काल के कपाल पर सवार नेता का महाप्रयाण
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का प्रयाण करना भारत के लिए एक अपूर्णीय क्षति है। वे एक संवेदनशील, नम्र, प्रखर वक्ता एवं सादगी भरा दूरदर्शी राजनेता थे। उन्हें तीन बार प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला जिसकी अवधि क्रमश: 13 दिन, 13 माह एवं 5 वर्ष के एक पूर्ण कार्यकाल की थी।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का प्रयाण करना भारत के लिए एक अपूर्णीय क्षति है। वे एक संवेदनशील, नम्र, प्रखर वक्ता एवं सादगी भरा दूरदर्शी राजनेता थे। उन्हें तीन बार प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला जिसकी अवधि क्रमश: 13 दिन, 13 माह एवं 5 वर्ष के एक पूर्ण कार्यकाल की थी। उपरोक्त अवधि को छोड़कर उनका सारा जीवन विपक्ष की राजनीति करने में ही बीता। वे प्रवास के दौरान अक्सर अपने कार्यकत्र्ताओं के घरों में ही ठहरा करते थे। वर्ष 1967 एवं 1969 में मैंने भारतीय जनसंघ से डालटनगंज की विधानसभा का चुनाव लड़ा था। इन चुनावों के दौरान भी वाजपेयी जी का डालटनगंज में आगमन हुआ था तथा उन्होंने मेरे आवास पर ही रात्रि-विश्राम किया था। डालटनगंज में बहने वाली कोयल नदी के किनारे शाहपुर की ओर बालू पर वर्ष 1981 में भाजपा का प्रान्तीय अधिवेशन सम्पन्न हुआ था जिस स्थल का नाम संकल्प नगर रखा गया था। अधिवेशन के अंतिम दिन कोयल नदी की बालू पर वाजपेयी जी की आमसभा थी। उन दिनों आज के जैसी नेताओं की सुरक्षा के प्रबंध नहीं हुआ करते थे क्योंकि न तो उस समय उग्रवाद था और न ही इतना तनाव। भाषण का समय होने पर मैंने वाजपेयी जी को अपनी जीप पर बैठाया और स्वयं ही चलाकर कोयल नदी के पुल को पार करने के लिए जैसे ही आगे सदीक मंजिल चौक के पास पहुंचा तो उनके भाषण को सुनने वाली पुल के आसपास अत्यधिक भीड़ देखकर मैं अचंभित हो गया। भीड़ को देखकर अटल जी ने मुझसे कहा कि इस भीड़ को लांघ पाना तो बहुत मुश्किल है, क्या नदी उस पार जाने का कोई और रास्ता भी है? मैंने कहा कि बिना नदी में गाड़ी उतारे और कोई रास्ता संभव नहीं है। दिसम्बर का महीना था और कोयल नदी में पानी भी बह रहा था। मेरी घबराहट का ठिकाना नहीं रहा क्योंकि महती भीड़ में यदि वाजपेयी जी का भाषण न हो सका तो मेरी भी किरकिरी हो जाने वाली थी। मैंने हिम्मत जुटाई और गाड़ी को नदी में उतारकर लोड गियर के सहारे बालू को चीरते हुए जीप को शाहपुर पहुंचा दिया। उस दिन का अनुभव मुझे आज तक नहीं भूलता क्योंकि यदि जीप बालू में रूक जाती तो फिर शायद उनका भाषण देना संभव नहीं हो पाता। कभी-कभी मैं सोचता हूं कि भारत का भावी प्रधानमंत्री यदि किसी कार्यकत्र्ता के घर में अत्यधिक सादगी के साथ अपनी रात गुजारता हो तो उस नेता की कितनी महानता होगी ? भोजन के बाद वाजपेयी जी को दूध पीने की आदत थी। साधारण साईज के गिलास में जब मैंने उनको दूध पहुंचाया तो उस गिलास को देखकर वे बहुत खुश हुए और उन्होंने दक्षिण भारत में अपनी घटी घटना को याद करते हुए कहा कि जब मैं कर्नाटक गया था तो रात को मुझे एक छोटी सी गिलासी में दूध दिया गया था। इसके ठीक विपरीत सुबह में नाश्ते के समय पंजाब के लंबे कड़ी वाले गिलास में पानी दिया गया। उन्होंने बताया कि उस बड़े कड़ी वाले गिलास को देखकर उन्होंने हाथ जोड़कर कहा ''भगवन! आप रात में दर्शन क्यों नहीं देते हैं''? इतना सुनते ही सबने ठहाका लगा दिया। वाजपेयी जी बड़े ही विनोदप्रिय व्यक्ति थे तथा राजनीतिक अवसरवादिता से सर्वथा दूर रहते थे। उनके पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद जब विश्वास के लिए मत विभाजन किया गया तो एक वोट की कमी से उनकी सरकार गिर गई और उन्होंने अपने भाषण के क्रम में कहा कि आने वाली पीढि़यां सोचेंगी कि वह कैसा प्रधानमंत्री था जो पद पर रहते हुए एक वोट की जुगाड़ नहीं कर पाया। उन्होंने भावुक होकर कहा था कि खरीद-फरोख्त करके बचने वाली सरकार को वे चिमटा से भी छूना पसंद नहीं करेंगे। आज की सत्ताधारी सरकार को उनके विचारों से प्रेरणा लेनी चाहिए क्योंकि आजकल विधायक एवं सांसदों को खुलेआम दल बदलने के लिए बड़ी-बड़ी राशि का लालच दिया जाता है। वर्ष 1980 और 1990 के बीच मैं भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति का सदस्य रहा जहां देश के कोने-कोने में होने वाली बैठकों में मुझे उनके साथ बैठने का अवसर मिलता रहा। केरल के कोचिन में हुई एक बैठक का वह ²श्य मैं आज तक नहीं भूल पाया हूं जब उन्होंने फफक-फफक कर रोते हुए कार्य समिति की बैठक में सदस्यों से कहा था कि ''मुझे छोड़ दीजिए अब मैं आपके साथ नहीं चल पाऊंगा''। यह ²श्य उस समय उपस्थित हुआ जब उस बैठक में भाजपा का शिवसेना के साथ गठबंधन होने का प्रस्ताव पारित हुआ था। यह ज्ञातव्य है कि स्व. प्रमोद महाजन ने आडवाणी जी की अध्यक्षता में शिवसेना के साथ भाजपा का गठबंधन होने का प्रस्ताव रखा था जिसे कार्यसमिति ने स्वीकार कर लिया था। प्रस्ताव के स्वीकृत होने के बाद जब वाजपेयी जी को समापन भाषण देने के लिए कहा गया तो माईक पकड़ते ही वे रो पड़े थे और उपरोक्त उद्गार प्रकट किये थे। मैं जब आज की भाजपा और अटल जी की भाजपा की तुलना करता हूं तो हैरत होती है कि समय बदलने से किस प्रकार दलों की नीतियां भी बदल जाया करती हैं। वाजपेयी जी ने सिसकते हुए अपने भाषण में कहा था कि उन्होंने ब्राह्मण होने के बावजूद जब जनेऊ को तोड़ फेंका था तो उन्हें यह नहीं पता था कि मेरे दल को उस संगठन (शिवसेना) के साथ भी गठबंधन करना पड़ेगा जो दलितों को बारात में घोड़े पर सवार होने एवं खटिया पर बैठने तक की इजाजत नहीं देता। उसी शिवसेना से आज की भाजपा नतमस्तक होकर गठबंधन में बैठी हुई है। मुझे वाजपेयी जी के साथ देश के कई शहरों में एक मंच से भाषण देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। पंजाब में उग्रवाद जब आसमान छू रहा था तथा ¨भडरावाले की तूती बोल रही थी तो अमृतसर में हुई वाजपेयी जी की एक जनसभा में मुझे खास तौर पर निमंत्रित करके बुलाया गया था क्योंकि उस समय पंजाब के सिख ¨भडरावाले के नेतृत्व में भारत से अलग होने की मुहिम चला रहे थे। सिख होने के नाते मैंने वाजपेयी जी के मंच से सिखों को उन दिनों की याद दिलाई जब सिखों के नौवें गुरू तेग बहादुर जी ने हिन्दुओं के तिलक और जनेऊ की रक्षा करने के लिए अपना शीश न्योछावर कर दिया था। अवसर था हिन्दुओं और सिखों की एकता का। मुझे आज भी याद है कि मेरे भाषण के बाद दिल्ली में रह रहे मेरे बड़े भाई स्व. सहेन्द्र ¨सह को पंजाब के आतंकवादियों ने टेलिफोन पर धमकी दी थी कि अपने भाई को कह दें कि वे दुबारा पंजाब में भाषण देने न आएं अन्यथा उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा। इतने लम्बे समय तक अटल जी के सान्निध्य में रहने के बाद जब वाजपेयी जी के महाप्रयाण की सूचना मिली है तो मैं विह्वल हो उठा हूं। उन्होंने यद्यपि एक लम्बी आयु व्यतीत की है लेकिन अस्वस्थता के कारण लगभग एक दशक से वे देश की मुख्य धारा से परे हैं। आशा है अटल जी के नाम पर पार्टी चलाने वाले लोग उनके पदचिन्हों पर चलने का प्रयास करेंगे ताकि देश के तनावपूर्ण वातावरण में ठंढ़ी बयार बह सके। इन्दर ¨सह नामधारी, झारखंड पूर्व विधान सभा अध्यक्ष,मेदिनीगर,पलामू,झारखंड।