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बनारस के चौका घाट पर फांसी पर लटकाए गए... मौत का नहीं था कोई डर, गुमनाम हैं देश के लिए जान देने वाले वीर सेनानी नित्यानंद

देश की आजादी के लिए अपनी जान की परवाह किए बगैर फांसी के फंदे पर हंसते-हंसते झूलने वाले वीर स्‍वतंत्रता सेनानी नित्‍यानंद स्‍वामी को आज लोगों ने भूला दिया है। झारखंड के पलामू में ही उनके गांव के अधिकतर लोगों को उनके बारे में ठीक से पता नहीं है। गांव में सालों तक इनकी मूर्ति भी नहीं लगी। इस साल ग्रामीणों ने चंदा कर प्रतिमा लगाने का काम किया।

By Murtaja Amir Edited By: Arijita Sen Updated: Fri, 26 Jan 2024 04:41 PM (IST)
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बलिदानी स्‍वतंत्रता सेनानी नित्यानंद स्‍वामी की फाइल फोटो।
राजू रंजन सोनी, पाटन (पलामू)। पाटन थाना से लगभग 13 किलोमीटर दूरी पर स्थित शहीद नित्यानंद स्वामी का गांव सूठा आज गुमनाम है। शहीद के बारे में भी लोगों को ठीक से पता नहीं है। शहीद नित्यानंद स्वामी के स्वजन बताते हैं कि हमारे पूर्वज देश आजादी में शहीद हो गए, लेकिन पलामू जिला प्रशासन या प्रखंड प्रशासन के द्वारा उनके नाम पर प्रतिमा की स्थापना सालों तक नहीं की गई। जिस कारण इस साल ग्रामीणों ने चंदा कर सूठा गांव में प्रतिमा लगाने का कार्य किया।

1934 में अंग्रेजों ने दी थी फांसी

स्वजन बताते हैं कि देश को आजाद कराने की लड़ाई लड़ रहे नित्यानंद स्वामी को 1934 में अंग्रेजों ने फांसी दे दी थी। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इनका क्षेत्र उत्तर प्रदेश का बनारस और गोरखपुर रहा।

पलामू जिला के पाटन प्रखंड क्षेत्र के सूखा गांव निवासी नित्यानंद स्वामी उर्फ बेनी चौधरी उन गिने-चुने लोगों में थे जिनकी संगति श्री प्रकाश, नरेंद्र देव, कमलापति त्रिपाठी, संपूर्णानंद के साथ थी।

फांसी से 19 घंटे पहले लिखा था पत्र

फांसी के तख्ते पर अपनी जान की आहुति देने वाले नित्यानंद स्वामी ने 25 मई 1934 को एक पत्र लिखा। फांसी होने से लगभग 19 घंटा पहले जेलर के अनुमोदन से गांव के भागेश्वर द्विवेदी और स्वतंत्रता सेनानी नारायण दास जी को पत्र लिखा था।

पत्र में उन्होंने कहा था कि फांसी पर लटकने में कुछ घंटे से रह गए हैं। लेकिन मैं इससे तनिक भी विचलित नहीं हूं। पत्र में उन्होंने सभी सेनानियों को याद किया। साथ ही साथ सभी को नमस्कार, वंदे मातरम से अभिवादन किया था। सोमेश्वर द्विवेदी, रामाधार द्विवेदी के अभिभावक भागेश्वर दिवेदी को लिखा कि अंग्रेजों का कड़ा पहरा है। इसीलिए पत्राचार न करें।

गुलामी के दौर में गए थे बनारस 

नित्यानंद उस वक्त के हर अधिवेशन में शामिल हुआ करते थे। वे बनारस और गोरखपुर में स्वतंत्रता संग्राम की कमान संभाले हुए थे। गांव के उनके दोस्त सोमेश्वर द्विवेदी एवं रामाधार द्विवेदी थे। वे ही 1926 में इन्हें अपने साथ बनारस ले गए थे। इन दोनों ने भी स्वतंत्रता संग्राम में उनका बखूबी साथ दिया। दोनों सगे भाई थे।

रामाधार द्विवेदी अध्ययन को गुरुकुल चले गए लेकिन सोमेश्वर द्विवेदी उनके साथ रहे। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ही पकड़े जाने के बाद नित्यानंद स्वामी को अंग्रेज सरकार ने बनारस के डिस्ट्रिक्ट चौक पर स्थित चौका घाट पर सन 1934 में फांसी पर लटका दिया।

अविवाहित रहकर देश सेवा में शहीद हुए थे स्वामी नित्यानंद

नित्यानंद स्वामी के शहीद होने के बाद दोनों में एक रामाधार द्विवेदी अपने गांव वापस लौट गए लेकिन सोमेश्वर द्विवेदी स्वतंत्रता संग्राम के सिपाही के रूप में डटे रहे। नित्यानंद स्वामी पांच भाई हुआ करते थे। उन्होंने शादी नहीं की थी और संन्यासी बन गए थे जबकि उनके चारों भाइयों की संतानें हैं।

उनके स्वजनों का कहना है कि हमारे पूर्वज देश के लिए शहीद हुए थे, पलामू जिला प्रशासन उनकी प्रतिमा लगवाए, ताकि लोगों को उनकी वीरता और देशभक्ति की कहानी का पता चल सके। लोग जान सकें कि पाटन प्रखंड में ऐसे शहीद हुए हैं जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अपनी जान न्योछावर कर दी थी।

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