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Jharkhand News: अलकतरा घोटाला में 25 साल बाद आया फैसला, अदालत ने तीन अभियंताओं को सुनाई ये सजा

शनिवार को सीबीआइ की विशेष अदालत ने 445 मिट्रिक टन अलकतरा घोटाले के तीन अभियुक्तों को दोषी करार दे दिया है। तीनों को कोर्ट ने तीन-तीन साल कारावास की सजा सुनाई है। इसके साथ ही अभियुक्तों पर जुर्माना भी लगाया गया है। करने का आरोप है। बता दें कि इस घोटाले के कारण सरकार को लाखों रुपये के राजस्व की का नुकसान हुया था।

By Manoj Singh Edited By: Shoyeb Ahmed Published: Sat, 29 Jun 2024 10:18 PM (IST)Updated: Sat, 29 Jun 2024 10:18 PM (IST)
अलकतरा घोटाला में सीबीआई की विशेष अदालत ने सुनाई सजा (फाइल फोटो)

राज्य ब्यूरो, रांची। सीबीआई की विशेष अदालत ने शनिवार को अलकतरा घोटाले के अभियुक्त तीन कनीय अभियंता विवेकानंद चौधरी, कुमार विजय शंकर एवं बिनोद कुमार मंडल को दोषी करार देते हुए तीन-तीन साल कारावास की सजा सुनाई है।

विवेकानंद चौधरी और कुमार विजय शंकर सेवानिवृत्त हो चुकी है। अदालत ने अभियुक्तों पर 50-50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया है। इन लोगों पर लगभग 445 मिट्रिक टन अलकतरा घोटाला करने का आरोप है। जिससे सरकार को लाखों रुपये के राजस्व की क्षति हुई।

लाखों की राशि की गई गबन

आरईओ वर्क्स डिवीजन रांची के इंजीनियरों द्वारा ठेकेदारों की मिलीभगत कर सड़क मरम्मत का कार्य फाइलों में दिखाकर से पद का दुरुपयोग करते हुए आपराधिक षड़यंत्र कर लाखों रुपये सरकारी राशि का गबन किया गया। मामले में 19 जून को बहस पूरी होने के बाद फैसले के लिए 29 जून की तिथि निर्धारित की गई थी।

यह घोटाला साल 1992-93 से लेकर 1997 तक जारी रहा। घोटाला प्रकाश में आने के बाद इसकी जांच सीबीआई से कराई गई। सीबीआई ने छह दिसंबर 1999 को प्राथमिकी दर्ज कर जांच प्रारंभ की। जांच पूरी करते हुए सीबीआई ने पांच लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की।

आरोपितों ने बिटुमिन की मांग की

इनमें दो की मृत्यु ट्रायल के दौरान हो गई। आरोपितों ने 12 सड़क की मरम्मत का कार्य दिखा उसी के अनुसार बिटुमिन की मांग की। लेकिन इन्होंने ने 11 सड़क की मरम्मत का कार्य फाइलों में दिखाकर सरकारी राशि का गबन कर लिया था। लगभग 1500 मिट्रिक टन बिटुमिन आईओसीएल से ट्रांसपोर्टर के माध्यम से आरोपियों ने प्राप्त किया।

अलकतरा लाने वाले को ट्रांसपोर्टर चालान भी दिया, लेकिन स्टाक रजिस्टर में प्राप्ति से काफी कम मात्रा दिखायी गई। इस गबन को छुपाने के लिए एक फर्जी एकाउंट जनवरी 1997 को तैयार किया गया था। इस एकाउंट में न ही आपूर्ति आदेश और न ही ट्रक नंबर अंकित था।

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