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पाकुड़ की मां नित्‍यकाली से साधक बामाखेपा का था अद्भुत रिश्‍ता, 300 साल पुरानी इस शक्तिपीठ का है रोचक इतिहास

पाकुड़ में मां नित्‍यकाली का मंदिर एक शक्तिपीठ के रूप में स्‍थापित है जिसका निर्माण काली के उपासक व तंत्रसाधक राजा पृथ्वीचंद शाही ने कराया था। ऐसी मान्‍यता है कि नित्यकाली मंदिर में आकर पूजा किए बगैर साधकों की सिद्धि पूर्ण नहीं होती है।

By Jagran NewsEdited By: Arijita SenUpdated: Mon, 13 Feb 2023 12:02 PM (IST)
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पाकुड़ में मां नित्‍यकाली और साधक बामाखेपा की तस्‍वीर

रोहित कुमार, पाकुड़। देश के प्रसिद्ध शक्तिपीठ में शामिल मां तारा के महान साधक बामदेव जिन्हें बामा खेपा के नाम से जाना जाता है उन्होंने पाकुड़ आकर नित्यकाली मंदिर में पूजा और साधना की थी। कहा जाता है कि तारापीठ के साधकों को अपनी सिद्धि पूर्ण करने के लिए पाकुड़ के नित्यकाली मंदिर आकर मां काली की पूजा करनी होती है। यही कारण है कि पाकुड़ के नित्यकाली मंदिर को लेकर लोगों में अपार आस्था है।

मंदिर में विराजित हैं भैरव, महाकाल और दिकपाल भैरव

इस मंदिर में मां नित्यकाली की प्रतिमा के ठीक सामने भगवान गणेश की आकर्षक और दिव्य प्रतिमा है। मां नित्य काली के तांत्रिक नक्शे पर आधारित इस मंदिर में शिवलिंगों के रूप में 32 भैरव, एक महाकाल भैरव एवं एक दिकपाल भैरव हैं।

तांतीपाड़ा रानीदिघी पटाल से शुरू होकर पूरे राजापाड़ा महल्ले में सिंहवाहिनी मंदिर सहित विभिन्न स्थानों पर विभिन्न दिशा में स्थापित शिवलिंगों के रूप में 108 भैरवों की उपस्थिति तथा मां शमशान काली की दीपावली रात्रि की एक दिनी पूजा, शमशान काली और नित्यकाली के ठीक बीच में एक ओर सिंहवाहिनी और दूसरी ओर मां बागधीश्वरी की उपस्थिति से यह निर्विवाद है कि तारापीठ, नलहटी एवं मां कामख्या के बीच के रास्ते में रेलमार्ग पर पाकुड़ का नित्यकाली मंदिर भी एक शक्तिपीठ के रूप में स्थापित है।

नित्‍यकाली आए बिना तंत्रसाधना रह जाता अधूरा

तांत्रिकों का यह मत है कि तारापीठ की तंत्र साधना अपनी सम्पूर्णता को तब तक प्राप्त नहीं होती है जब तक कि साधक पाकुड़ शमशान काली और नित्य काली के यहां हाजरी नहीं लगा देते हैं। इस बात को तब और भी बल मिल जाता है जब स्वयं महान साधक बामा खेपा के मां नित्य काली की प्रतिमा से लिपट कर रोने और अद्भूत पूजा की कथाएं बुजुर्ग सुनाते हैं।

कैसे हुई मंदिर की स्थापना

पाकुड़ शहर के राजापाड़ा में मां नित्यकाली की प्रतिमा एक ही पत्थर को तराश कर बनी है। करीब 300 साल पहले बने इस मंदिर से जुड़ी कई कहानियां प्रचलित हैं। मंदिर की स्थापना के संबंध में कहा जाता है कि काली के उपासक व तंत्रसाधक राजा पृथ्वीचंद शाही ने जब राजापाड़ा में राजबाड़ी का निर्माण कराया तभी एक रात राजा पृथ्वीचंद को मां नित्यकाली ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजबाड़ी के बगल में एक निश्चित स्थान पर खुदाई कराओ।

वहां एक काला शिलाखंड निकलेगा उसी शिलाखंड से बनारस के मूर्तिकार से मूर्ति का निर्माण कर मूर्ति की स्थापना कराओ और मंदिर का निर्माण कराओ। इधर बनारस के मूर्तिकार को भी मां ने स्वप्न में प्रतिमा निर्माण का आदेश दिया था।

बताया जाता है कि बिना राजा के बुलाए यह मूर्तिकार यहां पहुंच गया था। स्वप्न में मिले आदेश के बाद राजा शाही ने कालीसागर तालाब के पास खुदाई कराई जहां काला शिलाखंड मिला और उससे प्रतिमा का निर्माण कर मंदिर का निर्माण राजा ने कराया।

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