लगे हैं।

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कोट

बोरी बांध का माडल जिले के लिए फायदेमंद साबित हो रहा है। इससे जहां कृषकों को सिचाई के लिए पानी मिल रहा है, वहीं पशु-पक्षियों को भी पानी मिल रहा है। गर्मी के दौरान जल संकट की समस्या दूर हो रही है। मिट्टी का कटाव रुक रहा है। जगह-जगह जल भंडारण होने से भूगर्भीय जलस्तर भी बढ़ रहा है। समाज में मदईत की परंपरा और सु²ढ़ हो रही है, जिससे सामाजिक समरसता बढ़ रही है। जिले के इस माडल को दो बार राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार भी मिल चुका है। आने वाले वित्तीय वर्ष में पांच हजार बोरी बांध बनाने का लक्ष्य रखा गया है।

- शशि रंजन, उपायुक्त, खूंटी