Jharkhand: बेशकीमती नीले पत्थर की खुलेआम हो रही लूट, 100 से ज्यादा अवैध खदानें; अरब देशों तक सप्लाई
ब्लू स्टोन जयपुर में प्रति किलो 2000 से 3000 रुपये की दर से पहुंचता है। तराशे जाने के बाद इसकी कीमत 500 से 1000 रुपये प्रति कैरेट हो जाती है। प्रोसेसिंग के बाद पत्थर को नीलम के विकल्प के रूप में तैयार किया जाता है। रत्नों के बाजार में पहुंचने पर यह एक हजार रुपये से लेकर एक लाख रुपये प्रति कैरेट तक की दर से बिकता है।
By Jagran NewsEdited By: Mohammad SameerUpdated: Tue, 12 Sep 2023 06:30 AM (IST)
मृत्युंजय पाठक/अनूप कुमार, कोडरमा: अभ्रक नगरी के नाम से प्रसिद्ध कोडरमा की जमीन के नीचे बेशकीमती ब्लू स्टोन है, लेकिन इस खजाने को माफिया लूट रहे हैं। इस चमकदार पत्थर से क्षेत्र की तकदीर बदल सकती है। वहीं राज्य के खजाने में भी काफी राजस्व आ सकता है, लेकिन संगठित तरीके से सक्रिय माफिया गिरोहों ने इस संपदा पर कब्जा कर रखा है।
कोडरमा जिला मुख्यालय से आठ किलोमीटर दूर इंदरवा और लोकाई पंचायत के जंगलों में 100 से अधिक ब्लू स्टोन की खदानें चल रही हैं। ये सब की सब अवैध हैं। यह इलाका हजारीबाग वन्य प्राणी आश्रयणी के तहत आता है, जहां किसी भी तरह के खनन पर रोक है, लेकिन जंगल के भीतर नजारा ऐसा है मानो यहां अवैध खनन और खनिज संपदा की लूट के लिए छूट मिली हुई हो।
इस इलाके में 200 से लेकर 300 फीट तक गहरी खदानें हैं, जिनसे ब्लू स्टोन निकालने से लेकर उन्हें बोरियों में भरकर वाहनों के माध्यम से राजस्थान के जयपुर तक भेजने में कई संगठित गिरोह लगे हुए हैं। यहां जेनरेटर, कंप्रेशर मशीन और अन्य उपकरणों के साथ हमेशा मजदूर अवैध खनन में लगे दिख जाएंगे।
कभी वन्यजीवों के संरक्षण के लिए कोडरमा में रोका गया था अभ्रक खनन
एक जमाने में कोडरमा की पहचान अभ्रक से होती थी। विश्व स्तर पर अभ्रक के उत्पादन के लिए यह प्रसिद्ध था और इसे भारत की माइका कैपिटल या अभ्रक-नागरी के रूप में जाना जाता था। वन संरक्षण अधिनियम 1980 के लागू होने के बाद सभी अभ्रक खानों को बंद कर दिया गया है। क्योंकि सभी खनन पट्टे जंगल के अभयारण्य क्षेत्र में आते थे। आज के दिन एक भी अभ्रक खनन के वैध पट्टे नहीं हैं।
इसके बावजूद अभ्रक के साथ ही ब्लू स्टोन का वन क्षेत्र में खनन हो रहा है। इंदरवा और लुगाई से थोड़ी दूर सिरसिरवा के जंगली क्षेत्र में भी पत्थर का अवैध खनन बड़े पैमाने पर चल रहा है। यहां आधा दर्जन से अधिक बड़ी खदानें हैं जो वन क्षेत्र की बर्बादी की कहानी बयां करती हैं। वन क्षेत्र में बड़े पैमाने पर खनन से वन्य जीवों का अस्तित्व खतरे में हैं।
खनन करने वालों को 800 से 1000 रुपये तक मिलता
नीले रंग के इस चमकदार पत्थर के खनन के लिए जान हथेली पर रख 200 से 300 फीट तक गहरी खदानों में उतरने वाले मजदूरों को 800 से एक हजार रुपये तक की हाजिरी मिलती है, जबकि माफिया इन पत्थरों की तस्करी कर करोड़ों की रकम अपनी जेब में भर रहे हैं।
इसके लिए ना तो उन्हें किसी की अनुमति लेनी है ना ही कोई टैक्स देना है और ना ही कहीं कोई चालान कटाना है। खदान के अंदर हादसे की स्थिति में कई बार मजदूर की जान चली जाती है। ऐसी स्थिति में पुलिस-प्रशासन के डर से मजदूरों के परिजन सामने नहीं आते। उनके शव को ठिकाने लगा दिया जाता है। बड़ी संख्या में मजदूर इस गैरकानूनी काम में लगे हैं। वह माफिया के इशारे पर खनन करते हैं।
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