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फार्म हाउस में करते थे मजदूरी, लाकडाउन ने बदल दी जिंदगी, थोड़ी सी जमीन पर शुरु की थी खेती, आज लाखों कमा रहे

सुरेश और संतोष लाकडाउन से पहले हिसार में कृषि फार्म में करते थे लेकिन जब लाकडाउन लगा तो घर आना पड़ा लेकिन घर रोजी-रोटी का संकट था। ऐसे में दोनों ने कृषि फार्म में अपने अनुभव के जरिए रोजगार तलाशने की कोशिश की। आज वे किसानों के लिए आदर्श हैं।

By Jagran NewsEdited By: Mohit TripathiUpdated: Thu, 22 Dec 2022 08:51 PM (IST)
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जिले के किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत बने लीची की आधुनिक खेती करने वाले सुरेश और संतोष।
पलामू, हिमांशु तिवारी: यदि आप के अंदर कुछ करने की इच्छाशक्ति तो चुनौती चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हो, आपको अपना लक्ष्य प्राप्त करने से कोई नहीं रोक सकता। सुरेश और संतोष इसके उदाहरण हैं। आज दोनों जिले के किसानों के लिए प्रेरणास्रोत बने हुए हैं। 

कोरोना काल से पहले दोनों हरियाणा के हिसार में कृषि फार्म हाउस में मजदूर का काम करते थे। फार्म हाउस में स्ट्राबेरी की खेती होती थी। लाकडाउन लगा तो दोनों अपने गांव आ गए। उनके सामने रोजी-रोटी का संकट था। बहुत सोच-विचार करने के बाद दोनों ने स्ट्राबेरी की खेती शुरू की। आज दोनों अच्छी कमाई कर रहे हैं। संतोष की माने तो वह साल में डेढ़-पौने दो लाख रुपये की बचत भी कर ले रहे हैं। 

लाकडाउन के बाद हरियाणा के हिसार से आकर हरिजन बीघा में स्ट्राबेरी की खेती का यात्रा के बाबत संतोष ने बताया कि कम उम्र में ही वे रोजी-रोटी की तलाश में भाई के साथ घर से बाहर जाना पड़ा था। हिसार में 2003 से 2020 के शुरू तक वहां फार्म हाउस में काम किया।

उन्होंने स्ट्राबेरी की खेती को काफी नजदीक से देखा। देश में स्ट्राबेरी की सप्लाई में हिसार का अपना खास स्थान है। लाकडाउन के बाद यहां आया तो स्ट्राबेरी की खेती के अनुभव का आजमाने का मन बनाया। जमीन थोड़ी सी थी, उस पर खेती शुरू की। पहले साल सफलता मिली तो कुछ और जमीन लीज पर ले ली। हिसार में प्रति माह 15 हजार रुपये मजदूरी मिलती थी। अब साल में स्ट्राबेरी की खेती से घर परिवार चलाकर डेढ़ से दो लाख रुपये बचत कर रहे हैं।

किसान संतोष बताते हैं कि पारंपरिक फसलों की खेती में लगातार कम हो रहे मुनाफे और खराब मौसम की वजह से किसानों के लिए अब फलों और सब्जियों की खेती का विकल्प अच्छा है। पलामू की जलवायु भी अनुकूल है। उन्होंने बताया कि फिलहाल दो एकड़ की भूमि पर स्ट्रॉबेरी की खेती की जा रही है।

स्ट्राबेरी का सीजन आमतौर पर सितंबर से मार्च-अप्रैल तक होता है। संतोष के खेतों से स्ट्राबेरी की उपज तैयार होने लगी है। तैयार स्ट्राबेरी को अपने परिवार के लोगों और मजदूरों के साथ मिलकर मंडी तक पहुंचाने की तैयारी में लगे रहते हैं। इसे ट्रे में पैक किया जाता है। फिर बसों के माध्यम से मुख्य रूप से पटना और टाटा के बाजार में सप्लाई की जा रही है। प्रति ट्रे हजार से बारह सौ रुपये आमद हो रही है।संतोष राम ने बताया कि अभी स्ट्राबेरी की उपज बहुत कम हो रही है। जैसे-जैसे खेतों में उपज बढ़ेगी वैसे-वैसे इसकी कीमत भी कम होती जाती है।

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