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हमें भगवान के संविधान को ग्रहण करना होगा : शुकामृत दास

हमारे देश के संविधान के अनेकों संशोधन अपूर्णता को दर्शाते हैं जबकि भगवत गीता में अभी तक एक भी संशोधन नहीं हुआ है क्योंकि इसे परम पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है।

By JagranEdited By: Updated: Mon, 27 Jan 2020 06:42 PM (IST)
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हमें भगवान के संविधान को ग्रहण करना होगा : शुकामृत दास

खूंटी : हमारे देश के संविधान के अनेकों संशोधन अपूर्णता को दर्शाते हैं, जबकि भगवत गीता में अभी तक एक भी संशोधन नहीं हुआ है, क्योंकि इसे परम पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है। इसे किसी व्यक्ति विशेष ने नहीं लिखा है। भगवान की वाणी हर एक स्थिति में हर एक जीवात्माओं के लिए सही तरीके से लागू होती है यह एक आपुरुषय संविधान ग्रंथ है, जो एक देश नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए लागू होता है। अगर वास्तव में हम भारत के संविधान का पालन करना चाहते हैं तो पहले भगवान के संविधान (भगवद गीता) को ग्रहण करना पड़ेगा। यह बात इस्कॉन कृष्ण भक्त शुकामृत दास ने हरे कृष्ण प्रचार केंद्र के तत्वावधान में आयोजित एक दिवसीय भगवद्गीता कार्यक्रम में प्रवचन देते हुए कही।

उन्होंने कहा कि एक बार इस्कॉन के संस्थापक आचार्य श्रील प्रभुपाद अमेरिका गए तो कुछ अंग्रेजों ने उनसे कहा स्वामी जी समृद्ध-शील सोने की चिड़िया कहे जाने वाले भारत देश में क्या कमी थी, जो आप यहां आए हैं। प्रभुपाद जी ने मुस्कुराते हुए कहा आप लोगों ने हमारे देश में 200 साल शासन किया अर्थात धन-संपत्ति, लूटी मगर आप असली चीज नहीं लूट पाए बस वही संपत्ति भागवत ज्ञान मैं आपको देने आया हूं। इस तरह प्रभुपाद जी ने विदेशियों के ऊपर कृपा कर कृष्ण ज्ञान प्रदान किया। आगे शुकामृत दास ने कहा कि प्राचीनकाल में भगवान श्रीकृष्ण के ऋषभ अवतार के जेष्ठ पुत्र भरत के नाम पर ही हमारे देश का नाम भारत पड़ा। शास्त्रानुसार भारतीयता का अर्थ भा अर्थात ज्ञान, रत अर्थात व्यस्त होना, इस तरह जो व्यक्ति चौबीसों घंटे ज्ञान की पूर्णता में लगे रहते हैं वे भारतीय कहलाते हैं। भौतिकवादी समाज में भारतवर्ष का मूल ज्ञान सामान्य जनों से विलुप्त होते जा रहा है जो चिता का विषय है! ज्ञान के गंगा कहे जाने वाले हमारे देश में चारों वेद 108 उपनिषद, 18 पुराण, महाभारत व रामायण सभी शास्त्रों का सार वैश्विक ग्रंथ श्रीमदगवद्गीता ही इस जगत को उपदिष्ट कर सकता है, जो पूरे जगत में संयुक्त राष्ट्र संघ नहीं कर पा रहा वह यह शास्त्र के निर्देश अपनाने से भारत पूरे विश्व में शांति का प्रतिनिधित्व कर सकता है। एक परिपेक्ष में हमें भगवान श्रीकृष्ण की सत्ता को अपनाना ही होगा। उन्होंने कहा कि हमें आत्मज्ञान सीखना पड़ेगा। भारत देश की वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार विविधताओं में एकता की परिभाषा देना दुष्कर है क्योंकि पूर्ण गणतंत्र आशाओं और शोक से परिपूर्ण है। हमें भारत भूमि में मिले जन्म का महत्व समझना चाहिए, क्योंकि भगवान राम ने अयोध्या भूमि पर प्रथम प्रवचन में अयोध्यावासियों को संबोधित करते हुए कहा था आप लोग बड़े ही सौभाग्यशाली हैं कि आप लोगों का जन्म भारत भूमि पर हुआ है, जहां से मनुष्य साधना भक्ति कर मोक्ष प्राप्त कर सकता है। अंत में मौके पर आए नगर निगम के कृष्ण भक्तों को भगवान नाम की माला, भगवद्गीता ग्रंथ एवं चावल, दाल, सब्जी व पकौड़ा चटनी का महाप्रसाद वितरित किया गया।

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