Jharkhand: जहां सरकार भी न पहुंच सकी वहां भी पहुंचा मतांतरण का प्रपंच, भोले-भाले आदिवासियों को बना रहे निशाना
झारखंड में मतांतरण का खेल जोरों पर है और ऐसी जगहों तक अपने पैर पसार चुका है जहां तक सरकार भी नहीं पहुंच पायी है। बिहरा एक ऐसा गांव है जहां मूलभूत सुविधाओं का अभाव है लेकिन धर्मांतरण का खेल यहां भी चल रहा है।
By Jagran NewsEdited By: Mohit TripathiUpdated: Tue, 27 Dec 2022 08:34 AM (IST)
पलामू, मृत्युंजय पाठक: करीमन भुइंया के मिट्टी के घर में सुग्गी देवी बाहर से आए मेहमानों और मसीही धर्म में शामिल हो चुके लोगों के लिए भोजन की व्यवस्था में लगी हैं। खाने में क्या बन रहा है? पूछने पर जवाब देती है-मुर्गा भात। इसकी खुशबू तेतरखांड और करमटोला में फैल चुकी है। घर के बाहर छोटे-छोटे बच्चे मुर्गा-भात के लिए खड़े होकर इंतजार कर रहे हैं। घर के पीछे तरफ छोटा सा पंडाल बना है, जिसके अंदर चेन्नई और छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर से आए इसाई मिशनरी से जुड़े कुछ लोग टेबल पर तो कुछ जमीन पर बैठे हैं। छोटे बच्चे गाना गा रहे हैं, जब मैं यीशु के पास आ गया...। यह जश्न है 25 दिसंबर को क्रिसमस का। यह जश्न है झारखंड में मसीही धर्म के विस्तार का।
कच्चे घरों के बीच बना पक्का चर्च
पलामू जिले के पांकी प्रखंड मुख्यालय से करीब 20 किमी दूर बिरहा पंचायत के इरगू गांव के तेरतखांड और करमटोला में रहने वाले भुइंया और आदिवासियों के 28 परिवार पिछले चार-पांच साल में मसीही धर्म में शामिल हो गए हैं। यहां एक भी पक्का का मकान नहीं है। ज्यादातर घर पहाड़ियों पर बने हैं। गांव में पक्का चर्च खड़ा हो गया है। मुख्य सड़क बिहरा से गांव तक जाने वाला रास्ता करीब डेढ़ किमी कच्ची और पगडंडी है।
इस गांव-टोला में अब तक सरकार की पहुंच नहीं है। छोटी चार पहिया वाहन गांव में नहीं जा सकते। बड़े चक्के वाले वाहन उबड़-खाबड़ सड़क पर चलते हुए किसी तरह पहुंच जाते हैं। छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर से बोलेरे पर सवार होकर चेन्नई से सिबी सैम पहुंचे हैं। वे अपनी पत्नी गौरी, बेटे जान सैम और बेनी सैम के साथ आए हैं। इसके अलावा उनके साथ दो अन्य लोग वर्णवास और अपत्र भी आए हैं।
सबके बीच चमत्कार की गवाही
सिबी, वर्णवास और अपत्र टेबल लगाकर कुर्सी पर बैठे हैं। उनकी पत्नी और दोनों बेटे मसीही धर्म से प्रभावित गांव के लोगों के बीच जमीन पर। एक-एक कर लोग यीशु के चमत्कार की गवाही देते हैं। बिहरा गांव के शनिचर भुइंया कहते हैं, जंगल के रास्ते अपनी बच्ची के साथ जा रहा था। अचानक सांप आ गया और बच्ची के पैरों में लिपट गया। यीशु का नाम लिया तो वह भाग गया, सबने ताली बजाई। सिबी ने डायरी में नोट की।
सिलेंबर उरांव गोवा कमाने गए हैं। इस बीच उनकी पत्नी मसीही धर्म में शामिल हो गई हैं। वह तीन महीने के बच्चे को गोद में लेकर गवाही देती हैं। बच्चा शाम के समय सोता तो जल्दी उठता नहीं था, यीशु का नाम लिया तो ठीक हो गया। इरगू की शिव कुमारी देवी बताती हैं कि कमर में दर्द था, यीशु का नाम लिया तो ठीक है। गवाही के बाद गीत-संगीत का दौर शुरू होता है। बच्चियों से गाना गवाया जाता है, कैसा बदला मुझे, जब में यीशु के पास आ गया...।
आकाश के सवाल का जवाब नहीं
पंडाल से बाहर खड़ा होकर एक दिव्यांग युवक यह सब देख रहा है। नाम पूछने पर हाथ आगे कर देता है। हाथ पर गोदना कर नाम लिखा था, आकाश। जब यीशु का नाम लेने से सब ठीक हो रहे हैं तो यह दिव्यांग युवक क्यों नहीं? इस सवाल पर सिबी सैम मौन रहते हैं। यहां क्यों और कैसे आए हैं, इसका भी जवाब नहीं देते हैं। उनका बेटा जान सैम बहुत जोर देने पर सकपकाते हुए कहता है, हम नागपुर में रहते हैं। झारखंंड के गांव को देखने पापा, मम्मी और भाई के साथ आए हैं।
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